Short News in English
Location: | Kelwa |
Headline: | Self Assessment Best Way For Reform◄ Acharya Mahashraman |
News: | Acharya Mahashraman advised people to do self-assessment for reform. People should pay attention that your thinking, conduct and behavior are good. Purity of thinking will solve most of problems. He advised people to spend some time for Sadhana, Upasana and Dhyan. Nasha Mukti Rally was organized by youths. |
News in Hindi
केलवा चातुर्मास के दौरान प्रवचन में बोले आचार्य महाश्रमण सुबह निकाली नशामुक्तिरैली
सुधार के लिए खुद ही करना होगा अपना मूल्यांकन
केलवा २५ जुलाई जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
हमारा विचार, आचार और व्यवहार अच्छा हो। इसके लिए श्रावक-श्राविकाओं को आत्म अवलोकन व मूल्यांकन की जरूरत है। इससे भावों में शुद्धता का समावेश होगा और अनेक समस्याओं का स्वत: ही समाधान हो जाएगा।
यह बात आचार्य महाश्रमण ने यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास में रविवार को दैनिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि उत्तरा शक्ति की साधना से हमारे विचारों में शुद्धता आएगी। अच्छे विचार, आचार का प्रादुर्भाव होगा और व्यवहार में आशातीत परिवर्तन का बोध होगा। संबोधि के तीसरे अध्याय में उल्लेख है कि जिस तरह आदमी का भाव होगा, उसी के अनुरूप वह कर्मों के बंधन में बंधता है। भागवत गीता में कहा गया है कि आसक्ति के प्रभाव से मनुष्य को माया-मोह के कारण विनाश के पथ पर अग्रसर होना पड़ता है। गीता ग्रंथ के दूसरे अध्याय में उल्लेख है कि आदमी चिंतन करता है और दूसरों के संग रहकर वह अपने विचारों का आदान-प्रदान करता है। इस दौरान काम की पूर्ति नहीं होने पर उसे गुस्सा आ जाता है, जो उसे धर्म और साधना से दूर कर विकार, कलह की ओर धकेल देता है। कर्म को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि यह वह चेतना है जो आकर्षण को पैदा करता है। इसे दूर किया जाना चाहिए। मन ही मनुष्य के बंधन और कर्मों को उजागर करता है। उसके कर्म इस बात को इंगित करते हैं कि मन के भाव क्या हैं। इसलिए अच्छे भाव के नियंत्रण के लिए ध्यान और साधना में कुछ समय लीन रहने अथवा उपासना करने की आवश्यकता है।
जैसी भावना होगी वैसी ही सिद्धि:
उन्होंने पाप के कारणों को परिभाषित करते हुए श्रावक-श्राविकाओं से आह्वान किया कि मनुष्य के मन के भीतर विद्यमान लालसा उसे दुष्कर्म की ओर ले जाती है और उसमें विपरीत कार्यों की क्रियान्विति करवाती है। जिसकी जैसी भावना होगी वैसी ही उसकी सिद्धि होगी। उन्होंने डॉक्टर और डाकू की भावना का जिक्र करते हुए कहा कि जहां एक सर्जन मनुष्य का पेट चीरकर उसका इलाज करता है और उसे नया जीवन प्रदान करता है। वहीं डाकू भी आदमी का पेट छुरे से फाड़ता है, लेकिन वह उसे मौत की नींद सुला देता है और स्वर्णाभूषण इत्यादि चुरा लेता है। यहां पेट तो दोनों चीरते है, लेकिन भावना में अंतर है। इसलिए हमें भाव के अंतर को समझकर उसके अनुरूप कार्य करने की आवश्यकता है। आचार्य ने कहा कि अभी धर्मोपासना का समय है। श्रावण मास चल रहा है और शीघ्र भादौ आने वाला है। इस समय ज्ञान की ऐसी खुराक ग्रहण करें, ताकि ध्यान का झुकाव धर्म और साधना के प्रति हमेशा बना रहे।
धर्म के प्रति गंभीर रहे:
मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि जो आस्तिक होता है, वह धर्म करने की मानसिकता रखता है। वह धार्मिक कहलाता है। धर्म करने में गौरव का अनुभव होता है। उन्होंने श्रावक-श्राविकाओं से आह्वान किया कि वे धर्म के प्रति हमेशा गंभीर और चिंतनशील रहें।