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गुरु का काम ज्ञान देना और समाज का पथ प्रदर्शन करना है-अहिंसा प्रणेता आचार्य महाश्रमण
योग्य गुरु को मार्गदर्शक बनाएं
आमेट २० जनवरी २०१२ जैन तेरापंथ समाचार ब्योरो
अहिंसा प्रणेता आचार्य महाश्रमण ने गुरु को सबसे बड़ा मार्ग दर्शक बताते हुए सीख दे कि लोग गुरु की बताई बातों का अनुसरण करते हुए अपने लक्ष्य की दिशा निर्धारित करें। गुरु का भी दायित्व है कि वह ऐसे शिष्य तैयार करें जो उनके स्वयं के स्थान पर सुशोभित हो सकें। यह भावी व्यवस्था के लिए आवश्यक भी है। जो गुरु अपने शिष्यों को अपने समकक्ष बनने की योग्यता विकसित कर देता है, वह योग्य होता है। ऐसे योग्य गुरु को अपना मार्गदर्शक बनाना चाहिए।
आचार्य श्री अमृत महोत्सव प्रवचन माला के तीसरे दिन गुरुवार को धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि गुरु का काम ज्ञान देना और समाज का पथ प्रदर्शन करना है। इसके लिए वह अलग-अलग तरीकों का भी इस्तेमाल करते है। तेरापंथ धर्म संघ में आचार्य के दो रूप देखने को मिलते हैं। एक गुरु और दूसरा शास्ता। शिष्यों, श्रावकों और समाज को आगे बढ़ाने में गुरु अपने दायित्व का निर्वाह करता है। संघ की रक्षा तथा इनसे जुड़े प्रत्येक बिंदु पर मनन करने का कार्य शास्ता का होता है। शांतिदूत ने कहा कि व्यक्ति को सबसे पहले अपनी मंजिल तय करने की चेष्टा रखनी चाहिए। प्रत्येक को मार्ग की अपेक्षा रहती है। यह नहीं है, तो मार्गदर्शक अनपेक्षित हो जाता है। हमें लक्ष्य निर्धारण की तरफ विशेष ध्यान देना चाहिए। हमें वीतरागता, मोक्ष और मुक्ति की ओर पूर्णता के साथ पहुंचना है। मार्ग, गति और लक्ष्य सही है तो मंजिल की प्राप्ति हो सकती है। इस अवसर पर साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने भी विचार व्यक्त किए। संयोजन मुनि मोहजीतकुमार ने किया।