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Jasol: 08.09.2012
Acharya Mahashraman in his book explained that without discipline no development is possible.
News in Hindi
अनुशासन के बिना विकास का मार्ग अवरुद्ध -महाश्रमण जी
जसोल(बालोतरा) ०८/०९/२०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
विकास का एक उपाय है अनुशासन, जहां अनुशासन नहीं होता, वहां विकास का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। अनुशासन स्वयं पर किया जा सकता है और दूसरों पर भी किया जा सकता है। जब तक बच्चे छोटे होते हैं, समझ शक्ति पूर्णरूप से विकसित नहीं होती और जिसमें आत्मानुशासन की क्षमता नहीं होती अथवा व्यवस्था की अपेक्षा रहती है, वहां परानुशासन चलता है। यह ठीक है, किंतु इससे भी ऊंची बात है कि आदमी में आत्मानुशासन का विकास हो। उत्तराध्ययन सूत्र में सुंदर कहा गया कि वरं में अप्पा दंतो- यह ज्यादा अच्छा है कि मैं स्वयं अपने आप पर अनुशासन करुं। आत्मानुशासन में दो शब्द हैं, आत्मा और अनुशासन, अर्थात अपने आप पर अनुशासन, प्रश्न हो सकता है कि आत्मा तो अरुप है, उसे देखा नहीं जा सकता, फिर उस पर अनुशासन कैसे किया जा सकता है? यह ठीक है कि आत्मा दिखाई नहीं देती, किंतु आत्मा के कर्मचारी दिखाई देते हैं। उन पर अनुशासन करने से आत्मा पर अनुशासन हो जाता है। आत्मा के चार कर्मचारी है- शरीर, वाणी, मन और इंद्रियां। आत्मा का पहला कर्मचारी है, शरीर। जो व्यक्ति अपने शरीर पर अनुशासन कर लेता है, शरीर से दुश्चेष्टा नहीं करता, शरीर से कोई गलत काम नहीं करता, तो मानना चाहिए कि उसने आत्मा का एक अंश प्राप्त कर लिया अथवा आत्मा के एक अंश पर अनुशासन कर लिया। आत्मा का दूसरा कर्मचारी है-वाणी। वाणी पर अनुशासन कर लिया जाए तो कुछ अंशों में आत्मानुशासन सिद्ध हो सकता है। आत्मा का तीसरा कर्मचारी है-मन। मन पर अनुशासन करना बहुत कठिन काम है। मन की दो अवस्थाएं है- एक व्यग्र अवस्था और दूसरी एकाग्र अवस्था। व्यग्र अवस्था में आदमी का मन विभिन्न बिंदुओं पर घूमता रहता है। जब आदमी का मन एक बिंदु पर केंद्रित हो जाता है, वह मन की एकाग्र अवस्था होती है। आत्मा का चौथा कर्मचारी है-इंद्रियां। कान, आंख, नाक व जिह्वा और त्वचा, ये पांच इंद्रियां है। इनके द्वारा ज्ञान भी होता है और भोग भी होता है। कान के द्वारा शब्द का, आंख के द्वारा रुप का, नाक के द्वारा गंध का, जिह्वा के द्वारा रस का और त्वचा के द्वारा स्पर्श का ज्ञान भी होता है और भोग भी होता है। इंद्रियां केवल भोग का साधन न बनें। उनसे सद्ज्ञान भी करना चाहिए। आत्मानुशासन दुष्कृत्य से बचने का एक उपाय है। व्यक्ति अपने शरीर, वाणी, मन और इंद्रियों पर अनुशासन पर आत्मानुशासन की दिशा में अग्रसर हो सकता है और अपने जीवन में विकास कर सकती है।