ShortNews in English
Jasol: 09.08.2012
Acharya Mahashraman said emotional development is important principal of Jeevan Vigyan. People should try to increase emotional development. He also told reason for Moksha and Bondage is connected with our good or bad emotion.
News in Hindi
बंधन व मोक्ष का कारण है भाव: आचार्य
जसोल(बालोतरा) ०९ अगस्त २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
.तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने प्राणियों की विभिन्न वृत्तियों के बारे में कहा कि प्राणी की भावधारा परिवर्तित होती रहती है। व्यक्ति में कभी माया, छलना, कभी ऋजुता, कभी लालची तो कभी संतोषी, कभी क्रोधी तो कभी शांति के भाव आते रहते हैैं। मनुष्य में हिंसा, अहिंसा, अच्छाई, बुराई, संस्कार, सद्भाव, असद्भाव भाव होते हैं। जीवन विज्ञान के बारे में आचार्य ने कहा कि जीवन विज्ञान का महत्वपूर्ण सिद्धांत भावात्मक विकास है। व्यक्ति में भावात्मक विकास होना चाहिए। बुद्धि से बड़े-बड़े काम, समस्या का समाधान, भलाई की जा सकती है। बुद्धि के आधार पर समस्या का सृजन व दूसरों का बुरा भी किया जा सकता है। आचार्य बुधवार को जसोल में चातुर्मास धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बुद्धि खराब चीज नहीं है।
यह तो साधना की निष्पति है। लेकिन जो बुद्धि मोह के साथ जुड़ जाती है वो खराब कर सकती है और अच्छे कर्मों के साथ जुड़कर अच्छे काम कर सकती है।
व्यक्ति के मन-वचन-कार्य की उजली प्रवृत्तियां मोह कर्म के हटने पर ही होती है। मोह कर्म के अलग रहने पर मैली हो जाती है। व्यक्ति का भाव शुद्ध रहने पर प्रवृत्ति खराब नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि मन ही बंध व मोक्ष का कारण है। विषयासक्त मन बंधन का कारण होता है।
विषयाविरक्त मन मोक्ष का कारण है। इसी तरह भाव ही बंधन व मोक्ष का कारण है। बंधन व मुक्ति व्यक्ति के भीतर है। भाव शुद्ध होने पर मुक्ति संभव है। इसलिए व्यक्ति को भावात्मक शुद्धि के विकास पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्वस्थ चित्त होने पर बुद्धि की अच्छी स्फुरणा होती है। शुद्ध-बुद्धि कामधेनु होती है। विद्यार्थियों में बुद्धि व ज्ञान विकास जरूर हो, पर ज्ञान सूचनात्मक ही नहीं, लौकिक ही नहीं अलौकिक व अध्यात्मक ज्ञान भी हो। विद्यार्थियों में भावात्मक विकास होने पर अर्हता आ सकती है। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि व्यक्ति प्रवृति में आसक्ति नहीं रखें। आसक्ति होने पर प्रवृत्ति गं्रथि बन जाती है। इसलिए व्यक्ति आवश्यकता के सिवाय कोई प्रवृत्ति ना करें। धार्मिक व्यक्ति की सफलता यही है कि वह आसक्ति से बचें। धार्मिक व्यक्ति प्रवृति करते हुए भी आसक्त नहीं बनता। कार्यक्रम के प्रारंभ में मुनि मदनलाल ने वक्तव्य दिया। बोरावड़ से अर्ज के लिए समागत संघ की ओर से बोरावड़ महिला मंडल ने गीत के माध्यम से अर्ज की भावना व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि हिमांशु कुमार ने किया।