30.09.2022: Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha

Published: 30.09.2022
Updated: 30.09.2022

Updated on 30.09.2022 15:28

व्यापक कार्यक्रम

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Updated on 30.09.2022 14:20

मन निर्मलता को प्राप्त करो... आनंद तुम्हें मिल जाएगा

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उन्होंने अपने जीवन में...

साध्वी रतनश्रीजी (लाडनूं) की स्मृतिसभा में मुख्यमुनिश्री

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Posted on 30.09.2022 12:50

प्रेक्षाध्यान दिवस पर आचार्यश्री द्वारा श्रद्धालुओं को प्रेरणा प्रदान करने के साथ कराया गया ध्यान का प्रयोग
प्रेक्षा ध्यान को में एक चिकित्सा के रूप में देखते है..

प्रेक्षा ध्यान को मैं एक चिकित्सा के रूप में देखते है..

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🌸 प्रेक्षाध्यान तो जनकल्याणकारी है : प्रेक्षा अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण 🌸

-प्रेक्षाध्यान दिवस पर आचार्यश्री श्रद्धालुओं को प्रेरणा प्रदान करने के साथ कराया प्रयोग

-भगवती सूत्र के माध्यम से शरीर, वाणी और मन की चंचलता को किया व्याख्यायित

-आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में साध्वी रतनश्रीजी (लाडनूं) की स्मृतिसभा आयोजित

-नशामुक्ति दिवस पर आचार्यश्री ने नशामुक्त जीवन जीने की दी प्रेरणा

30.09.2022, शुक्रवार, छापर, चूरू (राजस्थान) :

जन-जन का कल्याण करने वाले, जन-जन को सद्भावना, नैतिकता औन नशामुक्ति की प्रेरणा प्रदान करने वाले, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी श्रद्धालुओं को छापर चतुर्मास के दौरान नित्य प्रति भगवती सूत्र जैसे विशालकाय आगम के माध्यम से उन्हें सन्मार्ग दिखा रहे हैं, इह लोक के साथ परलोक के कल्याण की प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं।

शुक्रवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने नित्य की भांति सर्वप्रथम मंत्र जप का प्रयोग कराया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने उपस्थित जनता को मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि भगवती सूत्र में भगवान महावीर से एक प्रश्न किया गया कि जो केवलज्ञानी साधु होते हैं वे अपने हाथ, पांव आदि को जिन आकाश प्रदेशों में रखते हैं, भविष्य में भी वहां रख सकते हैं क्या? भगवान महावीर ने उत्तर देते हुए कहा कि यह अर्थसंगत नहीं है। केवलज्ञानी अनंत ज्ञान और अनंत शक्ति संपन्न होते हैं, परन्तु शक्ति की अभिव्यक्ति शरीर से, शरीर से वीर्य की उत्पत्ति होती है, वीर्य से योग, मन, वचन और काया की प्रवृत्ति होती है। उनके शरीर में स्थित चंचलता के कारण वे उन्हीं आकाश प्रदेशों में हाथ-पैर आदि नहीं रख सकते, जहां पहले रखे हुए थे। यह शरीर की चंचलता की बात है। चंचलता शरीर, वाणी और मन की भी होती है।

प्रेक्षाध्यान में शरीर की चंचलता को नियंत्रित करने, वाणी को अपने कंट्रोल में रखने और मन को एकाग्र बनाने की विधि बताई जाती है। आज प्रेक्षाध्यान दिवस है। प्रेक्षाध्यान का शुभारम्भ परम पूज्य गुरुदेव तुलसी के समय में जयपुर में स्थित सी-स्किम के मन्नालाल सुराणा के स्थान ग्रीन हाउस में हुआ था। मुनिश्री नथमलजी स्वामी (टमकोर) बाद में आचार्यश्री महाप्रज्ञजी इस विधा के पुरोधा थे। प्रेक्षाध्यान में कायोत्सर्ग की बात बताई जाती है। ध्यान के प्रयोग के लिए शरीर की स्थिरता और शरीर की शिथिलता ये दोनों पृष्ठभूमि होती हैं। जहां केवलज्ञानी के पास भी अपने शरीर की चंचलता को नियंत्रित करने की सक्षमता नहीं है, वहीं वर्तमान में आम आदमी प्रेक्षाध्यान के द्वारा शरीर की चंचलता को कम करने का प्रयास कर रहा है। अगर शरीर को स्थिर और शिथिल कर दें तो ध्यान अच्छा हो सकता है। प्रेक्षाध्यान का कार्य मुख्यतया जैन विश्व भारती देखती है। इसके अंतर्गत प्रेक्षा फाउण्डेशन इसके कार्य को संभालती है।

तेरापंथ के कुछ आयाम केवल तेरापंथ धर्मसंघ के लिए नहीं, बल्कि जन-जन के कल्याण के लिए हैं। अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान प्रत्येक मानव जाति के लिए है। प्रेक्षाध्यान तो मानों लोककल्याणकारी है। इससे जुड़े लोग जागरूकता के साथ इस कार्य में लगे रहें। पहले ज्यादा तकनीक का भी विकास हुआ है। इसे उपयोग में लाया जाए और प्रेक्षाध्यान का प्रयोग कराया जाए तो अच्छा हो सकता है।

आचार्यश्री ने प्रेक्षाध्यान दिवस के संदर्भ में अपनी सन्मति शिक्षण कक्षा के विद्यार्थी मुनियों को अपने सामने पंक्तिबद्ध बैठने का आदेश देते हुए कुछ ध्यान के प्रयोग कराए तो उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ ने भी इन ध्यान के प्रयोगों को किया। साध्वीप्रमुखाजी ने भी प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में अपना उद्बोधन दिया। प्रेक्षाध्यान के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमारश्रमणजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी।

कार्यक्रम में साध्वी रतनश्रीजी की स्मृति सभा का आयोजन हुआ। इसमें आचार्यश्री ने उनकी संक्षिप्त जीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना करते हुए चार लोगस्स के ध्यान की प्रेरणा प्रदान की तो आचार्यश्री के साथ चतुर्विध धर्मसंघ ने भी उनकी आत्मा के उत्तरोत्तर गति के लिए चार लोगस्स का ध्यान किया। मुख्यमुनिश्री तथा साध्वीप्रमुखाजी ने उनके संदर्भ में अपने विचार अभिव्यक्त किए।

इसके पूर्व मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्याजी ने उपस्थित जनता को उत्प्रेरित किया। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत पांचवें दिन को नशामुक्ति दिवस के संदर्भ में आचार्यश्री ने प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि हमने अहिंसा यात्रा के दौरान सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के भी प्रचार-प्रसार पर बल दिया था। आज भी लोगों को यदा-कदा नशामुक्ति का संकल्प भी कराया जाता है। आदमी को अपने जीवन में नशे से बचते हुए संयमपूर्ण जीवनशैली को अपनाने का प्रयास करना चाहिए। राजनैतिक पार्टियों को भी चुनाव आदि में शराब बांटने और पिलाने से बचना चाहिए तथा लोगों को भी ऐसी चीजों को ग्रहण करने से बचने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में सुजानगढ़ नगर परिषद की नेता प्रतिक्ष श्रीमती जयश्री दाधीच ने आचार्यश्री के दर्शन के उपरान्त अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि मेरा सौभाग्य मिला है कि मेरे जीवन का शुभारम्भ जैन धर्म की निकटता से ही प्रारम्भ हुआ और मेरी शिक्षा भी जैन विश्व भारती में स्थित विमल विद्या विहार में हुई है। मुझे आचार्यश्री तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञजी और वर्तमान में आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन का भी सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। मैं हर्षित और गौरवान्वित महसूस कर रही हूं कि मुझे तीनों आचार्यों से आशीर्वाद प्राप्त हुआ। कार्यक्रम में श्रीमती सज्जनबाई रांका ने आचार्यश्री से अपने जीवन की 87वीं अठाई की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

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नशे से बचने की अनमोल प्रेरणा परम पूज्य गुरुदेव के मुखारविंद से

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