24.07.2011 ►Kelwa ►Knowledge Can be Attained By Self Effort◄ Acharya Mahashraman

Published: 24.07.2011
Updated: 02.07.2015
Location:

Kelwa

Headline:

Knowledge Can be Attained By Self Effort◄ Acharya Mahashraman

News:

Acharya Mahashraman told that knowledge can be attained by self-effort. We should control our sensory. He give detail of five gyan described in Jain Agam. Avadhi Gyan is direct knowledge. Acharya Tulsi opined that Acharya Bhikshu got Avadhi Gyan in last moment of his life.  He also told public will be honest if ruler is honest and  example of Chandragupta can be given.

आचार्य महाश्रमण केलवा चातुर्मास के दौरान शुक्रवार को धर्मसभा में प्रवचन दे रहे थे

‘ज्ञानार्जन के समय सहायता की अपेक्षा न रखें’

 आचार्य महाश्रमण केलवा चातुर्मास के दौरान शुक्रवार को धर्मसभा में प्रवचन दे रहे थे

 केलवा 23 JULY 2011 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो सेवा 

 आचार्य महाश्रमण ने कहा कि ज्ञान अर्जित करते समय दूसरे से सहायता की अपेक्षा नहीं रखें। इस तरह की प्रवृति से इंद्रियों पर स्वयं का नियंत्रण नहीं रहता और प्रत्यक्ष की बजाय हम केवल परोक्ष ज्ञान तक ही सीमित होकर रह जाते हैं। 

आचार्य श्री शुक्रवार को भिक्षु विहार में प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने अवधि ज्ञान को परिभाषित करते हुए कहा कि जो व्यक्ति समस्त कामनाओं से विरक्त हो जाता है और ध्यान-साधना की तरफ झुक जाता है। उसे इस तरह के ज्ञान की अनुभूति होती है। इस तरह की स्थिति आचार्य भिक्षु के जीवन के अंतिम समय में रही। उन्हें विशेष ज्ञान हुआ, जिसे आचार्य तुलसी ने अवधि ज्ञान माना। इसलिए मनुष्य में ज्ञान भले ही न हो, लेकिन साधना के प्रति सदैव सचेत रहे। ज्ञान का विकास करे और विकारों को अपने आसपास नहीं आने दे। माया-मोह को मंद करे तो साधना व ज्ञान का विकास स्वत: ही हो जाएगा।

अति कामना के परिणाम समाज के लिए घातक: आचार्य श्री ने कहा कि अति कामना के परिणाम समाज के लिए घातक होते हैं। इससे पाप, अपराध और व्यसन में वृद्धि होती है और ईमानदारी लुप्त हो जाती है। मन में हिंसा का प्रादुर्भाव हो जाता हैं। उन्होंने ईमानदारी के संदर्भ में चंद्रगुप्त का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि जिस राष्ट्र का प्रधानमंत्री ईमानदार, उज्ज्वल भविष्य वाला होता है, तो उसकी जनता भी ईमानदारी पर विश्वास करती हैं। मानव जाति मौत, कष्ट, वेदना और अवमानना से बहुत डरती है। यह हमारी दुर्बलता का परिचायक है। इस संदर्भ में मात्र सोचकर ही हम भयभीत हो जाते हैं। यह भय निरंतर साधना और ध्यान करने से ही दूर हो सकता है।

Sources
Jain Terapnth News

News in English: Sushil Bafana
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