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साध्वी वैराग्यश्री ने किया संथारा स्वीकार:
जसोल (बालोतरा) ११७ अगस्त २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
जैन शासन परंपरा में मृत्यु को भी महोत्सव के रुप में बनाने की विधि है। जहां व्यक्ति मृत्यु का सामना करता है और आत्मा की कर्म निर्जरा करते हुए आत्मकल्याण करता है। यह विधि है संलेखना विधि। आचार्य महाश्रमण की कृपा व आज्ञा प्राप्त कर साध्वी वैराग्यश्री ने संथारा स्वीकार किया। सवेरे आचार्य उन्हें दर्शन देने साध्वियों के ठिकाने आए। साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा भी साध्वियों सहित वहां बैठी थी। आचार्य ने साध्वी वैराग्यश्री को चिकित्सकीय जांच करवाने, सिघांड़ा बनाकर चातुर्मास करने की बात कही, पर साध्वी अपने निर्णय पर अडिग थी। साध्वी प्रमुखा ने गुरु इच्छा को सर्वोपरि बताया। तब आचार्य ने साध्वी की प्रबल भावना को देखते हुए सवेरे ७ बजकर १५ मिनट पर विविहार संथारे का प्रत्याख्यान करवाया। इस अवसर पर साध्वी श्वेतप्रभा ने साध्वी वैराग्यश्री के विचारों को पढ़कर सुनाया। ज्ञात रहे कि साध्वी वैराग्यश्री के एक पुत्र मुनि देवेन्द्रकुमार व पुत्री साध्वी श्वेतप्रभा धर्मसंघ में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इस अवसर पर साध्वी के संसारपक्षीय पारिवारिकजन भी उपस्थित थे।