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विकास की हो समीक्षा: आचार्य
जसोल(बालोतरा) २६ अगस्त २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
विकास महोत्सव का एक ध्येय सूत्र है वर्धमान बनो। इसके दो अर्थ भी है। पहला आगे बढ़ते रहो और दूसरा वर्धमान यानि महावीर बनो। यह वर्धमान बनने की प्रेरणा देने वाला मंगल पाथेय आचार्य महाश्रमण ने शनिवार को जसोल में विकास महोत्सव के कार्यक्रम के अवसर पर प्रदान किया।
आचार्य ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ में विकास देखा जा सकता है। विकास की समीक्षा भी होनी चाहिए। समीक्षा का उपयोग होने पर विकास अच्छा हो सकता है। जहां सारणा-वारणा, प्रवर्तन, निवर्तन, ध्यान नहीं देने पर बाधा उत्पन्न हो सकती है। आचार्य तुलसी ने विकास के लिए बहुत प्रयास किए थे और दूसरों को भी प्रेरणा दी थी। वे सारणा-वारणा करते थे। आचार्य ने कहा कि आचार्य तुलसी का अपना पराक्रम था। आचार्य महाप्रज्ञ ने तेरापंथ के विकास में बहुत योगदान दिया और तेरापंथ के दसों आचार्यों का ही तेरापंथ में विकास में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। संघ की सुरक्षा करना भी बड़ी बात है और परंपरा को अक्षुण्ण बनाए रखना भी बड़ी बात है। आचार्य ने कहा कि हमारे धर्मसंघ में अनेक गतिविधियां संचालित है। कार्यकर्ता भी काफी समय व श्रम का नियोजन करते हैं, अर्थ भी लगाते हैं और विकास में योगदान देते हैं। आचार्य ने प्रेरणा देते हुए कहा कि संस्थाओं में पारदर्शिता बनी रहे। क्योंकि समाज संस्थाओं पर विश्वास करके अर्थ देता है। जो लोग अर्थ की घोषणा करते हैं, वे जल्दी ही उस अर्थ के स्वामित्व से मुक्त हो जाए, यह उत्तम भावना होती है। आचार्य ने इसके साथ ज्ञानशाला को बाल पीढ़ी को सुसंस्कारित करने का महत्वपूर्ण उपक्रम बताते हुए अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान व जीवन विज्ञान जैसे सार्वजनिक उपक्रमों का जिक्र किया। इससे पूर्व आचार्य ने विकास महोत्सव के आधारभूत पत्र का वाचन किया और भैक्षव शासन में नव्य विकास चाहिए गीत का संगान किया।
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ की सूझबूझ का अवदान है, विकास महोत्सव। विकास शब्द सबको अच्छा लगता है। तेरापंथ धर्मसंघ आज विकास के शिखर पर खड़ा है। इसके विकास में पूर्वाचार्यों का भी अनन्य योग रहा है। उन्होंने कहा कि संघ, समाज के विकास से राष्ट्र का विकास जुड़ा है। अध्यात्मक के क्षेत्र में विकास का पथ अनंत है। कार्यक्रम में साध्वी, यशोधरा, साध्वी कल्पलता, मुनि किशनलाल, साध्वी ललितप्रभा, साध्वी नंदिता, साध्वी रति प्रभा, साध्वी जिन प्रभा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। साध्वी योगप्रभा, समणी वृंद व साध्वी वृंद की ओर से गीतिका की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम के प्रारंभ में विकास परिषद के संयोजक लालचंद सिंधी ने अपने विचार रखे। तेविप के महामंत्री संपत मल नाहटा ने सभी केंद्रीय संस्थाओं पदाधिकारियों के पद विसर्जन पत्र आचार्य के चरणों में उपहृत किए।
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कार्यक्रम का संचालन मुनि हिमांशु कुमार ने किया। कार्यक्रम के अंत में संघगान किया गया।
आचार्य ने किया गीत का संगान, झूम उठा पांडाल: आचार्य ने विकास महोत्सव के अवसर पर स्वयं द्वारा रचित गीत 'भैक्षव शासन में नव्य विकास चाहिए' गीत का संगान किया तो पूरी परिषद झूम उठी।
कार्यक्रम के दौरान आचार्य ने साध्वियों साध्वी चांद कुमारी लाडनूं, साध्वी यशोधरा लाडनूं, साध्वी गुलाब कंवर, साध्वी बिदामा व साध्वी सूरज कुमारी को शासन का संबोधन प्रदान किया। आचार्य ने कुछ गृहस्थों को महादानी श्रावक व महादानी श्राविका के अलंकरण से अलंकृत किया। वे ऐसे गृहस्थी है, जिन्होंने अपने पुत्र, पुत्री को संघ सेवा में गुरु चरणों में उपहृत किया है। इस दौरान बच्छराज चौरडिय़ा, स्व. मूलचंद श्यामसुखा, मदनलाल छाजेड़ व भीखी देवी सेठिया को अलंकरण से अलंकृत किया गया।