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Jasol: 10.09.2012
Acharya Mahashraman said that knowledge is very important. A person without knowledge is like a blind person. Guru can give right knowledge. Disciples should have respect for Guru. He also pointed out hurdles to get knowledge. Anger, ego, addiction, laziness and disease are five hurdles to get knowledge so remove all these things for getting knowledge.
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ज्ञानहीन व्यक्ति अंधे के समान: आचार्य महाश्रमण
जसोल(बालोतरा) १० सितम्बर २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
मानव के जीवन में शिक्षा का महत्व है। ज्ञानहीन व्यक्ति एक प्रकार से अंधा होता है और जो इस अज्ञानता के अंधकार को दूर कर दे वह उपकारी होता है। अज्ञान एक अभिशाप है, उससे आदमी को मुक्त होना चाहिए। स्वयं के पास प्रज्ञा, समझ, शक्ति नहीं होने पर शास्त्र भी उपकार नहीं कर सकते। यह शिक्षा के महत्व को उजागर करने वाला मंगल वक्तव्य जैन तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने राष्ट्रीय अणुव्रत शिक्षक संसद संस्थान के 20 वें राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान दिए। उन्होंने कहा गुर अंधकार को मिटाने वाले होते हैं, शिक्षक व शिक्षार्थी का एक संबंध होता है। प्रारंभ में शिक्षक पर शिक्षार्थी निर्भर होता है। आचार्य ने कहा कि विद्यार्थी के मन में गुरु के प्रति अद्योभाव हो। गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के लिए उन्हें प्रणिपात करो, शिष्य गुरु का शिष्य ही बनकर रहे। उन्होंने कहा कि ज्ञान की प्राप्ति में क्रोध, प्रमाद, अहंकार, नशा, रोग, आलस्य बाधक तत्व है। इन तत्वों से शिष्यों को, विद्यार्थियों को दूर रहना चाहिए।
शिक्षक संसद के शिक्षकों के लिए आचार्य ने कहा कि अणुव्रती शिक्षक के जीवन में शिक्षक होना और अणुव्रती होना दो-दो अर्हताएं होती है। उनमें विद्या के साथ आचार भी होते हैं। विद्या व आचार होने से व्यक्ति मुक्ति को प्राप्त कर सकता है। आचार्य ने कहा कि कागज की पोथी का भी महत्व है जो ज्ञान के विकास में निमित बनती है। शिक्षक को शिक्षार्थी को अपने जीवन की पोथी से भी ज्ञान दे। अणुव्रत शिक्षक संसद एक अच्छा संगठन है। इससे जुड़े शिक्षक अणुव्रत के प्रचार पर ध्यान देते रहें। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि जीवन में ज्ञान की प्रधानता होने पर व्यक्ति बहुत कुछ जान लेता है फिर आगे बढ़ता है। जीवन में ज्ञान के साथ जीवन को जीना चाहिए।
सम्यक्त्व वाला व्यक्ति उतार व चढ़ाव में हमेशा संभलकर चलता है। सम्यक्त्व से आगे बढऩे वाला धैर्य को काम में लेता है। वह ज्ञान को जीने वाला बन जाता है। जानने से ज्यादा जीने वाले का महत्व है। व्यक्ति की प्रज्ञा जानने पर उसके भीतर का विवेक जाग जाता है। उन्होंने कहा कि शिक्षक का जीवन ज्ञानमय है। वह अपने आचार व्यवहार से पढ़ाने का प्रयास करे। अणुव्रत को लेकर चलने वाले शिक्षक प्रकाश को हाथ में लेकर चलते हैं और आदर्शवान, संकल्पशील शिक्षक अज्ञानता को हटाने के महान कार्य में सफल हो सकते हैं। कार्यक्रम के प्रारंभ में मुनि विजयकुमार ने प्रेरणादायी गीत की प्रस्तुति दी।
मुनि मदन कुमार ने इस संदर्भ में विचार व्यक्त किए। राष्ट्रीय अणुव्रत शिक्षक संसद संस्थान के अध्यक्ष भीखमचंद नखत, मदनलाल कावडिय़ा, डॉ. हीरालाल श्रीमाली, धर्मचंद जैन, धर्मेंद्र आचार्य व साधु शरण सिंह सुमन ने अपने विचाराभिव्यक्ति दी। सभी शिक्षकों ने एक साथ अणुव्रत गीत का संगान किया और 42 लाख नशामुक्ति के संकल्प पत्र आचार्य को उपहृत की।
अणुव्रत समिति उदयपुर के अध्यक्ष गणेश डागलिया व मंत्री अरुण कोठारी ने 2011-12 वार्षिक प्रतिवेदन आचार्य को भेंट किया। डालमचंद दाड़म ने अपनी प्रस्तुति दी। सोमवार से जैन रामायण का रात्रि को प्रवचन प्रारंभ होगा। जैन रामायण का वाचन स्वयं आचार्य महाश्रमण करेंगे।
राष्ट्रीय अणुव्रत शिक्षक संसद संस्थान के 20 वें अधिवेशन का शुभारंभ