31.07.2013 ►Ladnun ►Purification of Soul and Sadhana of Truth is Important for Sadhak ◄ Acharya Mahashraman

Published: 31.07.2013
Updated: 08.09.2015

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Ladnun: 31.07.2013

Acharya Mahashraman while doing Pravachan at Sudhrma Sabha, Ladnun told devotees to be truthful. He said it is important to purify soul for all Sadhak. Sect is good but ultimate aim is spirituality.

News in Hindi

साधक के लिए महत्वपूर्ण है आत्मशुद्धि और सत्य की साधना

तेरापंथ धर्मसंघ के अधिशास्ता आचार्य महाश्रमण ने कहा कि संप्रदाय साधना का सहायक साधन है, लेकिन संप्रदाय का स्थान सत्य से ऊपर नहीं है। साधक के लिए संप्रदाय से अधिक महत्वपूर्ण आत्मशुद्धि और सत्य की साधना है।
यहां जैन विश्वभारती में सुधर्मा सभा में ‘‘जरुरी है धार्मिक सहिष्णुता’’ विषय पर प्रवचन देते हुए आचार्य महाश्रमण ने कहा कि संप्रदाय धर्म का पर्याय नहीं होता। धार्मिक व्यक्ति को संप्रदाय का व्यामोह त्यागकर अध्यात्म की साधना के मार्ग पर प्रवृत होना चाहिए। उन्होंने कहा कि व्यवस्था की दृष्टि से संप्रदाय का अपना विशिष्ट महत्व है। किसी व्यक्ति की अपने संप्रदाय के प्रति आस्था अच्छी बात है। लेकिन संप्रदायक का उत्माद रखना और दूसरे संप्रदाय की निंदा व आलोचना करना उचित नहीं है। भिन्न-भिन्न संप्रदायों के लोगों के बीच विचार-विमर्श व शास्त्रार्थ होना चाहिए। लेकिन शास्त्रार्थ का उद्देश्य ज्ञान अर्जन व पारस्परिक समन्वय विकसित करना होना चाहिए। शास्त्रार्थ एक-दूसरे को पराजित करने या आपसी कलह करने के उद्देश्य से नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि साधक का जुड़ाव संप्रदाय की बजाय धर्म के साथ होना चाहिए। धर्म आत्मा है, जबकि संप्रदाय शरीर है। धर्म पत्र है, जबकि संप्रदाय लिफाफा है। संप्रदाय धर्म को समाज में प्रतिष्ठित करने का माध्यम है, लेकिन वह स्वयं धर्म का पर्याय नहीं है। जब व्यक्ति की धार्मिक मूल्यों के प्रति निष्ठा जागृत होगी तो सांप्रदायक सौहार्द व सहिष्णुता का स्वतः उदय हो जाएगा। धार्मिक सहिष्णुता के विकास के लिए आवश्यक है कि धर्म से जुड़े लोग उत्तेजना व उन्माद का त्याग करें तथा दूसरों की आस्था में हस्तक्षेप न करें। सच्चा धार्मिक वह है जो सभी संप्रदाय के लोगों के प्रति सहिष्णुता का भाव रखते हुए सबके कल्याण के लिए प्रयत्न करे।
सभा में मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि श्रावक की दिनचर्या धर्म से प्रारंभ होनी चाहिए तथा उसकी प्रत्येक गतिविधि में धार्मिकता झलकनी चाहिए। धार्मिक व्यक्ति वह होता है, जो प्रतिक्षण जागरूक रहते हुए अनावश्यक, हिंसा से बचने की चेष्टा करता है। हमें अपना खाली समय अध्यात्म की साधना व चिंतन में व्यतीत करना चाहिए। कार्यक्रम में चैन्नई तेरापंथ महिला मंडल की सदस्याओं ने गीतिका प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संयोजन मुनि कुमारश्रमण ने किया।

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Sushil Bafana

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