Short News in English
Location: | Kelwa |
Headline: | Spend Time For Sadhana◄ Acharya Mahashraman |
News: | Acharya Mahashraman told that people should spend time for Sadhana. Soul is eternal. Acharya Mahashraman told Upasak and Upasika to do Sadhana to get Moksha. |
News in Hindi
जीवन का अधिकांश समय धर्म साधना में लगाएं: महाश्रमण
केलवा 26 जुलाई जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
आचार्य महाश्रमण ने कहा कि बच्चा जब गर्भ में आ जाता है तभी से मौत उसका पीछा करना शुरू कर देती है। यह पीछा उस समय तक चलता रहता है जब तक वह मौत मानवरूपी शरीर को दबोच न ले। मौत आने के संकेत से कभी भयभीत नहीं होना चाहिए। शरीर तो एक दिन जाना ही है। आत्मा अमर है। इसलिए मनुष्य को अपने जीवन का अधिकांश समय धर्म और साधना में लगाना चाहिए।
आचार्य श्री यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में सोमवार को प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने श्रावक-श्राविकाओं से आह्वान किया कि वह इस तरह की उपासना करें कि मोक्ष का लक्ष्य और मार्ग सहज ही उपलब्ध हो जाए। उन्हें मोहनीय कर्म से दूर रहने की आवश्यकता है, क्योंकि कर्म क्षीण होने से चेतना प्रभावी होती है और कर्मशील होने पर चेतना का ह्रास होता है। आचार्य ने संबोधि के तीसरे अध्याय में वर्णित चेतना और शरीर के अंतर को परिभाषित करते हुए कहा कि दोनों के स्वरूप में भिन्नता है। चेतना जहां स्थायी व जीव है, वहीं शरीर को अस्थायी माना गया है तथा इसे निर्जीव की संज्ञा दी गई हैं। व्यक्ति चेतना शील है और शरीर- चेतना का परस्पर योग है। शरीर के बिना आदमी का जीवन नहीं है, वहीं चेतना के बिना धर्म का संयोग नहीं बन पाता।
द्वार पर आए साधु, संत को इनकार न करें
साधु के मन में कभी आसक्ति के भाव का समावेश नहीं होता। वह कभी अपना पेट भरने के लिए रसोई का उपयोग नहीं करता। वह गृहस्थ जीवन व्यतीत कर रहे लोगों के द्वार पर भिक्षा लेता है और पेट की क्षुधा को शांत करता है। साधु को दान से महान निर्जरा का हेत करता है। द्वार पर भिक्षा के लिए आने वाले किसी साधु, संत को इनकार नहीं करना चाहिए। यह भिक्षाजीवी होते हैं। साधु में त्याग, संयम, आराधना, उपासना की आवश्यकता को प्रतिपादित करते हुए उन्होंने उपासक प्रशिक्षण शिविर में ज्ञान का अर्जन कर रहे उपासक-उपासिकाओं से आह्नान किया कि उनकी साधना सिद्धत्व की प्राप्ति के लिए हो। उन्हें भौतिक लालसाओं से दूर रहने की आदत डालनी होगी।
धर्म में आस्था रखने वाला तेजस्वी बनता है:
मंत्री मुनि सुमेरमल ने धर्म को जीने की वस्तु की संज्ञा देते हुए उपासक वर्ग को दिए गए इस सूत्र को सभी के लिए उपयोगी बताया। साधु प्रतिदिन चौबीस घंटे ध्यान एवं उपासना में मग्न रहता है, तो श्रावकों को भी चाहिए कि वे धर्म को जीने का उपक्रम बनाएं। धार्मिक व प्रवचन स्थलों पर विशेषताओं को ग्रहण करें। इससे मन आसक्ति की ओर आकृष्ट नहीं होगा। समय व्यर्थ में व्यय करने, खींचतान, कलह और विवाद से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। धर्म साथ रहेगा, तो दूसरे लोगों को भी इसकी प्रेरणा मिलती रहेगी। स्वयं का जीवन धर्ममय हो जाएगा तथा देवता भी उसके धर्म कार्य को नमन करेंगे। उन्होंने कहा कि धर्म, साधना, उपासना करने वाला व्यक्ति तेजस्वी बनता है। इससे संघ ओजस्वी बनेगा और समाज में आध्यात्मिकता का रस घुलेगा। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।
आत्म कल्याण का मार्ग है तत्वज्ञान:
तेरापंथ युवक परिषद की ओर से रविवार रात को आयोजित ‘जैन विद्या कार्यशाला’ में आचार्य महाश्रमण ने कहा कि तत्वज्ञान आत्म कल्याण का मार्ग है। इसके ज्ञान से हम परमपद की प्राप्ति की ओर बढ़ सकते हैं। कार्यशाला में मुनि उदित कुमार ने ‘तत्वज्ञान क्या और क्यों’ विषय पर प्रशिक्षण देते हुए कहा कि नौ तत्वों का ज्ञान होने से कर्म बंधन की की प्रक्रिया को सजाया जा सकता है। जिस क्रिया में कर्मों का बंधन होता है, उससे बचने से भवक्रमण को कम किया जा सकता है। संचालन मुनि जयंत कुमार ने किया।
प्रवचन के दौरान बारिश
कस्बे के तेरापंथ भिक्षु विहार में आचार्य महाश्रमण के चातुर्मास प्रवचन में अजीब संयोग देखने को मिल रहा है। पिछले चार दिन से सुबह के समय आचार्य के प्रवचन शुरू करते ही बारिश शुरू हो जाती है।