ShortNews in English
Balotara: 17.05.2012
Acharya Mahashraman explained good points of how to eat. Apply Sanyam while taking food. Keep good difference of time between two meals. Give attention towards digestion. Keep mind fresh and peaceful when take food.
News in Hindi
कैसे खाएं?
बालोतरा १७ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो के लिए
बालोतरा त्नभोजन जीवन की एक अनिवार्यतम अपेक्षा है। शरीर को तंदुरूस्त रखने के लिए हर आदमी को भोजन करना होता है। भोजन करना एक बात है। विवेकपूर्ण भोजन करना दूसरी बात है। प्रश्न होता है-कैसे खाएं? इस प्रश्न के उत्तर में तीन महत्वपूर्ण सूत्र दिए जा सकते हैं, मित भोजन, हित भोजन और ऋत भोजन।
मित भोजन: मित भोजन अर्थात् अधिक न खाना, भूख से दो ग्रास कम खाना। दो चपाती की भूख हो तो डेढ़ चपाती खाना लाभदायक हो सकता है पर दो की जगह ढाई-तीन चपाती खाना बीमारी को निमंत्रण देना है। एक बार उचित मात्रा में भोजन कर लिया जाए, उसके बाद कोई स्वादिष्ट वस्तु भी सामने आए तो मन पर कंट्रोल होना चाहिए। यथासंभव खाने का प्रयास न हो। एक बार अच्छी मात्रा में भोजन होने के बाद तीन-चार घंटे पेट को विश्राम मिलना चाहिए। कई लोग त्याग करने का अच्छा क्रम रखते है। दिन में दो घंटे, तीन घंटे, पांच घंटे जितना सम्भव हो, खाने का त्याग कर देते हैं। यह एक अच्छी बात है। इससे सहज तप:साधना सध जाती है, खाने का संयम हो जाता है और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी हितकर है।
मैं जब छोटा बच्चा था, साधुओं के पास जाया करता था। वहां एक वृद्ध श्रावक से मिलना हुआ। उनके पास एक छोटी सी पुस्तिका थी। उस पर लिखा था- खाते-पीते मोक्ष। मैंने जानकारी की कि खाते-पीते मोक्ष कैसे हो सकता है। खाने का एक घंटे का त्याग कर दो, एक बिंदु लगा दो। फिर त्याग करो, दूसरा बिंदु लगा दो। इस प्रकार इस पुस्तिका के सब कोष्ठक भरे जाते हैं। इसका एक ही उद्देश्य है कि त्याग की दिशा में व्यक्ति की अधिक से अधिक गति हो। यह तब संभव हो सकता है जब व्यक्ति का जिह्वा पर संयम हो। सामान्यत: खाना पूरा हो जाए, उसके बाद चाहे मनोज्ञ पदार्थ भी सामने क्यों न आ जाए, खाने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। खाने में जल्दबाजी करना भी अनुचित है। जो धीरे-धीरे चबा-चबा कर खाता है, उसके लिए खाद्य-संयम काफी आसान हो जाता है। खाते समय व्यक्ति का दिमाग भी शांत होना चाहिए। कहा गया है-ईष्र्या, भय, क्रोध, लोभ आदि स्थितियों में किए गए आहार का परिपाक सम्यक नहीं होता है। जठराग्नि मंद हो जाती है। जैन तपो विधि में आहार-संयम के कई प्रयोग विहित है, अनशन यानी उपवास आदि। ऊनोदरी यानी नवकारसी, प्रहर आदि। एक अवस्था आ जाने के बाद व्यक्ति सांयकाल का भोजन कम कर दे या बिल्कुल छोड़ दे तो शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टियों से उचित हो सकता है।
आचार्य महाश्रमण
बालोतरा १७ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो के लिए