Short News in English
Location: | Kelwa |
Headline: | Keep Away Raga And Dvesha For Sadhana of Non-violence► Acharya Mahashraman |
News: | Acharya Mahashraman mentioned 32nd chapter of Uttaradhyayana Sutra and told for Sadhana of non-violence keep away from raga and dvesha. He told in 5th chapter of sambodhi definition of non-violence given in detail. Body will finish one day but soul is eternal. |
News in Hindi
राज योग वालों को मिलती है दीक्षा:: महाश्रमण
अहिंसा की साधना के लिए राग-द्वेष छोड़ें: महाश्रमण
तेरापंथ समवसरण में चातुर्मास के तहत गुरुवार को प्रवचन में कहा, अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल का 36वां राष्ट्रीय महिला अधिवेशन शुरू
केलवा Published on 23 Sep-2011 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अधिशास्ता आचार्य महाश्रमण ने राग-द्वेष को छोडऩे की आवश्यकता प्रतिपादित करते हुए कहा कि अहिंसा की उत्कृष्ट साधना के लिए हमें इसका परित्याग करना होगा। व्यक्ति में द्वेष की भावना उस समय प्रबल होती है जब उसमें अपनी किसी प्रिय वस्तु के प्रति दिलचस्पी बढ़ती है। अगर वह इसके प्रति त्याग की भावना का जीवन में समावेश करे तो द्वेष स्वत: ही समाप्त हो सकता है।
आचार्यश्री ने यह उद्बोधन तेरापंथ समवसरण में चातुर्मास के तहत गुरुवार को व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि संबोधि के पांचवें अध्याय में अहिंसा को विस्तारपूर्वक परिभाषित किया गया है। किसी व्यक्ति की ओर से की जा रही निंदा से भी द्वेष का जन्म होता है। प्रशंसा करने से राग भाव आ सकता है। सुंदर रूप से राग और कुरूप चेहरे से द्वेष का भाव उत्पन्न होता है। उत्तराध्ययन के 32वें अध्याय में उल्लेखित है कि जो परम पदार्थों से दूर हो जाए उसे आत्मा की अनुभूति का अहसास होता है। राग-द्वेष के बिना भी जीवन को जीया जा सकता है। मनोज्ञ पदार्थ से व्यक्ति का मन विचलित हो जाता है। इनके प्रति सजगता लाने की आवश्यकता है। यह स्थायी नहीं है।
शरीर एक दिन नष्ट हो जाएगा :
आचार्यश्री ने कहा कि शरीर एक दिन नष्ट हो जाएगा। संपत्ति और अन्य भौतिक संसाधन भी आज हमारे पास हैं, कल हो न हो, इस बारे में कहा नहीं जा सकता। इसलिए व्यक्ति को मृत्यु निकट आने की अवस्था में धर्म की आराधना की ओर अग्रसर होना चाहिए। इससे मूच्र्छा का भाव कम होता है। जहां संयोग होता है, वहां वियोग की स्थिति भी बनती है। बाहरी संयोग और वियोग को प्राप्त करने की आवश्यकता है।
राज योग वालों को मिलती है दीक्षा :
उन्होंने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ ऐसा संघ है, जिसमें दीक्षा लेने का सौभाग्य राज योग वाले को ही मिलता है। राग आना आसान है, लेकिन इसका परित्याग करना बहुत मुश्किल है। इसीलिए वीतराग बना है। राग चला गया तो द्वेष भी चला जाएगा। पूर्णत: वीतराग बनना मुश्किल ही नहीं बहुत कठिन है। जिसके प्रति ज्यादा आकर्षण है उसे त्यागने की प्रवृति बनाने की आवश्यकता है। इससे राग कम होगा और समता का भाव बना रहेगा।
जन्म के साथ अनेक संभावनाएं जन्म लेती हैं:
मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि व्यक्ति जब जन्म लेता है तो उसके साथ अनेक संभावनाएं जन्म लेती है। हर व्यक्ति में क्षमता और कुछ करने का बल दिखाई देता है। अधिकतर व्यक्ति वातावरण के साथ प्रवाह गति से जीवन को जीने का प्रयास करता है। आचार्यों ने कहा है कि जो व्यक्ति अनुस्रोत में बहता है वह कभी भी इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित नहीं हो पाता। जैसी दुनिया चल रही है उसी के अनुरूप चलता है। हम अगर प्रतिस्रोत पर चलेंगे तो शिखर पर आरूढ़ हो सकेंगे। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।