[Hindi]:
ओसवाल स्थापना दिवस मनाया गया -
देश के विकास में ओसवालों का महत्वपूर्ण योगदान: पुष्पेन्द्र मुनि
देष आजादी व वर्तमान समय में भी देष के विकास व अर्थ व्यवस्था में ओसवाल समाज का महत्वपूर्ण योगदान है। वर्तमान समय में भी ओसवाल समाज षिक्षा, चिकित्सा इत्यादि मानव सेवा के कार्यों में अग्रसर है। इस समय 1444 ओसवाल गौत्र पूरे भारत में विद्यमान हैं। लगभग 2540 वर्ष पूर्व ओसिया नगरी (राजस्थान) में महाराजा उपलदेव एवं मंत्री उहड़देव सहित 3.84.000 लोगों को आचार्य रत्नप्रभ सूरी ने धर्ममय उपदेश देकर ओसवाल वंश की उत्पŸिा की। उपरोक्त विचार डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि ने शुक्रवार को चिकपेट जैन स्थानक में 2571 वें ओसवाल स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए।
डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि ने कहा कि ओसवाल जाति का गौरव उन महान् पुरुषों से भी है जिन्होंने प्रशासन, राजनीति, धर्मनीति, अर्थनीति, विज्ञान - शिक्षा - संस्कृति - कला और अध्यात्म इत्यादि क्षेत्रों में अपना उल्लेखनीय योगदान दिया और अपनी अभूतपूर्व प्रतिभा, त्याग और सेवा के बल पर ओसवाल जाति के इतिहास को दैदिप्यमान किया। उन्होंने कहा कि विश्व में अमरनाम दानवीर भामाशाह स्थानकवासी ओसवाल थे जिन्होंने अपनी सर्वस्व संचित व अर्जित लक्ष्मी संकटकाल में महाराणा प्रताप को समर्पित कर दी। उन्होंने कहा कि वही समाज प्रगति कर सकता है जिसने अपनी नींव में प्रेम, स्नेह एवं दान देने की परम्परा को स्थापित किया हो।
ओसवाल स्थापना दिवस के अवसर पर ओसवाल वंश के पूर्वज महापुरुषों को स्मरण कर श्रद्धासुमन अर्पित किये गये।
धर्म को केवल सुने नहीं, जीवन में धारण करें: राजेन्द्र मुनि
धर्म को मात्र सुनने से नहीं, बल्कि जीवन में धारण करने से ही जीवन का कल्याण हो सकता है। मैं तो तुम्हें ऐसा जौहरी बनाना चाहता हूं कि हजार कांच के टुकड़ों में से भी हीरे की परख कर लो। सांसारिक जीवन में अच्छे-बुरे का बोध हो जाए। यह विचार श्रमण संघीय उपप्रवर्तक डॉ. राजेन्द्र मुनि ने शुक्रवार को कर्नाटक प्रान्त की राजधानी बैंगलोर शहर के चिकपेट जैन स्थानक में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि आज मानव खाना खाता तो है और सही भी खाता है, लेकिन व्यवस्थित नहीं खाता है। इसका मतलब यही है कि मात्र करने और सही करने से मंजिलें नहीं मिलतीं, सफलता के लिए हमें सिस्टम के अनुसार ही कार्य करना होगा।
उपस्थित जनमेदनी को संबोधित करते हुए उपाध्याय रमेष मुनि ने कहा कि जीवन में धर्म की शुरुआत इस शोध से होती है कि हमें क्या करना जरूरी है और क्या करना गैर जरूरी। जिस दिन यह बात समझ में जाएगी तो तुम धर्म के पथ पर चल पड़ोगे। इससे पूर्व धर्मसभा का शुभारंभ नवकार महामंत्र स्तुति से हुआ।