06.09.2013 ►Jahaj Mandir ►PARYUSHAN PARVA 5th DAY

Published: 06.09.2013
Updated: 08.01.2018

Jahaj Mandir Mandawala


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पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन

ता. 6 सितम्बर 2013, पालीताना

जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व के पांचवें दिन श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों व अतिथियों की विशाल ध्ार्मसभा के मध्य आज परमात्मा महावीर का जन्म वांचन महोत्सव मनाया गया।

इस समारोह के दौरान आज अपार जन समूह उपस्थित था। 12 हजार वर्गफीट का पाण्डाल आज छोटा पड गया था। समारोह का प्रारंभ 2 बजे हुआ। प्रारंभ में चौदह स्वप्नों को उतारने की बोलियां बोली गई। लोगों ने अपार उत्साह से इन बोलियों में भाग लिया। जन्म महोत्सव की खुशियों को व्यक्त करते हुए गुलाब जल छिडका गया। कंकु और केसर के छापे लगाये गये।

ज्योंहि पूज्यश्री ने परमात्मा का जन्म वांचन किया, लोगों ने अहोभाव से नृत्य किया और एक दूसरे को बधाई देते हुए नारियल फोडे गये तथा एक दूसरे को खिलाऐ गये।

इससे पूर्व प्रवचन देते हुए पूज्य उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने कहा- परमात्मा महावीर का जीवन एक विकास यात्रा है। प्रारंभ में वे भी हमारी तरह एक सामान्य पुरूष थे।

उन्होंने कहा- कर्मों का भुगतान तो सभी को करना ही पडता है। वे चाहे तीर्थंकर हों, चाहे चक्रवर्ती! सभी को अपने अपने कर्मों का हिसाब किताब करना ही होता है।

पूर्व भव में त्रिशला ने देवानंदा के रत्न चुरा लिये थे। इसी कारण इस भव में कुछ समय के लिये त्रिशला के रत्न को देवानंदा ने चुरा लिया। परिणाम स्वरूप परमात्मा 83 दिन देवानंदा की कुक्षि में बिराजमान हुए। उसके बाद परमात्मा त्रिशला महारानी की कुक्षि में बिराजमान हुए।

उन्होंने कहा- जो समाज एक होता है, वही समाज प्रगति करता है। एक दूसरे के सुख में सुखी और दुख में दुखी होने का भाव अनिवार्य है। सुख लेकर सुखी नहीं हुआ जा सकता। सुख देकर ही सुखी हुआ जा सकता है।

उन्होंने सुख पाने का मंत्र सुनाते हुए कहा- सुखी होने का मंत्र है- पहले आप! भोजन करना हो तो पहले आप कीजिये। विश्राम करना हो तो पहले आप कीजिये। आपके जीवन व्यवहार में यह मंत्र आ जाता है, तो समाज अत्यन्त आनन्दित और प्रगतिशील हो जाता है।

उन्होंने कहा- कल्पसूत्र में सभी प्रश्नों का समाधान है। किसी साधु को कैसे जीना है, यह देखना हो तो उसे कल्पसूत्र में लिखे महावीर के जीवन को पढना चाहिये। उन्होंने सारे कष्ट हंसते हंसते सहे। पर दोषी व्यक्ति के प्रति द्वेष नहीं आया। गृहस्थ जीवन की शांति का संदेश देते हुए परमात्मा महावीर ने अपने बडे भ्राता से दीक्षा की आज्ञा मांगी। यह घटना गृहस्थ जीवन जीने का तरीका बताती है। बडों का आदर करना सिखाती है।

चातुर्मास प्रेरिका पूजनीया बहिन म. डाँ. विद्युत्प्रभाश्रीजी म.सा. ने कहा- परमात्मा महावीर का जीवन श्रवण करना, अपने जीवन को पावन करना है। वे करूणा के साक्षात् अवतार हैं।

आयोजक बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा ने बताया कि यहाँ सिद्धि तप व मासक्षमण की तपस्या चल रही है। आयोजक लूणिया परिवार के श्रीमती झमूदेवी भैरूचंदजी लूणिया के मासक्षमण की तपस्या चल रही है। आज उनके 27 वें उपवास की तपस्या है। साथ ही अन्य कितने ही श्रावक श्राविकाओं के 15 उपवास, 11 उपवास, अट्ठाईयां आदि सैंकडों की संख्या में कर रहे हैं। इन सभी तपस्वियों का वरघोडा संवत्सरी के दिन 9 सितम्बर को आयोजित होगा।

प्रेषक
दिलीप दायमा

Sources
Jahaj Mandir.com
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