ShortNews in English
Balotara: 17.01.2013
Acharya Mahashraman in his first teaching to new monk and nun told to stay alert in discipline and do activity with Sanyam. He blessed to do progress in field of spirituality and for purifying soul.
News in Hindi
आत्मा का उत्थान करने का दिया आशीर्वाद
बालोतरा। Thursday, 17 Jan 2013 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
'पहले तुम गृहस्थ थे। अब तुम साधु-साध्वी बन गए हो। अब तुम्हारा दर्जा बड़ा हो गया है। अब हमारे जीवन में साधुता दिखाई देनी चाहिए।' यह मंगलमयी शिक्षा तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने नवदीक्षित बाल मुनि क्षेमंकर व साध्वी प्रांजलयशा को प्रदान की।
उन्होंने कहा कि संयमपूर्वक खड़ा होना, चलना, बोलना, खाना व मन में संयम का भाव रहना चाहिए। हर क्रिया में संयम झलकना चाहिए। मन में गुरु के प्रति समर्पण रहना चाहिए। गुरु ने जो आज्ञा प्रदान कर दी उसे शिरोधार्य करना चाहिए। आचार्य ने नवदीक्षितों को शिक्षा देते हुए कहा कि तर्क ज्ञान व बुद्धि तक ही होना चाहिए। गुरु की आज्ञा में तर्क नहीं करना चाहिए। शिष्य-शिष्या को ज्ञान में तर्क व अनुशासन में सतर्क रहना चाहिए। आचार्य ने नवदीक्षितों को आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम आत्मा का उत्थान करो व धर्मशासन की खूब सेवा करते जाओ।
इससे पूर्व दीक्षार्थी ख्वाहिश चौरडिय़ा व प्रांजल ने अपनी श्रद्धापूर्ण भावनाएं अभिव्यक्त की। मुमुक्षु ख्याति ने दोनों दीक्षार्थियों के जीवन परिचय को प्रस्तुत किया। पारमार्थिक शिक्षण संस्थान के सहमंत्री डूंगरमल बागरेचा ने दीक्षार्थियों के अभिभावकों की ओर से दिए जाने वाले आज्ञा पत्र का वाचन किया। दीक्षार्थी ख्वाहिश के पिता अश्विन चौरडिय़ा व दीक्षार्थिनी प्रांजल के पिता शांतिलाल सालेचा ने आज्ञा पत्र आचार्य को प्रदान किए। आचार्य ने दीक्षा संस्कार के क्रम में दीक्षार्थियों के माता-पिता व अभिभावकों से मौखिक सहमति पूछी। आचार्य ने मुमुक्षुओं को कठोर जीवनचर्या से अवगत कराते हुए उनकी सहमति पृच्छा की। उसके बाद आचार्य ने पूर्वाचार्या को वंदना करते हुए महाश्रमणी साध्वी प्रमुखा को अभिवादन करते हुए मंत्री मुनि को वंदना करते हुए मंत्रोच्चारण किया। दीक्षार्थियों ने तीन बार आचार्य को वंदना की।
मुमुक्षु ख्वाहिश बना मुनि क्षेमंकर व प्रांजल बनीं साध्वी प्रांजलयशा: आचार्य ने नवदीक्षितों को नामकरण करते हुए नवदीक्षित ख्वाहिश का नाम मुनि क्षेमंकर व नवदीक्षिता प्रांजल का नाम साध्वी प्रांजलयशा रखा। इसके बाद संपूर्ण जनमेदनी ने नवदीक्षित साधु-साध्वी को 'मत्थएं वंदामि' कहकर वंदना की।
ओज आहार:
यह अनुशासन का ओज आहार कहलाता है। यह आचार्य द्वारा प्रदान किया जाता है।
केशलुंचन संस्कार:
दीक्षा संस्कार के अंतर्गत केशलुंचन संस्कार के दौरान आचार्य ने नवदीक्षित साधु का केशलुंचन किया। साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने नवदीक्षिता का केशलुंचन किया।