08.02.2013 ►Tapara ►Acharya Mahashraman is Giving Pravachan

Published: 12.02.2013
Updated: 08.09.2015

ShortNews in English

Tapara: 08.02.2013

Acharya Mahashraman is giving Pravachan.

(Translation is done later)

News in Hindi

शिष्य और गुरु को जोडऩे वाला सेतु है विनय: आचार्य

टापरा(बालोतरा) 8 फरवरी 2013 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो

शिष्य और गुरु को जोडऩे वाला सेतु है विनय। अगर विनय सेतु नहीं है तो गुरु-शिष्य में अच्छा संबंध होना कठिन है। शिष्य के लिए गुरु के प्रति कर्तव्य निष्ठा जरूरी है। शिष्यों का यह सौभाग्य होता है कि उन्हें एक पथ दर्शक अनुशासक वात्सल्य प्रदाता गुरु प्राप्त होते है। यह उद्गार तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने गुरुवार को टापरा जय मर्यादा समवसरण में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि शिष्य अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहे तो गुरु भी अपने शिष्यों के प्रति जागरूक रहे। दोनों में अपने-अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा होती है तो शिष्य का संबंध अच्छा रहता है। जितनी कर्तव्यनिष्ठा शिष्य की होती है उतनी कर्तव्य निष्ठा गुरु की भी होती है। आचार्य ने आचार्य तुलसी के बारे में बताते हुए कहा कि उनमें कितनी गुरुता थी। वे अंगुली निर्देश भी देते थे, कभी उलाहना भी कहते देते थे, कभी कठोर दृष्टि भी रखते थे तो कभी वात्सल्य की बरसात भी करते थे।

हमने निकट अतीत में आचार्य तुलसी जैसे गुरु को पाया था। न जाने कितने-कितने संन्यासी रूप में शिष्य-शिष्याएं भी बने थे। अपने शिष्य-शिष्याओं का संस्कार निर्माण करने का प्रयास भी आचार्य तुलसी करते थे। स्वयं अपना स्वाध्याय भी करते, साथ ही शिष्यों को भी स्वाध्याय कराते। वे समस्याओं का समाधान भी करते थे।

शिष्यों के लिए तो गुरु भगवान होते हैं तो शिष्य भी गुरु के लिए बड़े आधार होते हैं। गुरु को शिष्यों का भी अधिकतम सहारा होता है। योग्य शिष्य होने से गुरु कई कार्यों से निश्चिंत होते हैं। वे आचार्य धन्य है जिन्हें प्रखर प्रतिभा के शिष्य मिल जाते हैं।

गुरु भी अपने कर्तव्यों को ध्यान में रखते हुए शिष्य की कठिनाई को समझने का प्रयास करें तथा निराकरण करने का प्रयास करें तो यह गुरु का महात्म्य होता है। आचार्य जो महात्मा होते है उनके वचन को अमोघ करना चाहिए। वचन से स्वीकार करना। गुरु के निर्देश को शिरोधार्य करना चाहिए। तेरापंथ धर्मसंघ में एक आचार्य की व्यवस्था है। धर्म संघ के विधान में यह है कि सारे साधु-साध्वियां एक ही आचार्य की आज्ञा में रहें। मंत्री मुनि सुमेरमल लाडनूं ने वीतरागता के संदर्भ में उद्बोधन देते हुए धर्मसभा को संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया।

Sources

ShortNews in English:
Sushil Bafana

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