19.02.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 19.02.2016
Updated: 05.01.2017

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#Adinatha #BavanGaja #84feet ❖ विश्व की अद्वितीय प्रतिमा @ सिद्ध क्षत्र बावनगजा/चुलगिरी -भगवान् आदिनाथ जी 84 फीट! -इस सिद्ध क्षेत्र से रावण का भाई कुम्भकर्ण और रावण के पुत्र मेघनाद को यहां मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। रावण की पटरानी मंदोदरी ने अस्सी हजार विद्याधारियों के साथ यहीं आर्यिका दीक्षा ग्रहण की थी। [ यहां एक मंदोदरी प्रासाद भी है। इस जैन मंदिर में जैन प्रतिमाएं हैं। कहा जाता है कि रावण की पटरानी मंदोदरी ने इस जगह में आकर तपस्या की थी। ] मध्यप्रदेश के बड़वानी शहर से 8 किमी दूर स्थित इस पवित्र स्थल में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेवजी (आदिनाथ) की 84 फुट ऊँची उत्तुंग प्रतिमा है। सतपुड़ा की मनोरम पहाडि़यों में स्थित यह प्रतिमा भूरे रंग की है और एक ही पत्थर को तराशकर बनाई गई है। सैकड़ों वर्षों से यह दिव्य प्रतिमा अहिंसा और आपसी सद्भाव का संदेश देती आ रही है। ❖

Bawangaja/Choolgiri (meaning 52 yards is a famous Jain pilgrim center in the Barwani district of Madhya Pradesh in India. Its main a#ttraction is the megalithic statue (carved out of mountain) of Lord Adinatha, the first Jain Tirthankara. The statue is 84 feet (26 m) high, and was created early in the 12th century. The statue is supported from the back unlike the Gommateshwara statue of Lord Bahubali at Shravanabelagola, Karnataka. The great spiritual saint Acharya Kundkund Dev also meditate from choolgiri and have small temple on choolgiri.

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🚩🚩🚩आचार्य देशना🚩🚩🚩
🇮🇳"राष्ट्रहितचिंतक"जैन आचार्य 🇮🇳
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
तिथि: माघ शुक्ल द्वादशी, २५४२
माघ माह के दसलक्षण पर्व
उत्तम त्याग धर्म की जय
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रोगी की नहीं
रोग की चिकित्सा हो
अन्यथा भोगो

भावार्थ: प्रायः लोग रोग की चिकित्सा न करते हुए रोगी की चिकित्सा करने लग जाते हैं जिससे रोग तो ठीक होता नहीं अपितु रोगी की दुर्दशा अवश्य हो जाती है । कुशल वैद्य रोगी के रोग को पहचान कर ऐसा उपाय करते हैं कि रोग ठीक हो जाए । रोग ठीक हो जाएगा तो रोगी अपने आप ठीक हो जाएगा । हमने भी विषय कषाय रुपी ऐसे कई रोग पाल रखे हैं जो आचार्य भगवंत जैसे किसी कुशल वैद्य के उपचार से ही ठीक हो सकते हैं । यह बात लोकत्रांतिक राजनीतिक ढाँचे पर भी सही बैठती है । जिसमे भ्रष्टाचार, स्वार्थ जैसे कई रोग लगे हैं । जब ढांचा ही रोग ग्रस्त हो ऐसे में मंत्री पद पर बैठे किसी व्यक्ति विशेष को दोषी (रोगी) मानकर उसकी चिकित्सा कर देने से (दंड देने से) रोग समाप्त नहीं होगा । इस रोग के उपचार के लिए हमे अपने स्वाभिमान को जागृत करना होगा । स्वाश्रित होना होगा । विदेशियों की बड़े बड़े पैकेज की नौकरी के बजाय अपने देश में कृषि, शिल्प (हथकरघा द्वारा वस्त्र निर्माण), एवं अन्य स्वरोजगार के साधनो को मजबूत बनाना पड़ेगा । इन स्वदेशी वस्तुओं को अपनाना होगा और संतोषी बनना होगा । इस स्वाभिमान के द्वारा ही ये भारत भूमि समृद्ध, सुख संपन्न बन सकती है । अन्यथा आर्थिक गुलामी के द्वारा इस देश को फिर गुलामी को भोगना पड़ सकता है । रोगी की नहीं, रोग की चिकित्सा हो, अन्यथा भोगो ।
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"राष्ट्र हित चिंतक"आचार्य श्री के सूत्र
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