News In English
Location: | Piplani |
Headline: | Avoid Disillusion And Attachment ◄ Acharya Mahashraman |
News: | Acharya Mahashraman delivered his daily pravachan at Piplani. Addressing huge gathering he advised people to avoid disillusion and attachment to get Moksha. Make you heart pure and follow way of honesty and non-violence. People should do daily Sadhana to get pure knowledge. |
News in Hindi:
आचार्य महाश्रमण ने पिपलांत्री में धर्मसभा में कहा‘मोह, छल-कपट छोडऩे की जरूरत’
आचार्य महाश्रमण ने पिपलांत्री में धर्मसभा में कहा, बोरज से पुठोल होकर पिपलांत्री पहुंची अहिंसा यात्रा
पिपलांत्री 20 मई 2011 (जैन तेरापंथ समाचार न्यूज ब्योरो)]
आचार्य महाश्रमण ने कहा कि कलियुग में मोक्ष प्राप्ति के लिए मनुष्य को अपना मन बदलना होगा। जिस तरह पर्यावरण की शुद्धि के लिए हरे पेड़ आवश्यक है, जो पर्यावरण को शुद्ध बनाते हैं। ठीक उसी तरह मन के पर्यावरण को शुद्ध बनाने के लिए भी मोह, मद, लोभ एवं हिंसा को त्यागना जरूरी है। व्यक्ति का मन निर्मल बन जाएगा, तो उसे शिखर तक पहुंचने के लिए कोई कठिनाई नहीं होगी। अहिंसा, दया और निर्मलता से ही सफलता संभव है। आचार्य गुरुवार को पिपलांत्री में धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अनुकंपा की चेतना का विकास करना ही अहिंसा यात्रा का मुख्य उद्देश्य है। जहां अनुकंपा होती है, वहां धर्म का वास होता है, वहां दया की भावना जाग्रत होती है। दया को आत्मसात करने वाले व्यक्ति के जीवन में कभी दु:ख नहीं आएगा। क्योंकि दया दु:ख का विनाश कर देती है। उन्होंने मन को निर्मल बनाने की सीख देते हुए कहा कि ईमानदारी, सत्य एवं अहिंसा के मार्ग पर चलकर मन को शुद्ध एवं निर्मल बनाया जा सकता है। आचार्य प्रवर ने कहा कि जब तक स्वास्थ्य ठीक नहीं होता, तब तक शरीर किसी काम का नहीं होता है। इसके लिए व्यक्ति को नियमित साधना करनी चाहिए, जिससे ज्ञान का संचार और कल्याण हो सके। उन्होंने आधुनिक युग में दिनों दिन बढ़ते यातायात के साधनों को हिंसक बताते हुए कहा कि वाहन सिक्के के दो पहलू के समान है। एक तो गंतव्य तक जाने के लिए काफी सुविधाजनक है और दूसरी तरफ कभी दुर्घटना होने पर मानव का भक्षण कर लेते है। इसके अलावा यातायात के साधनों से हजारों छोटे बड़े जीवों की हत्या भी होती है। इसलिए वाहन का दूसरा पहलू हिंसक है।
परम शब्द सिर्फ आचार्य के लिए: आचार्य महाश्रमण ने कहा कि मित्र, माता पिता, गुरु अथवा बड़ों को पुकारने अथवा बातचीत के शब्दों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। जैसे ‘परम’ शब्द का उपयोग सिर्फ आचार्य के लिए किया जा सकता है। ठीक उसी तरह ‘महामहिम’ शब्द का उपयोग सिर्फ राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल के लिए किया जाता है। इसलिए किसी को सम्मान देने के लिए शब्दों का ध्यान रखना चाहिए।
संतों में भेदभाव न रखें:-आचार्य महाश्रमण
आचार्य महाश्रमण ने कहा कि प्रकृति में भिन्नता है, ठीक उसी तरह संत जनों के साथ आमजन में भी भिन्नता है। इसलिए संत जन भी स्वभाव, तार्किक शक्ति एवं वाचाल से अलग अलग हो सकते हैं, लेकिन संतों की भावना हमेशा निर्मल ही होती है। इसलिए किसी संत को ऊंच नीच की भावना से नहीं देखना चाहिए। स्वभाव के आधार पर किसी संत की अवहेलना नहीं करनी चाहिए।
आचार्यश्री ने पुठोल में धरे पगल्ये:
बोरज से विहार कर आचार्य प्रवर के पुठोल पहुंचने पर श्रावकों ने अगवानी की तथा प्रवचन स्थल पर पधारने का आग्रह किया। प्रवचन स्थल पर जाने के लिए श्रावकों ने मिट्टी खोदकर मार्ग में डाल दी। जहां आचार्य श्री एवं अन्य मुनिजनों के लिए खोदी हुई मिट्टी पर चलना वर्जित है। इस कारण आचार्य श्री अन्य मार्ग से प्रवचन स्थल पहुंचे।