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Asadha: 25.01.2013
Gulabchand Kataria Doing Darshan of Acharya Mahashraman.
News in Hindi
बड़ों में विनय व छोटों में सरलता का विकास हो: आचार्य श्री
असाड़ा (बालोतरा) 25 जनवरी 2013 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
'व्यक्ति अपने जीवन में आध्यात्मिक साधना के प्रति जागरुक है। साधक जब साधना करता है, तब उससे भूल हो जाती है। परंतु उसे अपनी भूल सुधारने का प्रयास करना है। भूल करना मानवीय स्वभाव है। किंतु साधना के प्रति जागरुक बनकर भूल सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए।' ये उद्गार तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने गुरुवार को असाड़ा में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि साधु को नीचे देखकर मौन पूर्वक चलना चाहिए। ध्यान करना अच्छा है किंतु मौन पूर्वक, संयमपूर्ण चलने का अभ्यास गमनयेता है। साधु के लिए चलते हुए बात करना दोष है। उसे मौन पूर्वक चलना चाहिए। हाजरी साधुओं का संघ व संयम में रहने का उपक्रम है। हाजरी वाचन करते हुए आचार्य ने कहा कि आज्ञा में चलने वाला महान होता है। आज्ञा के बिना एक माह की तपस्या व्यर्थ है और आज्ञा से किया गया एक प्रहार का तप भी महान फलदायी होता है। गुरु की आज्ञा के बिना किया गया ध्यान, तप, स्वाध्याय, जनता का कल्याण सब व्यर्थ है। जैसे सेनापति के बिना सेना। गुरु की आज्ञा को श्रद्धा भाव से स्वीकार करना चाहिए, न की अनमने भाव से। तेरापंथ की संगठनात्मक मर्यादा के अनुसार संघ के एक आचार्य और एक साध्वी प्रमुखा होते हैं। छोटों को बड़ों के प्रति विनय और बड़ों का छोटों के प्रति वात्सल्य, बड़ों में विनय, छोटों में सरलता का विकास संगठन के विकास का आधार है।