ShortNews in English
Jasol: 23.11.2012
Acharya Mahashraman said to stay away from sins. He told non-violence and amity can keep us away from sins. Bondage of Karma is depending upon our thinking too. Anuvrata teaches us to follow small vow and that keep us away from sins.
News in Hindi
पाप कर्मों का फल मिलता ही है: आचार्य श्री
जसोल(बालोतरा) 22 नवम्बर 2012 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
पाप कर्मों से निजात पाने के लिए भावों में अहिंसा व मैत्री का विकास आवश्यक है। पाप कर्मों के संबंध में हमारा इरादा क्या है व हमारी भावना का लक्ष्य क्या है? उस पर निर्भर करता है, जिसकी जैसी भावना होती है उसको वैसा परिणाम मिलता है। ये उद्गार तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने गुरुवार को जसोल मेंं आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि पापों के लिए भीतर के भावों का परिणाम महत्वपूर्ण रहता है। व्यक्ति का चित्त कैसा है, उस पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए एक बिल्ली अपने बच्चे को मुंह से पकड़ कर उसे सुरक्षित स्थान पर बिठाने ले जाती है तो वो भावना हिंसा की न होकर ममता की होती है, अगर वो ही बिल्ली मुंह में चुहे को पकड़ती है तो उसके पीछे हिंसा की भावना ही काम करती है। अगर एक डॉक्टर किसी व्यक्ति के पेट की चीर-फाड़ करे तो उसके पीछे भावना मरीज के स्वास्थ्य की रक्षा की रहती है, ठीक इसके विपरीत वही चीर-फाड़ कोई डाकू कर बैठे तो वो भावना हिंसा की ही रहती है। अत: भावना-भावना का बहुत अंतर रहता है। आचार्य ने कहा कि राग भी अपने आप में पाप है। व्यक्ति लोभ वश में भी पाप कर बैठता हैं। वृतावत भी पाप का बंध है। पापों का फल आज नहीं तो कल मिलता ही है। आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन के माध्यम से अहिंसा व नैतिकता का शंखनाद किया। अणुव्रत अर्थात् छोटे-छोटे व्रत व्यक्ति को गलत कार्यों से बचने की प्रेरणा देते हंै। अणुव्रत से जुड़ी हुई अनेक संस्थाएं अणुव्रत समिति, अणुव्रत विभा, अणुव्रत शिक्षक संसद संस्थान व अणुव्रत न्यास सक्रियता के साथ नैतिकता व अहिंसा आदि का प्रचार-प्रसार कर रही हैं आचार्य ने कहा कि लोगों को अणुव्रती बनाने का प्रयास किए जाए। अहिंसा यात्रा के प्रवर्तक आचार्य महाप्रज्ञ ने अहिंसा के माध्यम से वृद्धावस्था में भी राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, दादरानगर हवेली, मध्यप्रदेश आदि प्रदेशों में लगातार सात वर्षों तक यात्रा कर नैतिकता व अहिंसा के दर्शन को जन-जन तक पहुंचाया। आचार्य ने कहा कि साधु संत प्रवचन करते हैं। वे चेतना को जागृत करते हैं लेकिन इसका विस्तृत रूप से प्रचार-प्रसार व्यक्तिगत संपर्क से लेखन के माध्यम से सभा गोष्ठियों के द्वारा हो सकता है। जसोल में नशा मुक्ति को जो अभियान चलाया गया, गली-मोहल्लों तथा घर-घर में ये जागृति लाने का प्रयास किया गया। इसके सार्थक परिणाम भी आए हैं। वैसेे भारत के कोने-कोने में अणुव्रत समितियों द्वारा नशा मुक्ति आदि का अभियान चलाया जा रहा है। गत दिनों अणुव्रत शिक्षक संसद संस्थान द्वारा नशा मुक्ति के एक करोड़ संकल्प पत्र भी यहां सुपुर्द किए गए। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को सदैव यह चिंतन करना चाहिए कि मैं पाप कर्म से कितना बच सकता हूं। हंसते-हंसते पाप कर्मों का प्रयास किया जाता है तो वे कर्म रोने पर भी नहीं छोड़ते। हमारे मन में मंगल भावना रहे। किसी के प्रति अमंगल की भावना नहीं रहे। गुस्से व अहंकार से मुक्त रहे तथा मन में निर्मलता की भावना से ही पापों का बचाव संभव है। पाप कर्मों के 18 प्रकार बताए गए है। पाप कर्मों के बंधन से अपने आप बचा जा सकता है। इस अवसर पर अणुव्रत न्यास के मुख्य प्रबन्ध न्यासी धनराज बोथरा ने अणुव्रत की प्रगति की जानकारी दी तथा इन्दौर से डॉ. गौतम कोठारी की ओर से प्रकाशित ''चौथा प्रहरी साप्ताहिक हिन्दी'' के अणुव्रत विशेषांक की प्रतियां वितरित की गई। संचालन मुनि श्री हिमंाशु कुमार ने किया।