10.09.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 12.09.2019
Updated: 12.09.2019
🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २५२* - *विचार क्यों आते है ३*

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
*Preksha Foundation*
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
🎙 *नवीन घोषणा*
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🙏 *पूज्य गुरुदेव ने* महती कृपा करके सन् *2021 में* पूज्यपाद आचार्य श्री डालगणी के जन्मस्थान *उज्जैन पधारने* का भाव प्रकट किया।
👉 साथ ही 2021 के उज्जैन प्रवास के दौरान *समण सिद्धप्रज्ञ जी को मुनि दीक्षा प्रदान करने की घोषणा* की है।

दिनांक 10/09/2019
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🌻 *संघ संवाद* 🌻

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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...

🔰 *सम्बोधि* 🔰

📜 *श्रृंखला -- 35* 📜

*अध्याय~~2*

*॥सुख-दुःख मीमांसा॥*

💠 *भगवान् प्राह*

*63. स्वामिसेवकसम्बन्धः, व्यवस्थापादितो ध्रुवम्।*
*सामुदायिकसम्बन्धाः, सर्वे नो कर्मभिः कृताः।।*

भगवान ने कहा— मेघ! स्वामी-सेवक का संबंध व्यवस्था पर आधारित है। सभी सामुदायिक संबंध कर्मकृत नहीं होते।

*64. राजतन्त्रे भवेद् राजा, गणतन्त्रे गणाधिपः।*
*व्यवस्थामनुवर्तेत, विधिरेष न कर्मणः।।*

राजतंत्र में राजा होता है और गणतंत्र में गणनायक। यह विधि कर्म के अनुसार नहीं, किंतु व्यवस्था के अनुसार चलती है।

*65. दासप्रथा प्रवृत्तासौ, यदि कर्मकृता भवेत्।*
*तदा तस्या विरोधोऽपि, कथं कार्यो मया भवेत्।।*

वत्स! यदि वर्तमान में प्रचलित दासप्रथा कर्मकृत हो तो मैं उसका विरोध कैसे कर सकता हूं?

*66. नासौ कर्मकृता वत्स!, व्यवस्थापादिता ध्रुवम्।*
*सामाजिक्या व्यवस्थायाः, परिवर्तोऽपि मे मतः।।*

वत्स! यह दासप्रथा कर्मकृत नहीं है, किंतु व्यवस्थाकृत है। सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन भी मुझे मान्य है।

*67. देहधारणसामग्री, मीनानां सुलभा जले।*
*न तत्र बाधते कर्म, किं बाधेत तदा नरान्?।।*

मछलियों को अपने शरीर को धारण करने में सहायक सामग्री जल में सुलभ होती है। वहां कोई कर्म किसी को बाधित नहीं करता तो फिर मनुष्य के देह-धारण की सामग्री मिलने में कर्म बाधक कैसे होगा?

*68. सर्वेषां च मनुष्याणां, सुलभा जीविका भवेत्।*
*औचित्येन व्यवस्थायाः, कर्मवादो न दुष्यति।।*

उचित व्यवस्था होने पर सभी मनुष्यों को आजीविका सुलभ हो तो इससे कर्मवाद के सिद्धांत में कोई दोष नहीं आता।

*69. दुर्वृत्तायां व्यवस्थायां, लोकः कष्टानि गच्छति।*
*सद्वृत्तायां व्यवस्थायां, लोको हि सुखमृच्छति।।*

दुष्प्रवृत्त व्यवस्था में लोग दुःखी होते हैं और सत्प्रवृत्त व्यवस्था में वे सुखी होते हैं।

*70. सुखदुःखे व्यवस्थाप्ये, नारोप्ये कर्मसु क्वचित्।*
*सुखदुःखे च कर्माप्ये, व्यवस्थायाः शिरस्यपि।।*

व्यवस्था से प्राप्त होने वाले सुख-दुःख को कर्म पर आरोपित नहीं करना चाहिए और कर्म से प्राप्त होने वाले सुख-दुःख का भार व्यवस्था के सिर पर नहीं डालना चाहिए।

*स्वगुणात्मिक योग्यता का उपादान... स्वतंत्रता और परतंत्रता का मूल... मेघ का संशय-निवारण...* इत्यादि जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... आगे के श्लोकों में... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...

प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 123* 📖

*बदलाव के नियम को जानें*

गतांक से आगे...

तिब्बती साधना पद्धति में शिष्य की एक कसौटी होती है। जो शिष्य बनना चाहता है, उसे पहले कसौटी पर कसा जाता है। तिब्बत हिमालय के परिपार्श्व में है। वहां बहुत बर्फ गिरती है, भयंकर ठंडक है। भारी शिष्य को गुरु पहला निर्देश यह देते हैं— बर्फ पर बैठ जाओ। दूसरा निर्देश होता है— कपड़े उतार दो। तीसरा निर्देश होता है— अब शरीर से पसीना निकालो। जब पसीना निकालोगे तब शिष्य बन पाओगे। यदि पसीना नहीं आया तो शिष्य नहीं बन पाओगे। सर्दी का मौसम, बर्फ की शिला और वस्त्ररहित शरीर— कैसे आएगा पसीना? यह आता है भावना से। उस व्यक्ति ने ग्रीष्म ऋतु की भावना की। उत्ताप ताप का अनुभव किया। एक घंटा तक इसी भावना और अनुभूति में लीन हो गया। परिणाम यह आया— शरीर से पसीना चूने लगा। शिष्य बनने की चाहत साकार हो गई। इसी प्रकार यदि भीषण गर्मी में शीतलता की भावना की जाए तो भयंकर गर्मी का एहसास ही न हो पाए। यह भावना के द्वारा घटित होता है।

आज ऋषभ नहीं है किंतु एक ऐसा मानसिक चित्र बना लिया, कल्पना कर ली— ऋषभ चल रहे हैं, मैं उनकी चरण-धूलि उठा रहा हूं और उस चरण-धूलि का पूरे शरीर पर लेप किया जा रहा है। यदि इस भावना में लीन बन जाए तो काम हो जाएगा। जैनयोग में परिणमन को बहुत महत्त्व दिया गया है। हम शरीर से जो करते हैं, वह हमारी स्थूल क्रिया होती है। हम भावना से जो करते हैं, वह हमारी सूक्ष्म क्रिया होती है। शारीरिक क्रिया से हजार गुना अधिक शक्तिशाली होती है भावनात्मक क्रिया। यह क्रिया बहुत सफल बनाती है। भावना का एक प्रयोग है— मानसिक चित्र का निर्माण करना और उस चित्र को देखना, जैसा व्यक्ति होना चाहता है।

अमेरिकी डॉक्टर ओरालिस ने हृदय-रोगियों पर एक प्रयोग किया। जिनका हृदय बीमार था, धमनियों में ब्लॉकेज हो गए थे, उनको भावना के प्रयोग कराए। दो चित्र बनाए— स्वस्थ हृदय का चित्र और एक रुग्ण हृदय का चित्र। डॉक्टर ने रोगियों को निर्देश दिया— स्वस्थ हृदय पर ध्यान करो और यह संकल्प करो– धमनियां ठीक हो रही हैं, अवरोध हट रहे हैं, हृदय स्वस्थ हो रहा है। इस प्रयोग के आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए। जिनके ब्लॉकेज गहरे थे, वे रोगी बिना बाईपास सर्जरी के बिल्कुल स्वस्थ हो गए। भावना का यह प्रयोग चमत्कारिक औषध बन गया। वस्तुतः भावना के द्वारा ऐसा हो सकता है। मानतुंग सूरि ने जो लिखा है, वह भावना का ही एक प्रयोग है— प्रभो! आपके चरण-रज का लेप करने वाला भीषण जलोदर से मुक्ति पा लेता है, कामदेव तुल्य हो जाता है।

भय का एक हेतु है— बंधन। बंधन भी अवरोध है। मानतुंग कह रहे हैं— ऐसा व्यक्ति जिसे *आपादकण्ठ* पैरों से लेकर गले तक लोहे की सांकलों से जकड़ दिया गया है। बहुत गाढ़ है पैर की बेड़ियां। उनके अग्रभाग से जंघा का भाग घिसा जा रहा है। पैरों में बेड़ियां हैं और पूरा शरीर सांकल से जकड़ा हुआ है। ऐसी स्थिति में आपके नाम का अनवरत स्मरण करे तो सारे बंधन टूट जाते हैं।

*आपादकंठमुरुशृंखलवेष्टितांगा,*
*गाढं बृहन्निगडकोटिनिघृष्टजंघाः।*
*त्वन्नाममंत्रमनिशं मनुजाः स्मरतः,*
*सद्यः स्वयं विगतबंधभया भवन्ति।।*

आचार्य मानतुंग ने स्वयं इस श्लोक का प्रयोग किया था। जब आचार्य मानतुंग को बांध दिया गया, तब वे उन बेड़ियों और तालों को तोड़कर बाहर निकल आए। इस स्तोत्र से सारी बेड़ियां टूट गईं, सारे ताले खुल गए।

*अजयमेरु दुर्ग के अधिष्ठाता रणपाल के बंधन-मुक्ति के एक प्रसंग...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻

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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 135* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*जीवन के विविध पहलू*

*11. सत्य-भक्त*

*'कयरे मग्गे मक्खाया'*

एक पंडितजी को अपने संस्कृत ज्ञान का बड़ा घमंड था। उन्होंने स्वामीजी से पूछा— 'क्या आपने संस्कृत व्याकरण पढ़ा है?'

स्वामीजी— 'नहीं, मैंने संस्कृत व्याकरण नहीं पढ़ा है।'

पंडितजी— 'संस्कृत पढ़े बिना प्राकृत भाषा के आगमों का अर्थ नहीं किया जा सकता।'

स्वामीजी— 'प्राकृत भाषा का अभ्यास होने पर संस्कृत पढ़े बिना भी उनका अर्थ किया जा सकता है, अन्यथा संस्कृत पढ़ लेने पर भी नहीं किया जा सकता।'

पंडितजी उक्त कथन को मानने के लिए कतई तैयार नहीं हुए। स्वामीजी ने तब उनके झूठे घमंड को तोड़ने के लिए पूछा— 'पंडितजी, आप तो व्याकरण के अच्छे ज्ञाता हैं, तो आप आगमों का अर्थ कर सकते हैं?'

पंडितजी ने गर्वभरी वाणी में कहा— 'अच्छी तरह से कर सकता हूं। आशंका हो तो पूछ कर देख लें।'

स्वामीजी ने तब पूछा— '*कयरे मग्गे मक्खाया* शास्त्र के इस वाक्य का क्या अर्थ है?'

पंडितजी ने थोड़ी देर सोचने के पश्चात् कहा— 'यह तो कोई कठिन बात नहीं पूछी गई है। इसका अर्थ तो सीधा ही है कि कैर और मूंग को अक्षत अर्थात् अखंड रूप में नहीं खाना चाहिए।'

स्वामीजी— 'यह अर्थ तो सही नहीं है।'

पंडितजी— 'तो फिर सही अर्थ क्या है? यह आप बतलाइए।'

स्वामीजी— 'इसका अर्थ तो यह है– तीर्थंकरों द्वारा मोक्ष-मार्ग कितने बतलाए गए हैं?'

पंडितजी के झूठे घमंड का पर्दाफाश हो गया।

*जीवित हो?*

स्वामीजी मांढ़े में रात्रि के समय व्याख्यान दे रहे थे। सामने काफी संख्या में लोग बैठे हुए थे। स्वामीजी के बिल्कुल पास में बैठे हुए श्रावक ओसोजी नींद लेने लगे। उन्होंने झोंकड़ी लेकर ज्योंही सिर ऊंचा उठाया, स्वामीजी ने टोकते हुए कहा— 'ओसोजी नींद ले रहे हो?'

किसी सभा आदि में नींद लेते समय टोके जाने वालों के मुंह से प्रायः जो उत्तर अचानक निकल जाया करता है, उसे ही दोहराते हुए ओसोजी ने कहा— 'नहीं, महाराज!'

थोड़ी देर पश्चात् वे फिर नींद लेने लगे। स्वामीजी ने फिर टोका। उन्होंने फिर वही बंधा हुआ उत्तर देते हुए कहा— 'नहीं, महाराज!'

जितनी बार उन्हें टोका गया, उन्होंने हर बार वही उत्तर दिया। अंततः स्वामीजी ने उनके उस असत्य को प्रकट करने के लिए उसी लहजे में पूछा— 'ओसोजी! जीवित हो?'

उन्होंने चट से कहा— 'नहीं, महाराज!'

उपस्थित लोग उनका उत्तर सुनकर हंस पड़े, तब वे सावधान हुए।

*स्वामी भीखणजी की स्पष्टवादिता...* के बारे में कुछ प्रसंगों के माध्यम से जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻

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👉 हुबली - हैप्पी एन्ड हॉर्मोनियस फैमिली कार्यशाला का आयोजन
👉 कोटा ~ विकास महोत्सव का आयोजन
👉 मदुरै ~ रक्तदान शिविर का आयोजन
👉 अहमदाबाद, पश्चिम ~ तप अभिनंदन समारोह का कार्यक्रम
👉 पाली ~ हैप्पी एन्ड हॉर्मोनियस फैमिली कार्यशाला का आयोजन
👉 सिलीगुडी - मंगलभावना एवं तप अभिनंदन समरोह का आयोजन
👉 बेंगलुरु - निशुल्क मधुमेह जांच शिविर का आयोजन
👉 ट्रिप्लीकेन चैन्नई - तप अभिनंदन एवं आध्यात्मिक मिलन
👉 जयपुर - रक्तदान शिविर का आयोजन
👉 उधना, सूरत - विकास महोत्सव का आयोजन
👉 जलगांव ~ कनेक्शन विद सक्सेस कार्यशाला का आयोजन

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 दिल्ली ~ *चौविहार संथारा का प्रत्याख्यान*

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*

💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_

📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*

🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*

⌚ _दिनांक_: *_10सितंबर 2019_*

🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*

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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २५१* - *विचार क्यों आते है २*

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
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