ShortNews in English
Ladnun: 26.07.2013
Kanyamandal Adhiveshan Highlights. Acharya Mahashraman started daily Pravachan on Acharya Tulsi on basis of Tulsiyashovilas.
News in Hindi
जै त स ब्योरो लाडनू से समृद्धि नाहर और आर के स्टूडियो
जै त स ब्योरो लाडनू से समृद्धि नाहर और आर के स्टूडियो
जै त स ब्योरो लाडनू से समृद्धि नाहर और आर के स्टूडियो
जै त स ब्योरो लाडनू से समृद्धि नाहर और आर के स्टूडियो
जै त स ब्योरो लाडनू से समृद्धि नाहर और आर के स्टूडियो
जै त स ब्योरो लाडनू से समृद्धि नाहर और आर के स्टूडियो
जै त स ब्योरो लाडनू से समृद्धि नाहर और आर के स्टूडियो
जै त स ब्योरो लाडनू से समृद्धि नाहर और आर के स्टूडियो
व्याख्यान में दिल्ली चातुर्मास का विवरण
लाडनू 25 जुलाई 2013 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो समृद्धि नाहर
प्रवचन के बाद तुलसी यशोविलास का वाचन किया गया। जिसमें आचार्य तुलसी द्वारा किए गए दिल्ली चातुर्मास के संदर्भ में जानकारी दी गई। उन्होंने बताया कि वे तेरापंथ धर्मसंघ के पहले आचार्य थे, जिन्होंने राजधानी दिल्ली में चातुर्मास किया। उन्होंने वहां अणुव्रत के जरिए अन्य समाज के लोगों को अपने साथ जोडऩे की शुरुआत की और सफल हुए। लोग आचार्य तुलसी के व्यक्तित्व से प्रभावित हुए।
चास बोकारो से आया प्रतिनिधि संघ
चास बोकारो के प्रतिनिधि संघ ने तीन वर्षीय पूर्वी प्रदेशों की यात्रा के दौरान वहां पधारने का निवेदन किया। आचार्य महाश्रमण ने उन्हें बताया कि पूर्वांचल यात्रा के मार्ग का विधिवत कार्यक्रम बना नहीं है। उन्होंने मार्ग तय करने पर बोकारो आने की बात ध्यान में रखने का आश्वासन दिया।
दांपत्य जीवन भी एक साधना: आचार्य महाश्रमण
लाडनू 25 जुलाई 2013 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो समृद्धि नाहर
आचार्य महाश्रमण ने कहा है कि राग भाव से ही संसार चलता है। राग अलग-अलग प्रकार के होते हैं। एक राग नितांत सांसारिक होता है व पदार्थ संबंधित राग होता है। वे गुरुवार को सुधर्मा सभा में 'राग शमन कैसे हो?' विषय पर प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने गौतम गणधर को उदाहरण देते हुए कहा कि गौतम के मन में भी भगवान महावीर के प्रति प्रशस्त राग था। राग कोई भी हो लेकिन मोक्ष के मार्ग में तो बाधक ही होता है। आचार्य ने राग को जीवन से दूर करने के उपाय बताकर विविध प्रकार के द्वेष के बारे में भी जानकारी दी। आचार्य प्रवर ने सांसारिक जीवन में विवाह विषय को उल्लेखित कर कहा कि शादी करने के तीन कारण होते हैं। मानव सृष्टि को आगे चलाने के लिए वंश परंपरा के माध्यम से संतान उत्पति करना प्रथम कारण है। दूसरा मुख्य कारण जीवन में निकटतम जीवन साथ प्राप्त करना होता है। तीसरा कारण सम्यक रूप से कामेच्छा पूर्ण है। विवाह में दो व्यक्ति एक दूसरे के प्रति प्रतिबद्ध होकर दांपत्य जीवन निर्वाह करते हैं, यह भी दीक्षा के समान है।
लाडनूं. कार्यक्रम को संबोधित करते आचार्य महाश्रमण।