Updated on 07.07.2020 20:58
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#प्रेक्षावाणी : श्रंखला - ४७५* ~
*भावनात्मक #स्वास्थ्य और #प्रेक्षाध्यान - १*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लें।
देखें, जीवन बदल जायेगा, जीने का दृष्टिकोण बदल जायेगा।
प्रकाशक
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🌻 #संघ #संवाद 🌻
Updated on 07.07.2020 20:18
👉 मुम्बई - मंत्र दिक्षा कार्यक्रम👉 जयपुर ~ मंत्र दीक्षा कार्यक्रम
👉 सूरत-उधना ~ अणुव्रत समिति द्वारा इम्यूनिटी वर्धक काढ़ा का वितरण
👉भायंदर ~ मुम्बई स्तरीय मंत्र दीक्षा कार्यक्रम में सहभागिता
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प्रस्तुति : 🌻 *संघ संवाद*🌻
Updated on 07.07.2020 12:42
👉 हावड़ा ~ अणुव्रत समिति द्वारा "प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता" का आयोजन👉 बहरामपुर (पश्चिम बंगाल) ~ जैन संस्कार विधि से तेरापंथ भवन का शिलान्यास
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प्रस्तुति : 🌻 *संघ संवाद*🌻
🪔🪔🪔🪔🙏🌸🙏🪔🪔🪔🪔
जैन परंपरा में सृजित प्रभावक स्तोत्रों एवं स्तुति-काव्यों में से एक है *भगवान पार्श्वनाथ* की स्तुति में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित *कल्याण मंदिर स्तोत्र*। जो जैन धर्म की दोनों धाराओं— दिगंबर और श्वेतांबर में श्रद्धेय है। *कल्याण मंदिर स्तोत्र* पर प्रदत्त आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रवचनों से प्रतिपादित अनुभूत तथ्यों व भक्त से भगवान बनने के रहस्य सूत्रों का दिशासूचक यंत्र है... आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति...
🔱 *कल्याण मंदिर - अंतस्तल का स्पर्श* 🔱
🕉️ *श्रृंखला ~ 78* 🕉️
*30. विरोध में अविरोध का साक्षात्*
विरोध और मैत्री— इन दो शब्दों पर विचार करें। विरोध दो प्रकार का होता है— एक विरोध वह होता है जो दूसरे के प्रति शत्रुता का भाव पैदा करता है। एक विरोध वह होता है जिसके नीचे मैत्री होती है और वह विरोध उपयोगी भी होता है। संस्कृत साहित्य में श्लोक आता है—
*जलस्य वह्निना वैरं, विधात्रा परिकल्पितम्।*
*सुपात्रं यदि मध्यस्थं, नृणां भोगाय कल्पते।।*
सब जानते हैं कि पानी व अग्नि में विरोध है। बीच में पात्र आ गया तो पानी गर्म हो गया। सर्दी के दिनों में गर्म पानी बहुत उपयोगी होता है। सुपात्र की मध्यस्थता ने विरोध को उपयोगिता में बदल दिया। विरोधी तत्त्वों के बीच मैत्री का पात्र चाहिए। अगर अग्नि व जल के बीच पात्र न हो तो जल अग्नि को बुझा देगा। न जल उपयोगी रहेगा और न अग्नि की उपयोगिता सिद्ध होगी। बीच में पात्र आया, दोनों उपयोगी बन गए। न अग्नि नष्ट हुई, न पानी नष्ट हुआ। पानी की उपयोगिता बढ़ गयी और अग्नि की उपयोगिता प्रमाणित हो गई।
यह व्यवहार-क्षेत्र की बात है। कविजनों ने साहित्य के क्षेत्र में भी इसके प्रयोग किए हैं। उन्हें पढ़ते हैं तो लगता है— विरोध है वह वास्तव में सचाई है। संस्कृत काव्यों में विरोधाभास अलंकार का प्रयोग किया जाता है। कवि सिद्धसेन ने भी इस अलंकार का प्रयोग किया है। वे पार्श्व प्रभु की स्तुति में कह रहे हैं आप विश्वेश्वर हैं। विश्व के ईश्वर, विश्व में सर्वाधिक धनाढ्य हैं। दूसरी ओर वे कह रहे हैं— आप दुर्गत हैं, दरिद्र हैं। एक व्यक्ति विश्व का मालिक, स्वामी भी है और दरिद्र भी।
यह कथन कितना विचित्र-सा लगता है कि विश्वेश्वर होने पर भी आप दुर्गत हैं। दुर्गत शब्द की मीमांसा हम दो प्रकार से कर सकते हैं। *दुर्गतः—दुःखेन गम्यते* अर्थात् जिसे जानना हमारे लिए मुश्किल हो। प्रभो! एक ओर आप संपूर्ण विश्व के ईश्वर हैं, दूसरी ओर आप हमारे लिए अगम्य/दुर्गम्य बने हुए हैं। वृत्तिकार ने दुर्गत का दूसरा अर्थ किया है दरिद्र। आप केश की दृष्टि से दरिद्र हैं, आपके सिर पर केश नहीं हैं। तीर्थकर का यह अतिशय होता है कि उनके केश बढ़ते नहीं हैं। जितने हैं उतने ही रहते हैं। कवि ने उसका उपयोग कर लिया कि एक ओर तो आप विश्वेश्वर कहलाते हो, दूसरी ओर केश रहित हैं। केशराशि अलंकार है, सौन्दर्य का प्रतीक है। वे केश भी आपके पास नहीं हैं।
आचार्य सिद्धसेन कहते हैं— भगवन्! आप अक्षर हैं पर आपकी कोई लिपि नहीं है। यानी आप अक्षर प्रकृति वाले हैं, मोक्ष की प्रकृति वाले हैं। आपके कोई लेप नहीं हैं, इसलिए लेप रहित हैं। अक्षर का एक अर्थ है मोक्ष। प्राचीन जैन साहित्य और गीता में मोक्ष अथवा निर्वाण के लिए 'अक्षर' शब्द का प्रयोग मिलता है। जो शाश्वत है, जिसका क्षय नहीं होता, वह है अक्षर। मोक्ष समस्त कर्मों का आत्यन्तिक क्षय होने से प्राप्त होता है अतः उसका कभी क्षय नहीं होता। दूसरी तरफ वर्णमाला के शब्द भी अक्षर हैं। वर्णमाला का कभी क्षय नहीं होता, अतः वह शाश्वत है। शब्द की रचना बदलती रहती है पर अक्षर कभी नहीं बदलते। शाश्वत, स्थायी रहते हैं। वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर ध्वनि है। उसे लेखन में अभिव्यक्त करने के लिए लिपि का सहारा लेना पड़ता है। 'अ' अक्षर है तो उसे किसी न किसी लिपि से ही व्यक्त करना होगा।
*भगवान् पार्श्वनाथ अज्ञ लोगों के रक्षक हैं... भगवान् की इस विलक्षणता...* के बारे में जानेंगे... समझेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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जैन परंपरा में सृजित प्रभावक स्तोत्रों एवं स्तुति-काव्यों में से एक है *भगवान पार्श्वनाथ* की स्तुति में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित *कल्याण मंदिर स्तोत्र*। जो जैन धर्म की दोनों धाराओं— दिगंबर और श्वेतांबर में श्रद्धेय है। *कल्याण मंदिर स्तोत्र* पर प्रदत्त आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रवचनों से प्रतिपादित अनुभूत तथ्यों व भक्त से भगवान बनने के रहस्य सूत्रों का दिशासूचक यंत्र है... आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति...
🔱 *कल्याण मंदिर - अंतस्तल का स्पर्श* 🔱
🕉️ *श्रृंखला ~ 78* 🕉️
*30. विरोध में अविरोध का साक्षात्*
विरोध और मैत्री— इन दो शब्दों पर विचार करें। विरोध दो प्रकार का होता है— एक विरोध वह होता है जो दूसरे के प्रति शत्रुता का भाव पैदा करता है। एक विरोध वह होता है जिसके नीचे मैत्री होती है और वह विरोध उपयोगी भी होता है। संस्कृत साहित्य में श्लोक आता है—
*जलस्य वह्निना वैरं, विधात्रा परिकल्पितम्।*
*सुपात्रं यदि मध्यस्थं, नृणां भोगाय कल्पते।।*
सब जानते हैं कि पानी व अग्नि में विरोध है। बीच में पात्र आ गया तो पानी गर्म हो गया। सर्दी के दिनों में गर्म पानी बहुत उपयोगी होता है। सुपात्र की मध्यस्थता ने विरोध को उपयोगिता में बदल दिया। विरोधी तत्त्वों के बीच मैत्री का पात्र चाहिए। अगर अग्नि व जल के बीच पात्र न हो तो जल अग्नि को बुझा देगा। न जल उपयोगी रहेगा और न अग्नि की उपयोगिता सिद्ध होगी। बीच में पात्र आया, दोनों उपयोगी बन गए। न अग्नि नष्ट हुई, न पानी नष्ट हुआ। पानी की उपयोगिता बढ़ गयी और अग्नि की उपयोगिता प्रमाणित हो गई।
यह व्यवहार-क्षेत्र की बात है। कविजनों ने साहित्य के क्षेत्र में भी इसके प्रयोग किए हैं। उन्हें पढ़ते हैं तो लगता है— विरोध है वह वास्तव में सचाई है। संस्कृत काव्यों में विरोधाभास अलंकार का प्रयोग किया जाता है। कवि सिद्धसेन ने भी इस अलंकार का प्रयोग किया है। वे पार्श्व प्रभु की स्तुति में कह रहे हैं आप विश्वेश्वर हैं। विश्व के ईश्वर, विश्व में सर्वाधिक धनाढ्य हैं। दूसरी ओर वे कह रहे हैं— आप दुर्गत हैं, दरिद्र हैं। एक व्यक्ति विश्व का मालिक, स्वामी भी है और दरिद्र भी।
यह कथन कितना विचित्र-सा लगता है कि विश्वेश्वर होने पर भी आप दुर्गत हैं। दुर्गत शब्द की मीमांसा हम दो प्रकार से कर सकते हैं। *दुर्गतः—दुःखेन गम्यते* अर्थात् जिसे जानना हमारे लिए मुश्किल हो। प्रभो! एक ओर आप संपूर्ण विश्व के ईश्वर हैं, दूसरी ओर आप हमारे लिए अगम्य/दुर्गम्य बने हुए हैं। वृत्तिकार ने दुर्गत का दूसरा अर्थ किया है दरिद्र। आप केश की दृष्टि से दरिद्र हैं, आपके सिर पर केश नहीं हैं। तीर्थकर का यह अतिशय होता है कि उनके केश बढ़ते नहीं हैं। जितने हैं उतने ही रहते हैं। कवि ने उसका उपयोग कर लिया कि एक ओर तो आप विश्वेश्वर कहलाते हो, दूसरी ओर केश रहित हैं। केशराशि अलंकार है, सौन्दर्य का प्रतीक है। वे केश भी आपके पास नहीं हैं।
आचार्य सिद्धसेन कहते हैं— भगवन्! आप अक्षर हैं पर आपकी कोई लिपि नहीं है। यानी आप अक्षर प्रकृति वाले हैं, मोक्ष की प्रकृति वाले हैं। आपके कोई लेप नहीं हैं, इसलिए लेप रहित हैं। अक्षर का एक अर्थ है मोक्ष। प्राचीन जैन साहित्य और गीता में मोक्ष अथवा निर्वाण के लिए 'अक्षर' शब्द का प्रयोग मिलता है। जो शाश्वत है, जिसका क्षय नहीं होता, वह है अक्षर। मोक्ष समस्त कर्मों का आत्यन्तिक क्षय होने से प्राप्त होता है अतः उसका कभी क्षय नहीं होता। दूसरी तरफ वर्णमाला के शब्द भी अक्षर हैं। वर्णमाला का कभी क्षय नहीं होता, अतः वह शाश्वत है। शब्द की रचना बदलती रहती है पर अक्षर कभी नहीं बदलते। शाश्वत, स्थायी रहते हैं। वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर ध्वनि है। उसे लेखन में अभिव्यक्त करने के लिए लिपि का सहारा लेना पड़ता है। 'अ' अक्षर है तो उसे किसी न किसी लिपि से ही व्यक्त करना होगा।
*भगवान् पार्श्वनाथ अज्ञ लोगों के रक्षक हैं... भगवान् की इस विलक्षणता...* के बारे में जानेंगे... समझेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 321* 📜
*श्रीमद् जयाचार्य*
*संघर्षों के घेरे*
*मघवा का उन्नयन*
जयाचार्य ने तीनों मुनियों की योग्यता को अपनी कसौटी पर कसा। उनमें मुनि मघराजजी को सर्वाधिक योग्य पाया। उन्होंने तब उनको अपनी आवश्यकता के अनुरूप ढालना प्रारंभ कर दिया। मघवा बालवय में थे और स्वयं जयाचार्य के द्वारा ही दीक्षित किये गये थे। आचार्यश्री की सन्निधि में रहकर ही उन्होंने विद्याभ्यास किया। विनयशीलता और समर्पण-भाव के बल पर वे उनके पूर्ण विश्वास-भाजन बने। आचार्यश्री ने समय-समय पर उन्हें आगे बढ़ने तथा विशेष योग्यता अर्जित करने का अवसर प्रदान किया।
संघीय दृष्टि से गौरव प्रदान करने के लिए भी जयाचार्य ने मुनि मघवा को शीघ्र ही आगे बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया, अग्रोक्त सभी घटनाएं उसी के निदर्शन कही जा सकती हैं।
विक्रम सम्वत् 1911 में मात्र चौदह वर्ष की अवस्था में वे 'सरपंच' बना दिये गये।
विक्रम सम्वत् 1912 में खेरवा में जयाचार्य की आंखों में कुछ गड़बड़ हुई। वे औषधोपचार कराने लगे। उस समय परिषद् में मर्यादा-पत्र-वाचन (हाजरी) का भार उन्होंने मुनि मघवा को सौंपा।
विक्रम सम्वत् 1919 के ज्येष्ठ मास में उन्हें अनेक प्रकार की छूटें देकर सम्मानित किया गया।
चूरू में विक्रम सम्वत् 1920 के श्रावण मास में पट्ट पर बैठने का निर्देश देकर उनका गौरव बढ़ाया गया।
इस प्रकार मुनि मघवा के क्रमिक उन्नयन के उक्त सभी अवसरों ने अनेकों के मन को जहां हर्षोत्फुल्ल किया वहां कुछ की भावनाओं पर वज्रपात भी किया।
*उत्तराधिकार-समर्पण*
विक्रम सम्वत् 1920 आश्विन कृष्णा 13 को चूरू में जयाचार्य ने जन-परिषद् के मध्य मुनि मघवा को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। उन्होंने एक नया उत्तरीय अपने शरीर पर धारण किया और फिर तत्काल उतारकर मघवा को ओढ़ा दिया। चतुर्विध संघ के कंठों से निकली सम्मिलित जय-ध्वनि के साथ ही मुनि मघवा युवाचार्य मघवा बन गये।
*मुनि मघवा का युवाचार्य के रूप में चयन क्या मुनि छोगजी को स्वीकार्य हुआ...?* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 321* 📜
*श्रीमद् जयाचार्य*
*संघर्षों के घेरे*
*मघवा का उन्नयन*
जयाचार्य ने तीनों मुनियों की योग्यता को अपनी कसौटी पर कसा। उनमें मुनि मघराजजी को सर्वाधिक योग्य पाया। उन्होंने तब उनको अपनी आवश्यकता के अनुरूप ढालना प्रारंभ कर दिया। मघवा बालवय में थे और स्वयं जयाचार्य के द्वारा ही दीक्षित किये गये थे। आचार्यश्री की सन्निधि में रहकर ही उन्होंने विद्याभ्यास किया। विनयशीलता और समर्पण-भाव के बल पर वे उनके पूर्ण विश्वास-भाजन बने। आचार्यश्री ने समय-समय पर उन्हें आगे बढ़ने तथा विशेष योग्यता अर्जित करने का अवसर प्रदान किया।
संघीय दृष्टि से गौरव प्रदान करने के लिए भी जयाचार्य ने मुनि मघवा को शीघ्र ही आगे बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया, अग्रोक्त सभी घटनाएं उसी के निदर्शन कही जा सकती हैं।
विक्रम सम्वत् 1911 में मात्र चौदह वर्ष की अवस्था में वे 'सरपंच' बना दिये गये।
विक्रम सम्वत् 1912 में खेरवा में जयाचार्य की आंखों में कुछ गड़बड़ हुई। वे औषधोपचार कराने लगे। उस समय परिषद् में मर्यादा-पत्र-वाचन (हाजरी) का भार उन्होंने मुनि मघवा को सौंपा।
विक्रम सम्वत् 1919 के ज्येष्ठ मास में उन्हें अनेक प्रकार की छूटें देकर सम्मानित किया गया।
चूरू में विक्रम सम्वत् 1920 के श्रावण मास में पट्ट पर बैठने का निर्देश देकर उनका गौरव बढ़ाया गया।
इस प्रकार मुनि मघवा के क्रमिक उन्नयन के उक्त सभी अवसरों ने अनेकों के मन को जहां हर्षोत्फुल्ल किया वहां कुछ की भावनाओं पर वज्रपात भी किया।
*उत्तराधिकार-समर्पण*
विक्रम सम्वत् 1920 आश्विन कृष्णा 13 को चूरू में जयाचार्य ने जन-परिषद् के मध्य मुनि मघवा को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। उन्होंने एक नया उत्तरीय अपने शरीर पर धारण किया और फिर तत्काल उतारकर मघवा को ओढ़ा दिया। चतुर्विध संघ के कंठों से निकली सम्मिलित जय-ध्वनि के साथ ही मुनि मघवा युवाचार्य मघवा बन गये।
*मुनि मघवा का युवाचार्य के रूप में चयन क्या मुनि छोगजी को स्वीकार्य हुआ...?* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
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Posted on 07.07.2020 07:56
🌸 *भक्तामर और पच्चीस बोल कार्यशाला* 🌸🌺 *अधूरा सा लगता है चातुर्मास*
*अगर ना बुझे अध्यात्म की प्यास*
*इसीलिए हम लाए हैं...*
*आपके लिए दो कार्यशालाएं खास*
👉 *7 जुलाई, 2020 से प्रतिदन, सायं 7.00 बजे से*
1️⃣ *भक्तामर स्तोत्र*
♦️ *सब जानते हैं भक्तामर चमत्कारी स्तोत्र है*
♦️ *क्या है इस चमत्कार का रहस्य...?*
♦️ *जानेंगे... अध्यात्म को समर्पित कार्यशाला में*
👉 *प्रतिदिन एक श्लोक का अर्थ*
♦️ *शाम 0️⃣7️⃣:0️⃣0️⃣ से 0️⃣7️⃣:3️⃣0️⃣*
♦️ *प्रशिक्षिका - समणी मलयप्रज्ञाजी*
(From : न्यू जर्सी, अमेरिका)
2️⃣ *पच्चीस बोल*
♦️ *पच्चीस बोल है तत्त्वज्ञान का प्रवेश द्वार*
♦️ *प्रत्येक बोल में छुपा है गहरा सार*
♦️ *होगा... इस कार्यशाला में सरलता और सूक्ष्मता से*
👉 *प्रतिदिन एक बोल का विवेचन*
♦️ *शाम 0️⃣7️⃣:3️⃣0️⃣ से 0️⃣8️⃣:0️⃣0️⃣*
♦️ *प्रशिक्षिका - समणी जयन्तप्रज्ञाजी*
(From - अमेरिका)
Join Zoom Meeting
https://us02web.zoom.us/j/83193477943?pwd=dEJCZUQvUG1XaUlnYURGajJ6ZnJ5Zz09
Meeting ID: 831 9347 7943
Password: Terapanth
*आयोजक*
*जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा*
🌻 *संघ संवाद* 🌻
Zoom is the leader in modern enterprise video communications, with an easy, reliable cloud platform for video and audio conferencing, chat, and webinars across mobile, desktop, and room systems. Zoom Rooms is the original software-based conference room solution used around the world in board, confer...
🛐 *"चौबीसी" क्रमांक* : २१
🔊 *"नमिनाथ स्तवन"*
https://youtu.be/Cx0JkmWxZiY
🙏 *रचना : श्रीमद जयाचार्य*
🎙️ *स्वर : श्रीमती बबिता गुनेचा, कोयम्बटूर*
संप्रसारक :
https://www.youtube.com/channel/UC0dyEH1ZPzOwv9QIdvfMjcQ
🌻 *संघ संवाद* 🌻
🔊 *"नमिनाथ स्तवन"*
https://youtu.be/Cx0JkmWxZiY
🙏 *रचना : श्रीमद जयाचार्य*
🎙️ *स्वर : श्रीमती बबिता गुनेचा, कोयम्बटूर*
संप्रसारक :
https://www.youtube.com/channel/UC0dyEH1ZPzOwv9QIdvfMjcQ
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रचना : श्रीमद जयाचार्य स्वर : श्रीमती बबिता गुनेचा, कोयम्बटूर संप्रसारक : https://www.youtube.com/channel/UC0dyEH1ZPzOwv9QIdvfMjcQ 🌻 संघ संवाद 🌻
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#प्रेक्षावाणी : श्रंखला - ४७४* ~
*#प्रेक्षाध्यान क्या और क्यों - १०*
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