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Balotara: 15.05.2012
Acharya Mahashraman said that people should practice religion. Religion is way to purify soul. Welfare of soul is possible by religion.
News in Hindi
आत्मशुद्धि व आत्मकल्याण का मार्ग है धर्म: आचार्य
बालोतरा बालोतरा १५ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
आचार्य महाश्रमण ने धर्म की भावना को अनुप्रेक्षा बताते हुए कहा कि धर्म आत्मशुद्धि व आत्मकल्याण का मार्ग है। दान को धर्म की संज्ञा देते हुए आचार्य ने कहा कि गृहस्थ जीवन में रहने वाला शुद्ध साधु को सविधि दान देता है तो वह धर्म है। साधु को श्रद्धा के साथ दान देकर वह साधु की साधना में सहायक बनता है। इससे साधु के कर्म निर्जरा के साथ उस दान देने वाले के कर्मों की निर्जरा भी होती है। ये विचार आचार्य महाश्रमण ने सोमवार को नया तेरापंथ भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि किसी कारणवश या दूर-दराज के देशों में दान का लाभ नहीं मिलता है तो दान देने की भावना करना भी धर्म है।
आचार्य ने शील को धर्म का एक प्रकार बताते हुए कहा कि शील की साधना भी अपने आप में एक बड़ी साधना है। गृहस्थ को स्वदार व स्वपति संतोष रखना चाहिए। उन्हें अपने पति या पत्नी के अलावा परपुरुष या पराई स्त्री की कल्पना भी नहीं करनी चाहिए। साधु को तो यह साधना करनी अनिवार्य ही है पर गृहस्थ को भी यथासंभव प्रयास करना चाहिए। उन्होंने तपस्या के बारे में कहा कि तप के द्वारा प्राणी अपने कर्मों को काट सकता है। इसलिए तप द्वारा व्यक्ति अपने धर्म के संचय से जीवन का कल्याण कर सकता है। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि व्यक्ति के बहुआयामी जीवन में कई अनुकूलताएं और प्रतिकूलताएं आती है लेकिन व्यक्ति को हर परिस्थिति में संतुलित रहकर आगे बढ़ते रहना चाहिए। आचार्य ने 'निहारा तुमको कितनी बार' गीत प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में मुनि राजकुमार ने 'छोड़ो क्यूं नी क्रोध रो नशों' गीत की प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि हिमांशु कुमार ने किया। प्रवास व्यवस्था समिति के संयोजक देवराज खींवसरा, मंत्री शांतिलाल शांत व आवास व्यवस्था के संयोजन धनराज ओस्तवाल ने व्यवस्थाओं का नियमित रूप से जायजा लेकर आए हुए संभागियों की व्यवस्था में सहयोग कर रहे हैं।