09.11.2011 ►Kelwa ►Sanskar Are Necessary with Knowledge► Acharya Mahashraman

Published: 09.11.2011
Updated: 21.07.2015

Short News in English

Location: Kelwa
Headline: Sanskar Are Necessary with Knowledge► Acharya Mahashraman
News: Acharya Mahashraman told students to give importance to good Sanskar with knowledge. He also said that Jeevan Vigyan teach art of living. Try to develop will power. Anuvrata Movement started by Acharya Tulsi fulfills activity of morality and spirituality.

News in Hindi

ज्ञान के साथ संस्कार आवश्यकञ्ज -आचार्य महाश्रमण

केलवा ९ नवम्बर २०११ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो

आचार्य महाश्रमण ने विद्यार्थियों में ज्ञान के साथ संस्कार की भी आवश्यकता प्रतिपादित करते हुए कहा कि आज के परिवेश में यह जरूरी है कि युवा पीढ़ी हमारे संस्कारों से विमुख न हो। संस्कारों से बच्चों में भावनात्मक संपन्नता आती है। आचार्य ने यह विचार यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास के दौरान मंगलवार को विद्यार्थियों और श्रावक समाज को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने ज्ञान को जीवन में आलोक बिखेरने वाला बताते हुए कहा कि आदमी में ज्ञान की परिणति होनी चाहिए। हमारे आचार शुद्ध और निर्मल बने रहें। इसकी आज के परिवेश में महत्ती आवश्यकता है। बच्चों को स्कूली जीवन के दौरान ही संस्कार का बीजारोपण किया जाए तो इसका भविष्य में फल भी अच्छा मिल सकता है। उन्होंने कहा कि जीवन विज्ञान विषय जीवन जीने की कला सिखाता है। जीवन में संकल्प का विकास हो। आचार्यश्री तुलसी की ओर से शुरू किया गया अणुव्रत आंदोलन एवं जीवन विज्ञान धार्मिकता, आध्यात्मिकता एवं नैतिकता का भाव पुष्ट करने वाली गतिविधि है।

गुरु की कठोर बातों को सहने वाला बनता है महान:

उन्होंने कहा कि गुरु द्वारा यदा कदा व्यक्त की जाने वाली कठोर बातों, उलाहना, परिषद के बीच डांटने की प्रवृत्ति को विनयपूर्वक ग्रहण करने का प्रयास करेंगे, तो हमारा जीवन सार्थक हो सकता है। गुरु को इस बात का अधिकार होता है कि वह अपने शिष्य और समाज के किसी व्यक्ति को गलती करने पर उलाहना दे सकता है। जो शिष्य अपने गुरु की डांट को सह लेते हैं। गुस्से और आवेश में नहीं आता। वह महानता की ओर अग्रसर होता है। संघ में ऊंचे ओहदे पर आसीन होने का मौका मिलता है। हमारे धर्म संघ में साधु-साध्वियां गुरु के उलाहने को अमृत समझकर स्वीकार करते हैं।

प्रमाद से दूर रहने का प्रयास हो:

आचार्य ने संबोधि के छठे अध्याय में उल्लेखित प्रमाद और अप्रमाद को परिभाषित करते हुए कहा कि कर्म बंधन का एक कारण प्रमाद को माना गया है। यह दो तरह के होते हैं आंतरिक और आध्यात्मिक। जिस व्यक्ति में असंयम की भावना हो, वह बाण कहलाता है और जिसमें संयम की भावना पुष्ट हो वह स्वयं का संयमी होता है और पंडित कहलाता है। शास्त्रों में इसकी परिभाषा इस तरह से की गई है कि ढाई अक्षर प्रेम के जो सीख जाता है, वह पंडि़त कहलाता है। उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति दूसरे को प्रेरणा प्रदान करने वाला बनता है वह व्यक्ति जीवन में विकास के पथ पर अग्रसर होता है। मनुष्य को भी चाहिए कि वह लोगों को कुछ न कुछ करने की प्रेरणा प्रदान करता रहे। इससे स्वयं के साथ दूसरों का भी विकास संभव हो सकेगा। इससे व्यक्ति में तेजस्विता बढ़ती है।

सामान्य आदमी से साधु ऊंचा:

आचार्य ने सामान्य आदमी से साधु को ऊंचा बताते हुए कहा कि साधु में व्यक्ति के मुकाबले ज्यादा त्याग और संयम की भावना होती है। तेरापंथ धर्म संघ में दो बार प्रतिक्रमण करने की विधि है। यह अच्छी परंपरा है। इसे साधारण नहीं समझा जाए। यह सम्मान और निर्मलता बढ़ाने वाली होती है। प्रतिक्रमण को एक तरह का स्नान बताते हुए आचार्य ने कहा कि जिस तरह से व्यक्ति अपने जीवन को स्वच्छ बनाने के लिए स्नान करता है उसी तरह साधु भी प्रतिक्रमण कर इस विधि को पूरा करता है। वह अपनी आत्मा का स्नान करता है। हाजरी भी अमृतवाणी की भांति होती है।

मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि व्यक्ति आध्यात्मिकता में जितना ज्यादा रहने का प्रयास करता है उतनी ही उसे आनंद की अनुभूति होती है। मनुष्य को धर्म की ओर बढऩे की आवश्यकता है इससे समाज और देश का विकास संभव हो सकेगा। इस अवसर पर मुनि नीरजकुमार, प्रमोद मूथा नेधर्म से समाज का विकास:

भी विचार व्यक्त किए। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।


Sources

Jain Terapnth News

News in English: Sushil Bafana

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