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Lava Sardargarh: 14.01.2012Dharamsangh is Greater Than Acharya: Acharya Mahashraman
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लावासरदारगढ़ में दो दिवसीय वर्धमान महोत्सव के समापन
लावासरदारगढ़ १४ जनवरी २०१२ जैन तेरापथ न्यूज ब्योरो
आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि श्रमण संघ चतुर्विद होता है साधु, साध्वी, श्रावक व श्राविकाएं। वर्तमान समय में चतुर्विद धर्मसंघ के आध्यात्मिक शास्ता आचार्य होते हैं। तेरापंथ शासन में चतुर्विद धर्मसंघ का आधिपत्य एक आचार्य में निहित होता है। वर्धमान महोत्सव एक वृद्धि, समृद्ध प्रेरणा देने वाला हो सकता है।
आचार्य महाश्रमण शुक्रवार को राजकीय चिकित्सालय परिसर में आयोजित दो दिवसीय वर्धमान महोत्सव के समापन समारोह में श्रावक श्राविकाओं को उद्बोधन दे रहे थे। आचार्य श्री ने कहा कि हमारे में निष्ठा होनी चाहिए, हम आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढ़े, आत्मा को निर्मल बनाएं। उन्होंने कहा कि वे आचार्यों से बड़ा संघ या धर्म शासन को मानते हैं। छोटी मोटी बातों को लेकर संघ के प्रति होने वाली निष्ठा में कमजोरी नहीं आनी चाहिए। संघ का प्रवाह लम्बा है। आचार्य ने कहा कि सेवा के आगे सभी अलंकरण फीके हैं। तेरापंथ आज्ञा व मर्यादा को सर्वोपरि मानता है, जहां आज्ञा नहीं है वहां शून्य है और शून्य की कोई कीमत नहीं है। दो दिवसीय वर्धमान महोत्सव के समापन समारोह में आचार्य महाश्रमण व सभी साधु साध्वियों श्रमण श्रेणी एवं उपस्थित श्रावक श्राविकाओं ने खड़े होकर संघीय मर्यादाओं के अनुसार हाथ जोड़कर तेरापंथ धर्मसंघ के संघीय गीत का संगान किया। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।
धर्मसभा में साध्वी प्रमुख कनक प्रभा ने कहा कि हम सब इस पवित्र तेरापंथ धर्मसंघ की मंगल कामना करते हैं संघ का कल्याण ही हमारा कल्याण है वह धर्मसंघ हमारे प्राण, प्रतिष्ठा व संघ का मौलिक आधार है। संघ से ही हमारा अस्तित्व है। समारोह में मुनि सुव्रत कुमार ने दुनिया में संघ अनेकों हैं इस धर्मसंघ का क्या कहना काव्य पाठ किया तो पूरा पांडाल ऊं अर्हम की ध्वनि से गूंज उठा। कार्यक्रम में साध्वी विमला प्रज्ञा, समणी ज्योति प्रज्ञा ने भी विचार रखे। साध्वी कंचन कुमारी लाडनूं द्वारा लिखित षडावश्यक पुस्तक का आचार्य महाश्रमण ने विमोचन किया।
तुलसी जन्म शताब्दी पर सौ दीक्षा का लक्ष्य:
जैन तेरापथ न्यूज ब्योरो
आचार्य महाश्रमण ने कहा कि बिना लक्ष्य के कोई कार्य संभव नहीं है। इसके चलते हमने भी वर्ष 2013 कार्तिक शुक्ला द्वितीया दिवस पर कम से कम एक सौ दीक्षाएं करवाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। यही कार्य गुरुदेव तुलसी के चरणों में सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इस कार्य में सभी साधु साध्वियों श्रमण श्रेणी के साथ साथ श्रावक श्राविकाओं का सहयोग चाहिए।