11.09.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 12.09.2019
Updated: 12.09.2019
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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...

🔰 *सम्बोधि* 🔰

📜 *श्रृंखला -- 36* 📜

*अध्याय~~2*

*॥सुख-दुःख मीमांसा॥*

💠 *भगवान् प्राह*

*71. प्रतिव्यक्तिविभिन्नास्ति, योग्यता स्वगुणात्मिका।*
*कर्मावरणमात्रायाः, तारतम्यविभेदतः।।*

जैसे आत्मौपम्य का सिद्धांत मान्य है, वैसे ही व्यक्ति-व्यक्ति में स्वगुणात्मक योग्यता की भिन्नता का सिद्धांत भी मान्य है। उसका आधार है कर्म के आवरण के मात्रा का तारतम्य।

*72. उपशान्तो भवेत् क्रोधः, मानं माया प्रलोभनम्।*
*समीचीना व्यवस्था स्याद्, स्वातन्त्र्यं स्यादबाधितम्।।*

जब क्रोध, मान, माया और लोभ उपशांत होते हैं, तब व्यवस्था अच्छी होती है और सबकी स्वतंत्रता अबाधित रहती है।

*73. उत्तेजितो भवेत् क्रोधः, मानं माया प्रलोभनम्।*
*व्यवस्थाप्यसमीचीना, परातन्त्र्यं प्रवर्धते।।*

जब क्रोध, मान, माया और लोभ उत्तेजित होते हैं, तब व्यवस्था अच्छी नहीं रहती और परतंत्रता बढ़ती है।

💠 *मेघः प्राह*

*74. धन्योस्म्यहं कृतार्थोऽस्मि, संशयो मे निराकृतः।*
*कर्मणश्च व्यवस्थायाः, स्पष्टो बोधोप्यजायत।।*

मेघ बोला— भगवन्! मैं धन्य हो गया हूं, कृतार्थ हो गया हूं। आपने मेरे संशय का निवारण किया है। कर्मवाद और व्यवस्था का बोध भी मुझे स्पष्ट हुआ है।

*इति आचार्यमहाप्रज्ञविरचिते संबोधिप्रकरणे*
*सुखदुःखमीमांसानामा द्वितीयः अध्यायः।*

*सम्बोधि के तीसरे अध्याय के माध्यम से आत्मकर्तृत्ववाद...* को समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... आगे के श्लोकों में... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...

प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 124* 📖

*बदलाव के नियम को जानें*

गतांक से आगे...

अजयमेरु दुर्ग का अधिष्ठाता था रणपाल। उसकी बादशाह जलालुद्दीन के साथ टक्कर चल रही थी। उस समय जलालुद्दीन का शासन था। वह अजयमेरु दुर्ग पर अधिकार करना चाहता था, किंतु उसमें सफल नहीं हो पा रहा था। वह किला अजेय बना हुआ था, नियंत्रण में नहीं आ रहा था। उस किले में एक मीर रहता था। वह केवल ऊपर से स्वामीभक्त था। उसने रणपाल और उसके पुत्रों को धोखे से बंदी बनाकर बादशाह जलालुद्दीन के पास पहुंचा दिया। बादशाह ने पिता-पुत्रों को जेल के सींखचों में बंद कर दिया। रणपाल भक्तामर का परम भक्त था। वह भक्तामर के पाठ को ही नहीं, मर्म को भी जानता था। उसने सोचा— बंधन मुक्ति का मंत्र मेरे पास है। मुझे इसका प्रयोग करना चाहिए। रणपाल ने इस चिंतन को क्रियान्वित किया। उसने भक्तामर के बयांलीसवें श्लोक *'आपादकंठमुरुशृंखल...'* का पाठ शुरू किया और इसके साथ *ॐ ऋषभाय नमः'* का जप शुरू किया। जप भी एक निश्चित मात्रा में करना होता है। जब वह मात्रा संपन्न होती है तब मंत्र शक्तिशाली बन जाता है, मंत्र चैतन्य बन जाता है। जब तक मंत्र चैतन्य नहीं बनता, तब तक मंत्र काम नहीं करता। जब मंत्र चैतन्य बनता है तब उसकी क्रिया होती है। रणपाल ने मंत्र-विधि के अनुसार इस मंत्र का दस हजार बार जप किया। जैसे ही वह जप संपन्न हुआ, मंत्र चैतन्य हो गया। मंत्र के चैतन्य बनते ही एक सुंदर युवती रणपाल के सामने आई। रणपाल ने पूछा— आप कौन हैं? मानुषी हैं या देवी हैं?

उस युवती ने कहा— 'मैं चक्रेश्वरी देवी की सेविका हूं। चक्रेश्वरी भगवान् ऋषभ की अधिष्ठात्री देवी है। मुझे उन्होंने तुम्हारे बंधन तोड़ने के लिए भेजा है। तुम खड़े हो जाओ।'

'मैं बंधा हुआ हूं। खड़ा कैसे हो सकता हूं?'

'तुम पैरों की ओर देखो— कहां बंधन है?'

रणपाल ने देखा— पैरों की बेड़ियां टूटी हुई है। वह खड़ा हो गया।

देवी ने कहा— 'चलो, जहां जाना है, चले जाओ।'

'मेरा पुत्र भी बंधन में है।'

'उसके भी हाथ लगाओ, बेड़ियां टूट जाएंगी।'

पिता-पुत्र मुक्त हो गए।

तेरापंथ के इतिहास का विश्रुत प्रसंग है— शोभजी श्रावक की बेड़ियां टूट गई। वे आचार्य भिक्षु के दर्शन में इतने तन्मय बने कि बंधन टूट गए। जहां श्रद्धा का प्रकर्ष होता है, वहां ऐसी घटनाएं घट जाती हैं। आप इसे चमत्कार न मानें। यह कोई चमत्कार नहीं है, एक नियम है। जहां श्रद्धा का प्रकर्ष होता है, आत्मबल अथवा मनोबल का प्रकर्ष होता है, वहां बेड़ियां ही नहीं, नागपाश भी टूट जाते हैं। हनुमान ने क्या किया था? आत्मबल और श्रद्धाबल से उसका नागपाश टूट गया। श्रद्धाबल से नागपाश भी टूट जाते हैं, बंधन भी टूट जाते हैं,

*रणपाल बाहर कैसे निकला और अपने किले में सुरक्षित कैसे पहुंचा...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻

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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 136* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*जीवन के विविध पहलू*

*12. स्पष्टवादी*

*डंके की चोट*

स्वामीजी अत्यंत स्पष्टवादी थे। मुख देखकर तिलक करना उन्होंने कभी पसंद नहीं किया। बहुधा लोग स्पष्ट कहने में घबराते हैं। वे सोचते हैं, स्पष्ट कहने से दूसरा बुरा मान जाएगा। इसीलिए वे कहना चाहते हुए भी कथ्य को शब्दों की ओट में छिपाते हैं। स्वामीजी ऐसा नहीं करते थे। उन्हें जो नहीं कहना होता, उसमें वे मौन अवश्य रह जाते, पर जो कहना होता, उसे डंके की चोट पर कहते थे। उनके स्पष्टवादिता के पीछे किसी को चोट पहुंचाने या नीचा दिखाने की भावना न होकर अवगुण-प्रतिकार की भावना हुआ करती थी।

*हाथी तो दिखाई देता है?*

कुछ व्यक्तियों ने स्वामीजी से पूछा— 'प्रतिमाधारी श्रावक को शुद्ध आहार-पानी देने से क्या होता है?'

स्वामीजी ने कहा— यह चर्चा बहुत सूक्ष्म और गंभीर है, अतः इससे पूर्व कुछ स्थूल बातों तो जान लो, तो अच्छा रहेगा।' उन्होंने फिर अपनी ओर से ही प्रश्न की उद्भावना करते हुए पूछा कि किसी को सचित्त पानी पिलाने तथा मूला आदि खिलाने में तुम लोगों की क्या श्रद्धा है?

उन लोगों ने कहा— 'इन बातों का हमें कोई पता नहीं, हमें तो प्रतिमाधारी के विषय में ही बतलाइए।'

स्वामीजी ने तब दृष्टांत के द्वारा अपने कथन को आगे बढ़ाते हुए कहा— "एक व्यक्ति लोगों से कहने लगा— 'मुझे चींटी और कुंथु दिखलाओ।'

लोगों ने उससे पूछा— 'यह सामने खड़ा हुआ हाथी तुम्हें दिखाई देता है या नहीं?'

उसने कहा— 'हाथी तो मुझे दिखाई नहीं देता।'

लोग बोले— 'जब हाथी भी दिखाई नहीं देता, तब चींटी और कुंथु कैसे दिखलाए जा सकते हैं? वे तो हाथी की अपेक्षा से बहुत ही छोटे प्राणी हैं।"

स्वामीजी ने प्रसंग का उपसंहार करते हुए कहा— 'तुम लोगों की स्थिति उस व्यक्ति जैसी ही है, जिसे हाथी तो दिखाई नहीं देता था, पर चींटी दिखाने का आग्रह करता था। हिंसा में धर्म-अधर्म की बात जब तुम्हारी समझ में नहीं आती, तब प्रतिमाधारी श्रावक कितना भी त्यागी क्यों न हो, फिर भी उनके अव्रत शेष रहता है और अव्रत का सेवन करना धर्म नहीं होता, यह तो तुम्हारी समझ में आएगा ही कैसे? यह तो बहुत सूक्ष्म तत्त्व है।'

*स्वामी भीखणजी की यति हीरजी... गृहस्थों... शिथिलाचारी साधुओं आदि के साथ चर्चा व उसमें उनकी स्पष्टवादिता...* के कुछ प्रसंगों को जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻

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👉 *पीतमपुरा (दिल्ली) ~ चौविहार संथारा परिसम्पन्न...*

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*

💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_

📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*

🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*

🎗️ *_आचार्यश्री भिक्षु चरमोत्सव कार्यक्रम_*

⌚ _दिनांक_: *_11 सितंबर 2019_*

🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*

https://www.facebook.com/SanghSamvad/

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*परम पूज्य आचार्य प्रवर*
के प्रातःकालीन *भ्रमण*
के *मनमोहक* दृश्य
*बेंगलुरु____*


*: दिनांक:*
11 सितंबर 2019

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*: प्रस्तुति:*
🌻 संघ संवाद 🌻

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Sources

SS
Sangh Samvad
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