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Banguri: 03.12.2012
Acharya Mahashraman told people of village to live of addiction free life. He also described four ways of Moksha and they are Gyan, Darshan, Charitra and Tap.
News in Hindi
ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप ही मोक्ष के मार्ग: आचार्य
बागुंडी 03 दिसम्बर 2012 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप इन चारों का मिलाजुला भव ही निर्वाण प्राप्त करवाता है, उससे ही मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है। आत्मा का सर्वोच्च लक्ष्य निर्माण एवं मोक्ष की प्राप्ति ही है। बार-बार जन्म और मरण का यह क्रम तो अनंत काल से चला आ रहा है। बागुंडी पहुंचने पर राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में सवेरे १०.३० बजे नवकार मंत्र के साथ आचार्य महाश्रमण ने श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए यह बात कही।
उन्होंने कहा कि प्राणी दो प्रकार के होते हैं। पहला भव प्राणी व दूसरा अभव प्राणी। मुक्ति उन्हीं को मिलती है, जो भव प्राणी हैं। तीर्थंकरों के दर्शन या श्रवण करने से भी मुक्ति मिल सकती है। भवप्राणी को बनाने वाली केवल मात्र नियति है अन्यथा किसी भी रूप में अभव प्राणी से भव प्राणी नहीं बना जा सकता। किसी को भी दोष नहीं दिया जा सकता है। भवप्राणी किस प्रक्रिया द्वारा मोक्ष में जा सकता है। इसका जवाब है कि जो कर्मों से मुक्त हो जाता है। प्रश्न है कि कौन होता है कर्मों से मुक्त? प्रत्युत्यर जो व्यक्ति चारित्र की आराधना करता है वही व्यक्ति अपने कर्मों से मुक्त हो पाता है एवं चारित्र उसे ही प्राप्त होता है जिसके पास सम्यक् ज्ञान है। सम्यक ज्ञान उसे ही हो सकता है, जिसके पास सम्यक दर्शन है। जिसके पास सम्यक ज्ञान व सम्यक दर्शन नही उसके पास सम्यक चारित्र का अभाव होता है। उसमें सम्यक चारित्र का गुण भी नहीं होता। आचार्य ने कहा कि ऐसा व्यक्ति जो कर्मों से मुक्त नहीं हो सकता वह व्यक्ति निर्वाण व मोक्ष प्राप्ति नहीं कर सकता। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप इन चारों का मिला-जुला भव ही मोक्ष का मार्ग है। सम्यक दृष्टि से निर्मलता आती है, जो व्यक्ति अंधा होता है वो बेचारा क्या देख पाएगा। अंधे को रोशनी देने वाले व्यक्ति में करूणा या अनुकंपा की चेतना जागृत होती है। अंधा आदमी ही बता सकता है कि आंखों का मूल्य क्या है? उसकी दुनियां ही सिमट जाती है। इसी प्रकार भीतर का प्रकाश नहीं होता है तो वह व्यक्ति धर्म की दृष्टि से नेत्रहीन व्यक्ति के समान हो जाता है। धन्य हैं वे संतगण, जिन्होंने श्रावक-श्राविकाओं को अज्ञानता के अंधकार से मुक्त कर भीतर कर अंधकारमय जीवन को प्रकाशमान बनाते हैं। ज्ञानचक्षु खोलने वाले गुरु का बहुत ही महत्व है। गुरु ही हमें ज्ञान एवं चारित्र प्रदान करता है। अच्छा शिष्य वो ही है जो स्वयं पर नियंत्रण रखकर, अनुशासन में रहकर सम्यक दृष्टि का ज्ञान प्राप्त करता है। इसलिए तो आचार्य तुलसी ने कहा है,''निज पर शासन-फिर अनुशासन।'' आचार्य ने मंगल पाठ के साथ सद्भावना एवं व्यसनमुक्त जीवन जीने का संदेश दिया। समणी वृन्द ने आगम पाठ का वाचन किया। संचालन मुनि दिनेशकुमार टापरा ने किया।