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Jasol: 12.09.2012
Acharya Mahashraman said for success in life discipline of sensory organs and mind is necessary. He advised to follow 11 rules of Anuvrata code of conduct for good life.
News in Hindi
इंद्रिय और मन का अनुशासन जरूरी: आचार्य
जसोल(बालोतरा) १२ सितम्बर २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
जीवन की सफलता के लिए इंद्रिय और मन का अनुशासन जरूरी है। संयम का अभ्यास करने वाला जीवन शैली को उन्नत बना लेता है। भारतीय साहित्य में मन को ही बंधन और मुक्ति का हेतु माना है। ये उद्बोधन आचार्य महाश्रमण ने तेरापंथ भवन में अणुव्रत शिक्षक संसद के समापन समारोह में दिए। उन्होंने कहा व्रत की साधना से जीवन सुंदर बनता है।
जीवन में श्रेष्ठता के लिए अणुव्रत के ग्यारह नियमों की परिपूर्ण आराधना होनी चाहिए। आत्मानुशासन के विकास पर बल देते हुए आचार्य ने कहा कि इंद्रिय और मन निरवध है तथा क्षायोपशमिक भाव है। ये हमारी आत्मिक उपलब्धि है। इंद्रिय और मन के व्यापार को संयत बनाकर आध्यात्मिक जीवन जी सकते हैं। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि ज्ञान अमृत है। उससे जीवन में पवित्रता का संचार होता है। ज्ञान के साथ आचार जरूरी है। अणुव्रत आचार शुद्धि का महान आंदोलन है। समारोह में डॉ. महावीर गोलेच्छा, कमलेश चौपड़ा, शांति देवी तलेसरा व कमलादेवी ओस्तवाल ने भी विचार व्यक्त किए। साथ ही गोलेच्छा परिवार की बहनों एवं महिला मंडल गांधीनगर की ओर से गीतिका की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम का संचालन मुनि हिमांशु कुमार ने किया।
अनशन अलौकिक तप: मुनि मदन कुमार ने कहा कि अनशन अलौकिक तप है और अनशन की साधना महान भाग्योदय है। मुनि ने बताया कि अनशनरत साध्वी वैराग्य श्री के अनशन के बाद बाबूलाल देवता ने तपस्यारत रहने का संकल्प आचार्य महाश्रमण से स्वीकार किया है।