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दानों में सबसे बड़ा है अभयदान- आचार्य महाश्रमण
दुनिया में अनेक प्रकार के दान किए जाते हैं। अन्नदान, जलदान, वस्त्रदान, नेत्रदान, अर्थदान एवं अन्य अनेक प्रकार के दान दिए जा सकते हैं। प्रश्र होता है, इन सबमें श्रेष्ठ दान कौन-सा है? आर्षवाणी में कहा गया, 'अभयप्पयाणं' अभयदान सबसे बड़ा दान है। किसी ने भोजन दे दिया किंतु सामने वाला व्यक्ति यदि भयभीत है तो वह उसे कितना पुष्ट कर पाएगा? किसी ने पानी पिला दिया किंतु सामने वाला भयभीत है तो वह पानी उसे कितना तृप्त कर सकेगा? महारानी अपने दो राजकुमारों के साथ महल में बैठी थी। तीनों नीचे की ओर झांक रहे थे। उन्होंने एक दृश्य देखा। पुलिस कर्मचारी एक अपराधी को पकड़कर ले जा रहे थे। पूछताछ के बाद पता चला कि उसको फांसी की सजा मिलने वाली है। महारानी को दया आ गई कि बेचारा एक बार गलती करने मात्र से मारा जाएगा। इस बार इसकी गलती को माफ कर देना चाहिए। महारानी ने अपराधी को ऊपर बुला लिया। बड़े राजकुमार से कहा कि यह अपराधी है। इसे फांसी की सजा मिलने वाली है। तुम इसे क्या दे सकते हो? बड़े राजकुमार ने कहा कि मैं इसे बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन करा सकता हंू। फिर महारानी ने छोटे राजकुमार से पूछा कि बोलो, तुम इसे क्या दे सकते हो? उसने कहा कि मैं पिताजी से निवेदन कर इसे अभयदान दिला सकता हूं। अपराधी से पूछा गया, बड़ा राजकुमार तुम्हें बढिय़ा भोजन करा सकता है और छोटा राजकुमार तुम्हें जीवनदान/अभयदान दे सकता है, तुम किसे स्वीकार करोगे? अपराधी ने कहा कि महारानीजी! मुझे तो मौत सामने दीख रही है। मुझे भोजन नहीं, अभयदान चाहिए। छोटे राजकुमार ने अपने पिता से निवेदन कर उसको फांसी की सजा से मुक्त करा दिया। उसे अभयदान दे दिया। इस दान के सामने भोजन, वस्त्र, मकान आदि अन्य सभी दान बौने प्रतीत होते हैं। आदमी के जीवन में जितना प्रमाद होता है। वह उतना ही असफल होता है और जितना अप्रमाद होता है उतना सफल होता है। कभी-कभी थोड़ा सा प्रमाद भी मौत से ज्यादा भयंकर हो जाता है। प्रमाद भय है, दोष है और आत्मा का शत्रु है। प्रमाद जहां भय का कारण बनता है, अप्रमाद आदमी को अभय की ओर ले जाता है। अभय वहां होता है जहां अहिंसा का वातावरण होता है, शांति का माहौल होता है। आदमी स्वयं अभय बने और दूसरों को भी भयमुक्त बनाएं तो सुख और शांतिपूर्ण जीवन जी सकता है।
आचार्य महाश्रमण
जसोल(बालोतरा) १४ अगस्त २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो