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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 464* 📝
*विशदमति आचार्य विजयदेव*
जैन श्वेतांबर तपागच्छ के प्रभावक आचार्यों में विजयदेवसूरि भी एक थे। धर्म प्रचार के साथ उनका तपोमय जीवन जनता के लिए विशेष आकर्षण का विषय था। बादशाह जहांगीर द्वारा उन्हें महतपा उपाधि दी गई। उदयपुर नरेश जगतसिंहजी का भी उन्हें विशेष सम्मान भाव प्राप्त था।
*गुरु-परम्परा*
विजयदेवसूरि के दीक्षा गुरु विजयसेनसूरि तथा विजयसेनसूरि के गुरु हीरविजयजी थे। हीरविजयजी के गुरु विजयदानसूरि थे।
*जन्म एवं परिवार*
विजयदेवसूरि का जन्म गुजरात प्रदेशान्तर्गत इलादुर्ग (ईडर) गांव निवासी महाजन परिवार में वीर निर्वाण 2104 (विक्रम संवत् 1634) पौष शुक्ला त्रयोदशी के दिन हुआ। उनके पिता का नाम स्थिर, दादा का नाम माधव और माता का नाम रूपां देवी था। विजयदेवसूरि का गृहस्थ जीवन का नाम वासुदेव कुमार (वास कुमार) था।
*जीवन-वृत्त*
वासुदेव कुमार का जन्म स्थान इलादुर्ग (ईडर) उस समय प्रसिद्ध नगर था। इलादुर्ग का राजा राठौर वंशी नरेश नारायण था। नरेश नारायण के पिता का नाम पुञ्ज एवं पितामह का नाम भाण था। वासुदेव के माता-पिता धार्मिक विचारों के थे। वासुदेव कुमार को उनसे धार्मिक विचार प्राप्त हुए। बालक का मन उत्तरोत्तर त्याग की ओर झुकता गया। एक दिन वासुदेव ने मुनि जीवन में प्रवेश करने का निर्णय लिया। माता रूपां देवी साध्वी बनने के लिए तैयार हुई। दोनों की दीक्षा अहमदाबाद में हाजा पटेल की पोल में विजयसेनसूरि द्वारा वीर निर्वाण 2113 (विक्रम संवत् 1643) माघ शुक्ला दशमी के दिन हुई। दीक्षा के बाद मुनि जीवन में उनका नाम विद्याविजय रखा गया। विद्याविजय अपने नाम के अनुरूप विद्या अर्जन में तत्पर रहते थे। उनकी योग्यता से प्रभावित होकर विजयसेनसूरि ने अहमदाबाद के उपनगर में वीर निर्वाण 2125 (विक्रम संवत् 1655) मार्गशीर्ष कृष्णा पंचमी के दिन उनको "पंडित" पद प्रदान किया। बैशाख शुक्ला चतुर्थी वीर निर्वाण 2127 (विक्रम संवत् 1657) को उन्हें सूरि मंत्र पूर्वक सूरि पद पर प्रतिष्ठित किया। पाटण में वीर निर्वाण 2128 (विक्रम संवत्) 1658 पौष कृष्णा षष्ठी के दिन विजयदेवसूरि को गच्छानुज्ञा प्रदान की गई एवं वन्दन-महोत्सव मनाया गया। वन्दन-महोत्सव की व्यवस्था श्रावक सहस्रवीर ने की।
उन दिनों उपाध्याय धर्मसागरजी द्वारा प्रसारित सैद्धांतिक मतभेद के कारण वातावरण तनावपूर्ण था। विजयदानसूरि और विजयवीरसूरि ने शास्त्र विरुद्ध बातों का समर्थन करने के कारण धर्मसागरजी का संबंध गच्छ से विच्छिन्न कर दिया। धर्मसागरजी विजयदेवसूरि के मामा थे। विजयदेवसूरि भविष्य में मामा का साथ दे सकते हैं, यह धारणा दोनों के मन में थी। उसी भ्रांत धारणा के कारण विजयसेनसूरि ने अपना नया उत्तराधिकारी घोषित किया।
*क्या विजयदेवसूरि ने अपने मामा उपाध्याय धर्मसागरजी का साथ दिया...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 118* 📜
*श्रीचंदजी गधैया*
*फेरी नहीं, दुकान*
श्रीचंदजी गधैया सरदारशहर निवासी सुप्रसिद्ध श्रावक जेठमलजी के पुत्र थे। उनका जन्म संवत् 1919 पौष शुक्ला 6 को हुआ। तत्कालीन प्रथा के अनुसार चौदह वर्ष की बाल्यावस्था में ही उनका विवाह कर दिया गया। विवाह के कुछ दिन पश्चात् ही संवत् 1935 में उन्होंने प्रथम बार कलकत्ते की ओर प्रस्थान किया। उनके पिता पहले से ही वहां थे। वे फेरी देकर कपड़ा बेचा करते थे। श्रीचंदजी से भी उन्होंने वही कार्य प्रारंभ करवाया। पांच-सात दिनों तक तो उन्होंने पिता के साथ फेरी दी, परंतु वह कार्य जंचा नहीं, अतः छोड़ दिया। जेठमलजी के बार-बार समझाने पर भी वे फेरी देने के लिए तैयार नहीं हुए तब अपनी जान-पहचान वाले व्यक्तियों से कुछ आर्थिक सहयोग लेकर उन्होंने दुकान प्रारंभ करवा दी। वह ठीक नहीं चल पाई। तब चंडालियों के साझे में दुकान की और फिर कुछ समय पश्चात् अपना स्वतंत्र व्यापार प्रारंभ कर दिया। परिश्रमी और अध्यवसायी व्यक्ति थे। भाग्य ने भी साथ दिया। दुकान का कार्य अच्छा चल निकला।
*प्रथम दर्शन*
श्रीचंद्रजी कलकत्ता में थे तब थली में उनके पिता जेठमलजी ने संवत् 1937 में तेरापंथ की श्रद्धा ग्रहण कर ली। पत्राचार में जब उनको यह सूचित किया गया तब उन्होंने भी वही श्रद्धा स्वीकार कर ली। डेढ़ वर्ष की अपनी प्रथम बंगाल यात्रा संपन्न करके जब वे सरदारशहर आए तब जेठमलजी ने उनको जयाचार्य के दर्शन करने के लिए जयपुर भेजा। उन्होंने वह लंबा मार्ग ऊंट की सवारी से पार किया और जयाचार्य के प्रथम गुरु-दर्शन उनके समग्र जीवन का संबल हो गया। उस समय वे केवल तीन दिनों की सेवा करके पुनः सरदारशहर आ गए, परंतु उन कुछ ही दिनों के संपर्क ने उनके अंतःकरण में धार्मिकता की ऐसी लौ प्रज्वलित कर दी जो कि आजीवन निर्धूम जलती रही।
*दायित्व बोध*
श्रीचंद्रजी जयाचार्य के तो दर्शन मात्र ही कर पाए, परंतु मघवागणी से कालूगणी तक के चारों आचार्यों की उन्होंने खूब सेवा की। संवत् 1936 तथा 40 में मघवागणी का सरदारशहर में पदार्पण हुआ तब उनको अत्यंत निकटता से गुरु-सेवा का अवसर प्राप्त हुआ। तभी से उनके मन में समाज के प्रति अपने दायित्व का भी बोध अंकुरित हुआ। उस वर्ष सेवा में समागत बंधुओं के लिए समाज की ओर से जो व्यवस्था की गई उसमें उन्होंने खुलकर भाग लिया। फिर तो उनके लिए सामाजिक सेवाओं का वह सिलसिला प्रारंभ हुआ कि जो आजीवन चलता रहा। दायित्व बोध ने उनके कार्य क्षेत्र को विस्तृत बनाया और कार्यो ने दायित्व ग्रहण करने की क्षमता को बढ़ाया।
*तेरापंथ धर्मसंघ की एक महत्त्वपूर्ण घटना के माध्यम से महान् शासन-सेवी... महान् उपासक... आचार्यों के कृपापात्र श्रावक श्रीचंदजी गधैया की दूरदर्शिता* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 सिलिगुड़ी - EYE, Diabetic, and BP Check up camp" का आयोजन
👉 मुम्बई - अणुव्रत समिति द्वारा आतिशबाज़ी को कहे ना कार्यक्रम आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🔉 *उदघोषणा* 🔉
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🏮 *परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने समणी मल्लिप्रज्ञाजी को समणी नियोजका* के रूप में नियुक्त किया है....
🌈 ज्ञातव्य है कि *निवर्तमान समणी नियोजिका चारित्रप्रज्ञाजी* की आगामी 11 नवंबर को साध्वी दीक्षा घोषित है ।।
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
News in Hindi
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🙏 *परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने* 11 नवंबर को चेन्नई में आयोजित होने वाले "दीक्षा समारोह" में *श्री अशोक बोहरा* (मुसालिया- चेन्नई) को *सपरिवार दीक्षा प्रदान करने की घोषणा की* है।
👉 *घोषणा का वीडियो..*
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
🌸 *तेरापंथ धर्मसंघ में दीक्षित होगा एक साथ पूरा परिवार* 🌸
परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने 11 नवंबर को चेन्नई में आयोज्य दीक्षा समारोह में श्री अशोक बोहरा (मुसलिया- चेन्नई) को सपरिवार दीक्षा प्रदान करने की घोषणा की है। परिवार से दीक्षित होने वाले सदस्य इस प्रकार हैं --
श्री अशोक बोहरा (पति)
श्रीमती पुष्पलता बोहरा (धर्मपत्नी)
श्री कुलदीप बौहरा (पुत्र)
सुश्री कोमल बोहरा (पुत्री)
ज्ञातव्य है कि अशोक जी की संसारपक्षीया पुत्री साध्वी सिद्धार्थप्रभाजी पहले से धर्मसंघ में दीक्षित है। इस प्रकार पूरा परिवार तेरापंथ धर्मसंघ में समर्पित होकर नया इतिहास रचने जा रहा है।
संप्रसारक
*जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा*
संप्रेषक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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