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Lordi: 17.06.2013
Acharya Mahashraman said 12vrat are necessary for healthy society. Sadhu follows five Mahavratas and Shrawak follows 12 Vrata.
News in Hindi
साधु के महाव्रत होते हैं और श्रावक के अणुव्रत व बारह व्रत होते हैं: आचार्य महाश्रमण
लोरडी गांव में साधकों का मार्गदर्शन किया, श्रावकों को जीवन के बारह व्रत के महत्व से अवगत कराया
लोरडी गांव- जोधपुर 17 जून 2013 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
आचार्य महाश्रमण ने कहा कि साधु के लिए पांच महाव्रत होते हैं। श्रावक के लिए बारह व्रत होते हैं। जीवन में बारह व्रतों का महत्व है। देवगति में जाने के लिए यह कसौटी नहीं है कि कौन भिक्षा करता है, कौन गृहस्थ है। इसकी कसौटी यह है कि जो सुव्रत है, जिसके जीवन में त्याग, व्रत व संयम है, वह व्यक्ति देवगति को प्राप्त कर सकता है। वह उत्कृष्ट साधना कर मोक्षगति को भी प्राप्त कर सकता है। वे रविवार को लोरडी गांव में साधकों को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि साधु के महाव्रत होते हैं और श्रावक के अणुव्रत व बारह व्रत होते हैं। साधु व श्रावक दोनों रत्नों की माला है। साधु बड़ी माला है, क्योंकि साधु के पास पांच बड़े रत्न है, जबकि श्रावक के पास छोटे रत्न होने से श्रावक छोटी माला है। उन्होंने कहा कि कोई बन सके तो साधु बनना चाहिए। उतनी क्षमता न हो तो श्रावक व्रत को स्वीकार करना चाहिए। श्रावक के लिए व्रत से पहले सम्यकत्व की दीक्षा है। वह अर्हत वीतराग को देव, शुद्ध साधु को गुरु व केवली आगम द्वारा प्रदत्त तत्व को अपना सिद्धांत माने। इन पर आस्था रखे, यह सम्यकत्व है। सम्यकत्व के बाद अगला चरण व्रतों का स्वीकरण है। बारह व्रतों के तीन खंड हैं। एक खंड है पांच अणुव्रतों का, दूसरा खंड है तीन गुणव्रतों का और तीसरा खंड है चार शिक्षा व्रतों का। आचरण व उपासना, दोनों की ही बारह व्रत में सुंदर समायोजना देखी जा सकती है।
शक्तियों का सदुपयोग करें
मुनि सुमेरमल ने कहा कि मनुष्य को जो शक्तियां मिली हैं, उसका सही उपयोग कर वह नर से नारायण बन सकता है। इंद्रियां विकास का प्रतीक हैं। इंद्रियों के उपयोग से ये विकास में आगे बढ़ती हैं और दुरुपयोग करने पर विनाश की ओर बढ़ाती हैं। इन्हीं इंद्रियों द्वारा व्यक्ति का भव भ्रमण का बंधन कटता है और इन्हीं के द्वारा साधना कर मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। इस मौके पर मुनि राजकुमार व मुनि विजय कुमार ने गीत प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि जिनेश कुमार ने किया।