09.08.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 09.08.2019
Updated: 09.08.2019

Update

👉 भीलवाड़ा - ते.म.म. का शपथग्रहण समारोह
👉 विजयनगरम ~ सामूहिक आयंबिल व सामायिक पचरंगी
👉 बोराला (महा.) - कर्मणा जैन क्षेत्र मे तपस्याओं का पचखान
👉 कटिहार - हैप्पी एंड हारमोनियस फैमिली सेमिनार का आयोजन
👉 बारडोली- संगीत प्रतियोगिता का आयोजन
👉 पटना सिटी ~ "स्वस्थ आहार स्वस्थ परिवार" कार्यशाला का आयोजन
👉 विजयनगरम ~ अंताक्षरी प्रतियोगिता आयोजित

प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻

Update

🌀🌀🌀🔮🌀🌀🌀🔮🌀🌀🌀
अणुव्रत महासमिति के अध्यक्ष श्री अशोक संचेती की दिनांक 5 से 7 अगस्त, 2019 के दौरान *बंगाल, बिहार एवं नेपाल की संगठन-यात्रा*
🔴
इस संगठन-यात्रा में महासमिति की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के इन साथियों ने *सहभागिता* की ~
1. श्री निर्मल सामसुखा, गुवाहाटी
संगठन मंत्री
2. श्री अशोक मालू, गुवाहाटी
रूढ़ि-उन्मूलन विभाग-प्रमुख
3. श्री तोलाराम सेठिया, सिलीगुड़ी
4. श्री उदित चोरड़िया, अररिया
🔵
संगठन-यात्रा के दौरान निम्नोक्त समितियों का *पुनर्गठन* किया गया ~
1. इस्लामपुर - बंगाल
2. कटिहार - बिहार
3. अररिया - बिहार
4. फारबिसगंज - बिहार
5. बिराटनगर - नेपाल
6. दिनहाटा - बंगाल
7. कूचबिहार - बंगाल
🔴
निम्नोक्त समितियों के क्षेत्रों में पंहुच कर *सारणा-वारणा* की गई ~
8. किशनगंज - बिहार
9. दलखोला - बंगाल
10. धरान - नेपाल
🔵
इसके अलावा निम्नोक्त क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण *अणुव्रत संगोष्टी* रखी गई ~
11. गुलाबबाग
(संलग्नित क्षेत्र - भट्टाबाजार, पूर्णिया आदि)।
🔴
इस संगठन-यात्रा से नेपाल, बिहार और बंगाल के क्षेत्रों में प्रवासित अणुव्रती कार्यकर्ताओं की ऊर्जा के सशक्त ऊर्ध्वारोहण की आशा बलवती हुई है।
🔵
पुनर्गठित समितियों में निम्नोक्त कार्यकर्ता सर्व-सम्मति से अध्यक्ष चुने गए~
🌼 श्रीमती शकुंतला दुगड़, इस्लामपुर 🌼 श्री विमल बेंगाणी(नगर-पार्षद), कटिहार 🌼 श्री रूपचंद बरड़िया, अररिया 🌼 श्री सुमित डागा, फारबिसगंज 🌼 श्री भीकमचंद 'सरल', बिराटनगर 🌼 श्री टीकमचंद बैद, दिनहाटा 🌼 श्री राजेश बांठिया, कूचबिहार।

🔹 प्रस्तुति: *अणुव्रत सोशल मीडिया*

🔸 संप्रसारक: *संघ संवाद*

🌀🌀🌀🔮🌀🌀🌀🔮🌀🌀🌀

News in Hindi

🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣

'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...

🔰 *सम्बोधि* 🔰

📜 *श्रृंखला -- 6* 📜

*॥आमुख॥*

पच्चीस सौ वर्ष पुरानी बात है। मगध सम्राट श्रेणिक की यशोगाथा दिग्दिगंत में व्याप्त थी। उनकी पटरानी का नाम धारिणी था। एक बार वह अपने सुसज्जित शयनागार में सो रही थी। अपररात्रि की वेला में उसको एक स्वप्न आया। उसने देखा— एक विशालकाय हाथी लीला करता हुआ उसके मुख में प्रवेश कर रहा है। स्वप्न को देख वह उठी। महाराज श्रेणिक को निवेदन कर बोली— 'प्रभो! इसका क्या फल होगा?' महाराज श्रेणिक ने स्वप्न पाठकों को बुलाकर स्वप्नफल पूछा। उन्होंने कहा— 'राजन्! रानी ने उत्तम स्वप्न देखा है। इसके फलस्वरूप आपको अर्थलाभ होगा, पुत्रलाभ होगा, राज्यलाभ होगा और भोगसामग्री की प्राप्ति होगी।' राजा और रानी बहुत प्रसन्न हुए।

समय बीता। महारानी ने गर्भधारण किया। दो महीने व्यतीत हुए। तीसरा महीना चल रहा था। रानी के मन में अकाल में मेघों के उमड़ने और उनमें क्रीड़ा करने का दोहद उत्पन्न हुआ। उसने सोचा— 'वे माता-पिता धन्य हैं, जो मेघ ऋतु में बरसती हुई वर्षा में यत्र-तत्र घूमकर आनंदित होते हैं। क्या ही अच्छा होता, यदि मैं भी हाथी पर बैठकर झीनी-झीनी वर्षा में जंगल की सैर कर अपना दोहद पूरा करती।' रानी ने इस दोहद की चर्चा राजा श्रेणिक से की। उस समय वर्षा ऋतु नहीं थी। मेघ के बरसने की बात अत्यंत दुरूह थी। राजा चिंतित हो उठा। उसने अपने महामात्य अभयकुमार को सारी बात कही। महामात्य राजा रानी को आश्वस्त कर दोहदपूर्ति की योजना बनाने लगा।

अभयकुमार ने देवता की आराधना करने के लिए एक अनुष्ठान प्रारंभ किया। तेले की तपस्या कर, वह मंत्र-विशेष की आराधना में लग गया। तीन दिन पूरे हुए। देवता ने प्रत्यक्ष होकर आराधना का प्रयोजन जानना चाहा। अभयकुमार ने धारिणी के मन में उत्पन्न अकाल मेघवर्षा में भ्रमण की बात कह सुनाई। देवता ने कहा— 'अभय! तुम विश्वस्त रहो। मैं दोहदपूर्ति कर दूंगा।'

कुछ समय बीता। एक दिन अचानक आकाश में मेघ उमड़ आए। सारा आकाश मेघाच्छन्न हो गया। बिजलियां चमकने लगीं। मेघ ऋतु का भयंकर गर्जारव होने लगा। वर्षा होने लगी। मेघ ऋतु का आभास होने लगा। रानी धारिणी अपने परिवारजनों से परिवृत होकर, हाथी पर आरूढ़ हो वन-क्रीड़ा करने निकली। अपनी इच्छा के अनुसार क्रीडा संपन्न कर वह महलों में लौट आई। उसका दोहद पूरा हो गया।

नौ माह और नौ दिन बीते। रानी ने एक पुत्र-रत्न का प्रसव किया। गर्भकाल में मेघ का दोहद उत्पन्न होने के कारण सद्यःजात शिशु का नाम मेघकुमार रखा गया। वैभवपूर्ण लालन-पालन से बढ़ते हुए शिशु मेघकुमार ने आठ वर्ष पूरे कर नौवें वर्ष में प्रवेश किया। माता-पिता ने उसको सर्वकला निपुण बनाने के उद्देश्य से कलाचार्य के पास शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा। वह धीरे-धीरे बहत्तर कलाओं में पारंगत हो गया।

मेघकुमार ने यौवन में प्रवेश किया। आठ सुंदर राज्यकन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ।

*भगवान् महावीर का राजगृह में पदार्पण और मेघकुमार की वैराग्य-भावना...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...

प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻

🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣

🌼🍁🌼🍁🍁🍁🍁🌼🍁🌼

जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 98* 📖

*अतिशय: आंतरिक परिवेश*

गतांक से आगे...

प्रस्तुत काव्य में स्तुतिकार ने बाहरी परिवेश के आधार पर आदिनाथ को देखने का प्रयत्न किया है, किंतु इसका आंतरिक परिवेश भी है। व्याख्या के दो कोण होते हैं— व्यवहार नय और निश्चय नय। स्थूल पर्याय से देखें और व्यवहार नय से व्याख्या करें तो सिंहासन, अशोकवृक्ष, चामर, छत्र आदि के लक्षण सामने आते हैं। निश्चयदृष्टि से व्याख्या करें, आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो कहा जाएगा— जिसके आसन सिद्ध हो गया, वह सिद्धयोगी है। वह जहां बैठता है वही सिंहासन बन जाता है। उसकी आभा सिंहासन जैसी बन जाती है। एक जैन आचार्य ने लिखा— 'जो आसन सिद्धि को नहीं जानता, वह जैन तत्त्व को नहीं जानता।' आसनसिद्धि बहुत महत्त्वपूर्ण है। आसन करना एक बात है और आसन सिद्ध हो जाना, बिल्कुल दूसरी बात है। प्रस्तुत संदर्भ में सिंहासन की आध्यात्मिक भाषा है— जिसका आसन सिद्ध हो गया, उसका नाम है सिंहासन।

एक संदर्भ है— अशोकवृक्ष का। जहां मोह क्षीण हो गया, वहां शोक कैसे बचेगा? शोक मोह का एक पर्याय है। जहां मोह का विलय है, वहां अशोक स्वतः फलित हो जाएगा। जहां मोह नहीं है, वहां शौक नहीं है। अध्यात्म के संदर्भ में अशोकवृक्ष का प्रस्फुटन मोह विलय के क्षण में ही हो सकता है।

एक संदर्भ है— श्वेत चामर का। जहां शुक्ल लेश्या है, वहां श्वेत चामर क्यों नहीं आएगा? यह कहा जा सकता है— स्तुतिकार ने शुक्ल लेश्या का ही प्रतिबिंब शुक्ल चामर के रूप में प्रस्तुत कर दिया। जहां शुक्ल लेश्या है, विशुद्ध भावधारा है, श्वेतिमा ही श्वेतिमा है, कलुषता का कोई अंश नहीं बचा है, वहां श्वेत चंवर सहज प्रतिष्ठित हैं।

एक संदर्भ है— छत्र का। जिस आत्मा में सर्वात्मना संवर जागृत हो गया, वहां छत्र क्यों नहीं होगा? उसके लिए केवल तीन छत्र नहीं, सारा विश्व छत्र बन गया।

ये जो आंतरिक अर्हताएं हैं, उन्हें स्थूलदृष्टि से, व्यवहार नय की दृष्टि से प्रतीकात्मक रूप में कहा गया। हम निश्चय में जाएं, आध्यात्मिक दृष्टि से विचार करें तो कहा जाएगा— आसनसिद्धि, शुक्ल लेश्या, अमोह अवस्था और संवर— ये सब अध्यात्म योगी की विशेषताएं हैं। अशोकवृक्ष, छत्र, चामर, सिंहासन आदि विभूतियां इनके प्रतीक हैं। ये सिद्धियां, विभूतियां सामने आती हैं, आंतरिक अर्हताएं सामने नहीं आतीं। स्तुतिकार ने स्थूलदृष्टि वालों को समझाने के लिए स्थूल बिंबों और प्रतिमानों के द्वारा अपनी बात कह दी, किंतु हम केवल अशोकवृक्ष, चामर, छत्र और सिंहासन की सीमा में न रहें। इनकी पृष्ठभूमि में जो आध्यात्मिक तत्त्व है, वहां तक पहुंचने का प्रयास करें। वहां पहुंचकर ही स्तुतिकार की भावना और तात्पर्य को हृदयंगम कर पाएंगे।

*अतिशय की चर्चा को विराम देकर आचार्य मानतुंग ने स्तुति को नया आयाम दिया... स्तुति के उस नए आयाम को...* समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
🌼🍁🌼🍁🍁🍁🍁🌼🍁🌼

🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹

शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 110* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*जीवन के विविध पहलू*

*4. अपराजेय व्यक्तित्व*

*चर्चा महंगी पड़ती है*

स्थानकवासी साधु गुमानजी के शिष्य रतनोजी चाहते थे कि भीखणजी से चर्चा करें। मुनि गुमानजी ने उन्हें समझाते हुए कहा— 'उनसे चर्चा करते तो हमें भी भय लगता है, तब तू क्या चर्चा करेगा?'

मुनि रतनोजी ने भय लगने का कारण पूछा तो वे बोले— 'भीखणजी चर्चा का जो उत्तर देते हैं, पीछे उसकी 'जोड़' कर देते हैं। ग्राम-ग्राम में उसे भाइयों को सिखा भी देते हैं। इस प्रकार वे सारे ग्रामों को बिगाड़ देते हैं। हमें उस चर्चा का उत्तर देने के लिए तब एक भीखणजी ही नहीं, किंतु फौज की फौज खड़ी हो जाती है। इसलिए भीखणजी से चर्चा हमारे लिए सदा ही महंगी पड़ती है।'

*अकबरी मोहरें*

पुर में स्वामीजी से चर्चा करते हुए गुलाब ऋषि जब निरुत्तर हो गए, तो कहने लगे— 'मुझे निरुत्तर कर देने से कुछ नहीं होता, गोगुंदा के हमारे श्रावक तुंगिया नगरी के श्रावकों जैसे हैं। उनसे चर्चा करोगे, तब तुम्हें पता लगेगा। वे तो सबके सब अकबर की मोहरें हैं।

स्वामीजी बोले— 'अवसर आने पर उनसे भी चर्चा करने का भाव है।'

वह अवसर शीघ्र ही आ गया। स्वामीजी गोगुंदा पधारे। वहां के श्रावकों से चर्चा हुई। स्वामीजी ने उन्हें आगमों के आधार पर आचार-विचार-संबंधी सारी बातें समझाईं। फलस्वरूप वहां का श्रावक-वर्ग स्वामीजी का भक्त बन गया।

गुलाब ऋषि ने जब यह संवाद सुना, तो स्वयं वहां आए और स्वामीजी से चर्चा करने लगे। श्रावकों ने स्वामीजी को रोकते हुए कहा— 'ये हमारे पहले गुरु हैं, अतः हमें ही इनसे चर्चा करने का अवसर दें।' स्वामीजी ने उनकी बात मान ली। भाइयों ने गुलाब ऋषि से ऐसी चर्चा की कि उन्हें निरुत्तर हो जाना पड़ा। आखिर क्रुद्ध होकर वे कहने लगे— 'गोगुंदा के श्रावकों को मैं तो अकबर की मोहर के समान समझा करता था, पर तुम तो बिल्कुल ही ठीकरी के सिक्के निकले।'

*स्वामी भीखणजी के साथ चर्चा के कुछ और भी प्रसंगों...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹

https://www.instagram.com/p/B06w5Fhph9O/?igshid=1tevywunftlo7

https://www.instagram.com/p/B06xE29p9fF/?igshid=fe7hlfbv8p1c

Sources

Sangh Samvad
SS
Sangh Samvad

Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Shvetambar
      • Terapanth
        • Sangh Samvad
          • Publications
            • Share this page on:
              Page glossary
              Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
              1. अशोक
              2. आचार्य
              3. आचार्यश्री महाप्रज्ञ
              4. ज्ञान
              5. तीर्थंकर
              6. दर्शन
              7. बिहार
              8. भाव
              9. महावीर
              10. लक्षण
              Page statistics
              This page has been viewed 225 times.
              © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
              Home
              About
              Contact us
              Disclaimer
              Social Networking

              HN4U Deutsche Version
              Today's Counter: