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Tapara: 06.02.2013
Terapanth does not believe in idol worshiping but who believe in idol worshiping also believe in Bhav puja. Bhav Puja means dedication towards quality of people whom you are worshiping.
News in Hindi
तन्मय होकर भावना से करें स्मरण: आचार्य
आदमी के आत्मगुणों में चारित्र का गुण वंदनीय है
टापरा (बालोतरा)टापरा 6 फरवरी 2013 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
'धार्मिक जगत में दो परंपराएं चलती है, एक मूर्तिपूजक व दूसरी अमूर्तिपूजक परंपरा। दोनों ही परंपराओं की जानकारी होना जरुरी है।' यह वक्तव्य तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने 'तेरापंथ भावपूजा' विषय पर कहा। उन्होंने कहा कि पूजनीय व पूजक दो शब्द है, जिसकी पूजा की जाती है। जो पूजा के लायक है, वह पूजनीय होता है और जो पूजा करने वाला है, वह पूजक है। आचार्य ने कहा कि द्रव्यपूजा व भाव पूजा का पूजनीय के साथ भी संबंध है और पूजक के साथ भी। पूजनीय भाव भी हो सकता है और द्रव्य भी हो सकता है। भगवान महावीर हमारे लिए पूजनीय है। सभी तीर्थंकर हमारे लिए पूजनीय है। भगवान विमलनाथ हमारे लिए पूजनीय है, लेकिन द्रव्य विमलनाथ हमारे पूजनीय नहीं है। गृहस्थ अवस्था के विमलनाथ द्रव्य रूप में थे। जब तीर्थंकर बन गए तो भाव विमलनाथ बन गए। वो भाव विमलनाथ हमारे लिए पूजनीय है। भावना से तन्मय होकर विमलनाथ का स्मरण करना भावपूजा है। आचार्य ने कहा कि द्रव्य पूजा अपने आप में विवादास्पद विषय है। मूर्तिपूजा को मानने वाले भी भाव पूजा को अस्वीकार नहीं कर सकते। अमूर्तिपूजा व मूर्तिपूजा के अधिकृत विद्वान मिले और चिंतन विमर्श करें तो एक स्वस्थ चर्चा हो सकती है और इसमें हार जीत की भावना के बिना चिंतन हो। आचार्य ने कहा कि जो गुणशून्य है, वह पूजा के लिए अर्ह नहीं है। उन्होंने कहा कि नाम के द्वारा या भी स्मृति हो जाती है। भगवान के नाम से भी कल्याण हो सकता है। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि निर्गुण की पूजा अमान्य है। द्रव्यपूजा के माध्यम से व्यक्ति के भावों में एक वेग, एक परिवर्तन आता है। उसके बाद वह व्यक्ति भावों में उतरता है।
आदमी के आत्मगुणों में चारित्र का गुण वंदनीय है। चारित्र के गुणों का गुणानुवाद, विनय, शुश्रुषा, स्तुति गान भावपूजा के कुछ रूप है। जिस पूजा में हिंसा की संभावना हो, जिस पूजा के साथ परिग्रह का संबंध जुड़ता है, वह पूजा अध्यात्म में मान्य नहीं है। अध्यात्म के क्षेत्र में तो उस पूजा को स्वीकार किया गया है। जिस पूजा में हिंसा आदि का क्रम ना हो, परिग्रह न हो, केवल भावों में बदलाव आए। केवल सामने वाले व्यक्ति के गुणों का संयम का आदर हो। संयम मय आत्मा का बहुमान होना चाहिए। चारित्र आत्मा वंदनीय है। चारित्र के भाव बिना अन्य गुण केवल अनुमोदना के योग्य है, वे वंदनीय है। इसलिए भाव पूजा का संबंध संयम के साथ है। मंत्री मुनि ने कहा कि तेरापंथ द्रव्यपूजा को महत्व नहीं देता है, विश्वास भी नहीं है। यह अमूर्तिपूजक है। मंदिर आदि बनाने का भी प्रावधान नहीं है। हम मूर्ति पूजक है। व्यक्ति अपनी आस्था को मजबूत रखें। हमारा सारा कार्यक्रम उसी के अनुरूप चले कि हमारे कार्यक्रम में दोष न लगे। कार्यक्रम के अंत में विषय से संबंधित जिज्ञासा-समाधान का क्रम भी चला।