ShortNews in English
Jasol: 24.11.2012
Acharya Mahashraman while explaining metaphysics of Jainism told that Ashrava is reason for bandha of paap and punya.
News in Hindi
कारण के बिना कोई कार्य नहीं हो सकता: आचार्य श्री महाश्रमण जी
जसोल 24 अक्टूम्बर 2012 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
अर्हत वांग्मय में कहा गया है कि पाप नाम का एक तत्व है और एक तत्व है आश्रुव, इन दोनों का गहरा संबंध है। आश्रव के बिना पाप हो ही नहीं सकता। आश्रुव कारण है और पाप कार्य। ये उद्गार तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण शुक्रवार को जसोल के तेरापंथ भवन स्थित वीतराग समवसरण धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि कारण के बिना कोई कार्य हो नहीं सकता। जैसे घड़ा एक कार्य है और मिट्टी, अग्नि, कुंभकार उसके पीछे के कारण है। उत्पादन मूल कारण है, जो सहायक होते हैं वे निर्मित कारण होते हैं। आश्रव पाप का कारण भी बनता है तथा पुण्य का बंध भी बनता है। शुभ योग से निर्जरा भी होती हैं। शुभ योग पुण्य भी है और निर्जरा का कारण भी होता है। आश्रव वह तत्व है जो कर्मों के आने का निमित्त बनता है। आचार्य ने कहा कि मिथ्या त्व आश्रव के कारण व्यक्ति धर्म कर्म को नहीं मानता उसकी कोई स्पष्ट विचारधारा नहीं होती। आदमी का पदार्थ के प्रति भी गहरा आकर्षण है। हमारे भीतर भौतिक आकर्षण कितना है इसका आंकलन किया जाना चाहिए तथा यह ङ्क्षचतन भी करते रहना चाहिए कि आत्मा की भलाई के लिए तथा कषाय की मंदता के लिए मैं कितना जागरूक हूं या तत्पर हूं। ''हमेशा आत्मा भिन्न शरीर भिन्न'' का दृष्टिकोण सदैव स्मरण में रहना अपेक्षित है। आचार्य ने कहा कि जन्म-मरण की परंपरा का के लिए आश्रव है, हमारी चेतना को मल्लिन करने में आश्रव का तत्व हेतू बनता है, अगर हिंसा चोरी, झूठ, मैथुन और परिग्रह से बचा जाए तो वह महाव्रती बन जाता है। एक तरह से साधु की श्रेणी में आ जाता है।
अगर सत्य, अहिंसा, अचौर्य, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह के नियमों की पालना हो जाए व क्रोध, मान, माया व लोभ से मुक्त हो जाए तो आश्रव से निरोध हो पाएगा व अध्यात्म की दिशा में आगे बढ़ा जा सकेगा। आचार्य तुलसी की ज्ञानधारा निर्मल थी। वे संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे। वे अपने स्वरचित गीतों के माध्यम से अपनी बातों को रखते थे। संचालन मुनि हिमांशु कुमार ने किया। मुनि जंबूकुमार की संसार पक्षीय मातुश्री कमला देवी को आचार्य प्रवर ने श्रद्धा की प्रतिमूर्ति का संबोधन दिया।