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Jasol: 31.07.2012
Acharya Mahashraman Inspired People to Accept 12 Vows for Householder.
News in Hindi
श्रावक रात्रि भोजन का त्याग करें: आचार्य
जसोल(बालोतरा) जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
जसोल में सोमवार को धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य महाश्रमण ने कहा कि साधक चारित्र की साधना से आत्म निग्रह करता है और कर्म के आगमन के द्वार को निरुद्ध करता है। उन्होंने कहा कि चारित्र की साधना त्याग प्रत्याख्यान के माध्यम से की जाती है। श्रावक में त्याग-प्रत्याख्यान, श्रद्धा, ज्ञान व विवेक का होना आवश्यक है। जो श्रावक बारह व्रतों को स्वीकार कर लेता है, उसके जीवन में त्याग प्रत्याख्यान का समावेश हो जाता है।
उन्होंने कहा कि श्रावक को साधु बनने की भावना करनी चाहिए। यह साधु का एक मनोरथ होता है। भावना होने पर मौका भी मिल जाता है और राह भी मिल जाती है। आचार्य ने प्रेरणा देते हुए कहा कि श्रावक खाने का संयम करे। रात्रि भोजन का त्याग करे। जमीकंद का त्याग करे, व्यसनों का त्याग करे। आचार्य ने महासभा की ओर से आयोजित प्रतिनिधि सम्मेलन-2012 के समापन कार्यक्रम में उपस्थित संभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि इस प्रकार के सम्मेलनों में मिलन होने से एक स्फूर्ति आती है। अच्छे उद्देश्य के साथ मिलन निष्पतिदायक होता है। हमारे श्रावकों में अच्छी निष्ठा, श्रद्धा व लगन है। धर्मसंघ में आचार्य का स्थान सर्वोपरि है और श्रावक आचार्य के इंगितानुसार चलते हैं। आचार्य ने कार्यकर्ताओं को सादगी से रहने की प्रेरणा देते हुए कहा कि कार्यकर्ता सादगी के प्रति जागरुक रहे। सादगी का अपना सहज प्रभाव होता है। साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने कहा कि अधिवेशन आइना होता है, जिसमें विगत प्रतिबिंबों को देखा जा सकता है। समीक्षा की जा सकती है। साथ में आगामी वर्ष के कार्यक्रमों का भी निर्धारण होता है। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि हमारा धर्मसंघ, बहुआयामी धर्मसंघ है। सभा सभी दायित्वों को ग्रहण कर चलने वाली संस्था है। इसलिए सभा का सक्रिय होना जरूरी है। ज्ञानशाला को सभा, महासभा संभालती है। इनके लिए आचार्यों का इंगित व निर्णय सर्वोपरि है। मुख्य नियोजिका साध्वी विश्रुतविभा ने कहा कि तेरापंथ महासभा तेरापंथ में व्यक्तित्व निर्माण की संस्था प्रतीत हो रही है। इसकी ओर से संचालित ज्ञानशाला के माध्यम से व्यक्तित्व का निर्माण होता है। उपासक श्रेणी के माध्यम से भी कार्य हो रहा है। कार्यक्रम की शुरूआत में प्रकाश डागलिया की ओर से सभा गीत 'मिला यह तेरापंथ महान' प्रस्तुत किया गया है। महासभा प्रभारी मुनि विश्रुतकुमार ने कहा कि आचार्य के पाथेय को सभी सदस्य अपने तक ही सीमित न रखें, उसे अपने क्षेत्र में भी प्रसारित करें। महासभा महामंत्री विनोद चौरडिय़ा ने विचार व्यक्त किए। महा सभाध्यक्ष हीरालाल मालू ने दक्षिण कोलकाता को श्रेष्ठ सभा व सूरत व गदग सभा को विशिष्ट सभा घोषित किया। महासभा उपाध्यक्ष व सम्मेलन संयोजक विनोद बैद ने आभार प्रकट किया।