19.05.2012 ►Balotara ►How to Speak is an Art ► Acharya Mahashraman

Published: 19.05.2012
Updated: 21.07.2015

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Balotara: 19.05.2012

Acharya Mahashraman said that speaking is art. Speak only meaningful. Never speak what is not necessary.

News in Hindi

कैसे बोलें?

बालोतरा १९ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
जीवन में क्रियातंत्र को संचालित करने वाले तीन तत्व हैं, मन, भाषा और शरीर। भाषा संबंधों को विस्तार देती है। समाज का निर्माण भाषा से होता है। पशुओं के पास विकसित भाषा नहीं होती शायद इसीलिए उनके समूह को समाज भी नहीं कहा जाता। भाषा के अंतर के भावों की अभिव्यक्ति होती है। हम अपने विचारों को बोलकर दूसरों तक पहुंचा सकते हैं। बोलने की क्षमता संसार के सब प्राणियों के पास नहीं होती। स्थावर जीवों के पास भाषा होती ही नहीं है। एक मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसके पास व्यक्त भाषा है। उसे बोलने की क्षमता प्राप्त है। यहां भी यह विचारणीय है कि मनुष्य में भी वाणी का विकास सबका एक जैसा नहीं होता। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो बोलते तो हैं पर बोलते समय तुतलाते हैं, हकलाते हैं। वे स्पष्टता से अपनी बात नहीं रख पाते। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनकी भाषा तो स्पष्ट होती है पर भावों को अभिव्यक्ति करना नहीं जानते। ऐसी स्थिति में वे व्यक्ति भाग्यशाली होते हैं जो अच्छी तरह बोल सकते हैं। अपनी बात को स्पष्टता से दूसरों तक पहुंचा सकते हैं।

बोलना एक कला त्नबोलना एक बात है, कलापूर्ण बोलना दूसरी बात है। वाणी का सदुपयोग भी किया जा सकता है, दुरुपयोग भी किया जा सकता है। वाणी से मनुष्य समस्या पैदा भी कर सकता है और समाधान भी। वाणी से कल्याण का पथ भी दिखलाया जा सकता ह।ै प्रश्न है कि बोलना कैसे चाहिए? इस प्रश्न के उत्तर में चार महत्वपूर्ण सूत्रों को समझना चाहिए। वे चार सूत्र हैं, मितभाषिता, मधुरभाषिता, सत्यभाषिता, समीक्ष्यभाषिता।

मितभाषिता त्न मितभाषिता अर्थात् अल्पभाषिता। इसका अर्थ है, कम बोलना। जितना अपेक्षित हो उससे अधिक नहीं बोलना। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो अनावश्यक बहुत बोलते हैं। इधर-उधर की बातें करने में उन्हें बड़ा रस आता है। थोड़ी सी किसी की बात उन्हें मिल जाए तो उसको फैलाए बिना उनका खाना भी हजम नहीं होता। यह वाणी का असंयम है। वाणी-संयम का एक महत्वपूर्ण उपक्रम है मौन। मौन का मूल अर्थ है, ज्ञान किंतु प्रचलित अर्थ है न बोलना। कई व्यक्ति दिनभर में घंटे, दो घंटे, पांच घंटे या उससे भी अधिक मौन लेते हैं, यह अच्छी बात है। पर कई व्यक्ति ऐसे भी हो सकते हैं जो कई घंटों का मौन करने के बाद जब बोलना शुरू करते हैं तो न बोलने की पूरी कसर निकाल लेते हैं। मौन के संदर्भ में मैं कई बार करता हूं कि कुछ समय के लिए मौन करना अच्छा है किंतु अनावश्यक न बोलने का संकल्प उससे भी अधिक अच्छा है। इस मौन के लिए घंटे- दो घंटे का समय निर्धारित करने की अपेक्षा नहीं है। यह मौन चौबीस घंटे रखा जा सकता है। इससे व्यवहार भी नहीं रूठता और सहज मौन सध जाता है।

आचार्य महाश्रमण

आओ हम जीना सीखें
बालोतरा १९ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो

Sources

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Sushil Bafana

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