Short News in English
Location: | Kelwa |
Headline: | Discipline And Devotion To Duty Necessary For Democracy◄ Acharya Mahashraman |
News: | Acharya Mahashraman told that for democracy Discipline and devotion to duty is necessary. Discipline is also necessary for social organisation. Terapanth Sect give special values to Discipline. Families also maintain Discipline. |
News in Hindi
अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा जरूरी: महाश्रमण
अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा जरूरी: महाश्रमण
केलवा में धर्मसभा:आचार्य ने पढ़ाया लोकतंत्र का पाठ
केलवा 05 AGST 2011जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो उदयपुर डेस्क
आचार्य महाश्रमण ने देश में अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा को आवश्यक बताते हुए कहा कि इसके अभाव में अच्छे प्रजातंत्र का सपना साकार करने में कठिनाइयां उत्पन्न हो सकती हैं और लोकतंत्र आहत होता है। अनुशासन और काम के प्रति जिम्मेदारी के बिना अनेक समस्याएं खड़ी होने की संभावना बढ़ जाती है। आचार्य श्री गुरुवार को केलवा चातुर्मास महोत्सव के तहत धर्मसभा में प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने एक वाकये का उल्लेख करते हुए कहा कि केवल प्रजातंत्र ही नहीं वरन सामाजिक संगठनों में भी अनुशासन वांछनीय है। अनुशासन की रूपरेखा नहीं बनेगी तो संगठन का ढांचा धराशायी हो सकता है। तेरापंथ में भी इस बात पर विशेष जोर दिया गया है कि अनुशासन और मर्यादाओं की पालना में कड़े कदम उठाएं जाएं। यही बात परिवार पर भी लागू होती है। घर में इन बातों का पालन नहीं होगा, तो प्रतिष्ठा धूमिल होने का खतरा बढ़ जाता है।
संयम नहीं तो उत्पन्न होंगे विकार:
आचार्य श्री ने संबोधि के तीसरे अध्याय में उल्लेखित कर्म के प्रभाव को परिभाषित करते हुए कहा कि आत्मा कर्म का विकिरण करती रहती है। जैन दर्शन के 14 गुण धारणा की विवेचना करते हुए कहा कि जीवन में संयम बहुत जरूरी है। संयम के बिना कई विकार उत्पन्न होते हैं। आचार्य तुलसी के जैन सिद्धांत दीपिका ग्रंथ में भी संयम के प्रयास को उद्धृत किया गया है। जीवन में निरंतर संयम, साधना नहीं होगी, तो अनुशासन में विकारों की उत्पति हो सकती है। मन में संयम का भाव और आज के भौतिकतावादी परिवेश से परिपूर्ण जीवन को त्यागने की क्षमता मनुष्य में हो तो उसे मोक्ष मार्ग की प्राप्ति अवश्य होती है।
सुख की कामना दुख का प्रमुख कारण: महाश्रमण
केलवा में धर्मसभा में प्रवचन के दौरान आचार्य महाश्रमण ने कहा, मंगलवार रात को हुआ पारिवारिक सौहार्द शिविर का आगाज
केलवा 04 AGST 2011जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो उदयपुर डेस्क
आचार्य महाश्रमण ने भौतिक सुखों की कामना को दु:खों का प्रमुख कारण बताते हुए कहा कि पुण्य के द्वारा मुक्ति नहीं होती। व्यक्ति सुख को खोजते हुए चाहे—अनचाहे दु:खों को आमंत्रण देता है। जैसे-जैसे उत्तम तत्व का ज्ञान होता है, वैसे भोगों के प्रति अनावर्जन पैदा हो जाता है।
आचार्य बुधवार को तेरापंथ समवसरण में दैनिक प्रवचन के दौरान बोल रहे थे।आचार्य ने कहा कि जो मनुष्य तप, आराधना, उपासना और ज्ञान अर्जन में तल्लीन रहता है और निर्जरा की दिशा में अग्रसर होता है, उसे पुण्य का फल मिल सकता है। जिसमें निर्जरा नहीं तो उसे पुण्य की प्राप्ति नहीं होती। मनुष्य प्राय: पुण्य के बदले सुख की कामना करता है। वह सुख तो भोग लेता है, लेकिन विकारों को अपने जीवन में निमंत्रण दे देता है। आचार्य ने काम और भोग को स्पष्ट करते हुए कहा कि दोनों का अनन्य संबंध है। चक्षु को जहां काम संज्ञा दी गई है, वहीं व्यसन को भोग के रूप में परिभाषित किया गया है। कामी इंद्रियां और भोगी इंद्रियों का अलग-अलग वर्णन है। जिह्वा के द्वारा मनुष्य स्वाद का आनंद उठाता है, जबकि चक्षु द्वारा मात्र दूरी से भोग किया जा सकता है।
मोक्ष के लिए भौतिक सुख त्यागें:
पांच इंद्रियों के कारण जीवन में 240 विकार पैदा होने पर आचार्य ने कहा कि इनसे छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को राग-द्वेष से परस्पर दूरी बनाने की आवश्यकता है। जीवन में भौतिक लालसाओं की कामना करोगे तो परम सुख प्राप्त नहीं होगा। मोक्ष के द्वार पर दस्तक देने के लिए भौतिक सुखों को त्यागने की आवश्यकता है।
बच्चों को दें अच्छे संस्कार
आचार्य ने कहा कि बाल्यावस्था में ही अगर बच्चे को भूत इत्यादि का भय दिखाकर डराने का प्रयास करोगे, तो उसमें इसी तरह के संस्कार पैदा हो जाएंगे। उसमें विवेक की शून्यता आ जाएगी। बच्चे को प्रारंभ से ही अच्छे संस्कार देने की आवश्यकता है। उसे अभय बनाने की जरूरत है। इससे उसका भावी जीवन तो सुखमय बनेगा ही साथ ही परिवार और समाज का आशातीत विकास हो सकेगा।
प्रतिकूलता से नहीं घबराएं
मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि मनुष्य जीवन उतार-चढ़ाव का परिचायक है। इसमें अनुकूलता और प्रतिकूलता की स्थिति प्राय: बनती है। प्रतिकूलता को देखकर उससे घबराने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि हालात से सामना करने का प्रयास करें। प्रत्येक अंधेरे के बाद जीवन में प्रभात होता है। अनुकूलता को सहन करने की शक्ति है, तो विपरीत स्थितियों का भी बखूबी सामना करना चाहिए। उन्होंने उदारता को स्पष्ट करते हुए कहा कि जो हम सोचते है वैसा कर नहीं पाते और जैसा नहीं करना चाहते वैसा हमसे हो जाता है। यह मानव जीवन की प्रवृति है। इस अवसर पर मुनि प्रसन्न कुमार ने भी विचार व्यक्त किए। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।
सौहार्द के लिए जरूरी है सहनशीलता
कस्बे के भिक्षु विहार स्थित तेरापंथ समवसरण में मंगलवार रात को शुरु हुए पारिवारिक सौहार्द शिविर में आचार्य महाश्रमण ने कहा कि परिवार में सहनशीलता होगी तो सौहार्द का वातावरण हमेशा बना रहेगा। परिवार के सदस्यों में परस्पर प्रेम का भाव रहेगा, तो किसी भी तरह की विपत्ति आने पर उसका आसानी से सामना किया जा सकेगा। साथ ही सद्भाव का विकास हो सकेगा। व्यवसाय की दृष्टि से अगर सदस्यों से अलग रहना पड़े तो कुछ नहीं, लेकिन परिवार में विघटन की स्थिति उत्पन्न न हो। इस दिशा में ध्यान देने की आज के परिवेश में महत्ती आवश्यकता है। परिवार में सेवा भाव और त्याग की भावना से शांति और समृद्धि हो सकती है। प्रेक्षा प्राध्यापक मुनि किशनलाल ने शांति के सात सोपानों की चर्चा करते हुए बताया कि विश्वास, सहनशीलता, सापेक्षता, युवाग्राहकता, कृतज्ञ भाव परिवार में विकसित हो जाएं तो सौहार्द अपने आप आ जाएगा। डॉ. बजरंग जैन ने विषय की प्रस्तुति दी। मुनि नीरज कुमार ने गीत प्रस्तुत किया। संयोजन देवीलाल कोठारी ने किया।