ShortNews in English
Jasol: 20.11.2012
Acharya Mahashraman discussed about jeev and ajeev. He told soul and body are different. He also advised that contemplation is good tool to destruct Moh Karma.
News in Hindi
जसोल (बालोतरा) 20 नवम्बर 2012 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
हमारी दुनिया में जीव तत्व भी है और अजीव तत्व भी। जीव दो चार नहीं बल्कि अनंत संख्या में है। इस संसार में अजीव भी बहुत है। अगर अजीव नहीं हो तो दुनिया का ढांचा ही चरमरा जाता है। ये उद्गार तेरापंथ धर्मसंंघ के आचार्य महाश्रमण ने सोमवार को जसोल में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि अजीव तत्व के तहत धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशस्तिकाय व पुद्ग्लास्तिकाय का समावेश है। ये चारों अमूर्त है भी और नहीं भी। कुछ पुद्गलों को तो देखा भी जा सकता है। पुद्गल मूर्त होता है। जीव आत्मा तो अमूर्त है। हमारा जीवन जीव व अजीव का मिश्रण है। शरीर व आत्मा का मिश्रण है। आत्मा तो शाश्वत है, जो जीव है और शरीर है और वो ही आत्मा है। कहा भी गया है कि 'आत्मा भिन्न शरीर भिन्न एक नहीं संजोना, मिट्टी से मिला-जूला आखिर सोना सोना'। आचार्य ने कहा कि अजीव का बहुत बड़ा उपकार है। क्योंकि भोजन, कपड़ा, मकान, वाहन व दिनोदिन की अनेक आवश्यक वस्तुएं अजीव होती है। चलना भी अजीव की सहायता से पड़ता है। वहां भी धर्मास्किाय की सहायता लेनी पड़ती है। आदमी को तो अजीव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए। क्योंकि हमारी सारी क्रियाएं बोलना, चलना, पढऩा, लिखना सब अजीव के सहारे होती है। जीव को तो साधुवाद देते हैं अजीव को नहीं। आपने कहा कि हमें पदार्थ की अवहेलना नहीं करनी चाहिए। हमारे कर्म लगे हुए हैं वे सारे अजीव हैं। अजीव से दु:ख भी मिलता है। दु:ख नाम का तत्व ऐसा है कि उससे हर एक डर लगता है। सही मायनों में डर भी अपराध पर अकुंश लगाने में सहायक बनता है। आदमी दु:खी होता है। अपने प्रमाद से किए हुए कार्यों से। मृत्यु का डर लगने से धार्मिकता की प्रेरणा मिलती है। आचार्य ने कहा कि बारह भावनाओं में पहली भावना अनुपे्रक्षा की है मोह को तोडऩे का एक साधन है अनित्य अनुप्रेक्षा। अनित्य का चिंतन अच्छा उपक्रम है। हर व्यक्ति अनित्य अनुप्रेक्षा का अभ्यास करें। इससे चिंतनधारा अध्यात्मपूर्वक होती है। आचार्य ने कहाकि जीवन परिवार के संबंध पैसा, नाम व ख्याति सब अनित्य है तो मृत्यु भी है आत्मा तो स्थाई है। आत्मा तो आगे भी रहेगी। इस अवसर पर मंत्री मुनि सुमेरमल लाडनूं ने भी उद्बोधन दिया। संचालन मुनि हिमांशुकुमार ने किया।