ShortNews in English
Balotara: 24.05.2012
Acharya Mahashraman in his book how to live emphasized to control over anger. Anger can be defined in two ways. Administrators enforce discipline and for that he can use some tools. Anger affects badly us in many ways.
News in Hindi
क्रोध से बचें
बालोतरा २४ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
प्रश्न उठता है कि कोई भी व्यक्ति क्रोधित होना नहीं चाहता, फिर क्रोध क्यों आता है? क्रोध दो प्रकार का है, एक क्रोध मात्र दिखावटी होता है। मन में क्रोध के भाव नहीं होते, मात्र भाषा में कठोरता होती है। जो अनुशास्ता होते हैं, बड़े समुदाय का नेतृत्व करते हैं, उन्हें कई बार कृत्रिम रोष दिखाना पड़ता है। हालांकि बिना कठोरता के भी काम चल सकता है पर अनेक बार अनुशासनात्मक कार्यवाही करते समय लाल आंख दिखानी जरूरी हो जाती है। कठोर भाषा का भी सहारा लेना होता है। उसके पीछे पवित्र उद्देश्य रहता है, सामने वाले व्यक्ति को सुधारना। गुरुदेव तुलसी को मैंने निकटता से देखा है। उनका अनुशासन कठोरता और कोमलता दोनों का संगम था। उनका मानना था कि रोगी को देखकर दवा दी जाती है। दवा कड़वी भी हो सकती है, मीठी भी हो सकती है। लक्ष्य एक ही है, रोगी रोग मुक्त हो जाए। जिस व्यक्ति में कमजोरियां हैं उसे ठीक करना है। ठीक करने में अनुशास्ता को भी कहीं वज्र की तरह कठोर बनना होता है तो कहीं फूल की तरह मृदु बनना होता है। यह क्रोध अप्रशस्त नहीं कहलाता। जिस क्रोध में व्यक्ति स्वयं का भान भूल जाए, विवेक खो दे, वैसा क्रोध सबसे अधिक घातक होता है। इससे दूसरे का नुकसान होता है या नहीं, क्रोध करने वाले का अहित तो हो ही जाता है। क्रोध से बचने के अनेक उपाय हो सकते हैं। एक उपाय है-जिस समय क्रोध आए उस वक्त व्यक्ति दस मिनट का मौन कर ले। मौन क्रोध को विफल करने का बहुत अच्छा उपाय है। गुरुदेव तुलसी इस संदर्भ में एक कहानी कहा करते थे। माता-पिता की इकलौती लड़की थी। माता-पिता के अतिरिक्त प्यार-दुलार ने उसे उच्छृंखल बना दिया। वह किसी के सामने कुछ भी बोलने में संकोच नहीं करती थी। ईंट का जवाब पत्थर से देने में माहिर थी। वह ससुराल गई। सारा परिवार उसके अशिष्ट व्यवहार से तंग आ गया। वह स्वयं भी दु:खी हो गयी। उसे ससुराल का हर सदस्य बुरा प्रतीत हो रहा था। व्यक्ति की आंखों पर जैसा चश्मा होता है उसे सारा दृश्य वैसा ही दिखाई देता है। वह एक बार पितृ गृह गई। पिता ने पूछा, बेटी, ससुराल कैसा लगा? पिता के पूछते ही जैसे उसके धैर्य का बांध टूट गया। वह बोली, पिताजी, क्या बताऊं? ससुर गृह तो नरक के समान है और सास-ससुर आदि सभी राक्षसी वृत्ति के हैं। ऐसे ससुराल में भेजने से तो अच्छा था कि आप मुझे अंधकूप में धकेल देते। मैं ससुराल में पुन: पैर धरना नहीं चाहती। पिता अपनी बेटी के व्यवहार से अनभिज्ञ नहीं था। उसने कहा, बेटी यह दवा है। जिस समय गुस्सा आए, उसी क्षण इस दवा का एक घूंट मुंह में लेना है पर ध्यान रहे, इसे निगलना नहीं है। लगभग दस मिनट मुंह में रखने के बाद उसे थूक देना। लड़की ने वैसा ही किया। ज्योंही क्रोध का प्रसंग उपस्थित होता वह मुंह में दवा डाल लेती। धीरे-धीरे क्रोध अपने आप शांत हो गया। कुछ समय बाद पिता के पूछने पर उसने ससुराल को स्वर्ग तुल्य बताया। यह सब कैसे हुआ? क्रोध पर विजय पाने से। मौन क्रोध पर विजय पाने का एक महत्वपूर्ण उपाय है। यह संभव न हो तो उस स्थान से उठकर अन्यत्र चले जाने से भी क्रोध शांत हो सकता है। क्रोध आए उस समय श्वास दर्शन या श्वास-संयम भी बहुत बड़ा आलंबन बन सकता है। आदमी लम्बा श्वास ले, लम्बा श्वास छोड़े और साथ में सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा करे तो यह प्रयोग क्रोध-शमन के साथ स्वस्थता एवं मानसिक एकाग्रता की दृष्टि से भी बहुत उपयोगी बन सकता है।
इस प्रकार शरीर, मन और वचन इन तीनों योगों को साध लिया जाए तो सहिष्णुता का गुण स्वत: विकसित हो जाएगा। सहिष्णुता का विकास आदमी की चेतना में शांति और आनंद का अवतरण करने वाला सिद्ध होगा।
आचार्य महाश्रमण
आओ हम जीना सीखें