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Jasol: 17.10.2012
Acharya Mahashraman told in his Pravachan to try to become pure. He told purity of body is important but purity of mind is more important. He advised people to look into inner world of self.
News in Hindi
व्यक्ति बने निर्मल: आचार्य महाश्रमण
जसोल. 17.10.12. साभार: भास्कर न्यूज., प्रस्तुति - संजय मेहता.
तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने व्यक्ति को अपने चित्त को निर्मल बनाने की प्रेरणा देते हुए कहा कि व्यक्ति के मन में निर्मलता का संचार होना चाहिए। उसे सोचना चाहिए कि जिस प्रकार सिद्ध भगवान चंद्रमा से भी ज्यादा निर्मल है तो मुझे भी आत्मा को निर्मल बनाने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि शरीर की निर्मलता का अपना महत्व है, परंतु मन की निर्मलता का विशेष महत्व है। आचार्य मंगलवार को जसोल में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे।
आचार्य ने कहा कि साधक आदमी को अंतर्मुखी बनना चाहिए। साधना के क्षेत्र में साधक के अंतर्मुखी बनने की अपेक्षा रहती है। व्यक्ति का ध्यान आत्मा की ओर जाए। आचार्य ने नवरात्रा पर व्यक्तियों या साधकों की ओर से की जाने वाली कामनाओं के बारे में कहा कि किसी व्यक्ति के बुरे की कामना करना अधम व निम्न स्तर की कामना है। किसी के बुरे की भी नहीं और अध्यात्म की भी नहीं, ऐसी कामना मध्यम कामना होती है और उत्तम कामना वह होती है, जो दूसरों की पवित्र सेवा की हो। आत्मा साधना अच्छी चले। व्यक्ति लोगों के उद्गार और कषाय मुक्ति की कामना करें। ऐसी कामनाएं उत्तम व उच्चतम स्तर की होती है। साधु के मन में या तो उच्च स्तर की कामना रहे या वह निष्काम बन जाए। कार्यक्रम के प्रारंभ में आचार्य ने नवाह्निक जप अनुष्ठान का प्रयोग करवाया। मंत्री मुनि सुमेरमल का प्रेरणादायी उद्बोधन हुआ। मुनि किशनलाल ने जप के संदर्भ में विचार व्यक्त किए। संचालन मुनि हिमांशु कुमार ने किया।