13.09.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 13.09.2018
Updated: 03.10.2018

Update

👉 फरीदाबाद - क्षमा होगी उन्नत आत्मा बनेगी सशक्त कार्यशाला का आयोजन
👉 किशनगंज - अणुव्रत चेतना दिवस का आयोजन
👉 उधना, सूरत - अणुव्रत चेतना दिवस का आयोजन
👉 भुसावल - दम्पति शिविर का आयोजन
👉 उधना - जप दिवस का आयोजन
👉 उधना: - पर्युषण पर्व - ध्यान दिवस का आयोजन
👉 पुणे - तप अभिनंदन कार्यक्रम व ध्यान दिवस संपन्न
👉 मैसूर - तप अभिनंदन कार्यक्रम व ध्यान दिवस संपन्न

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 पुणे - मास खमण तप अभिनन्दन

प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 *तेरापंथ नेटवर्क*

*जैन तेरापंथ कार्ड* धारकों को विषेश छूट आचार्य महाश्रमण मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति, कोयम्बत्तूर द्वारा...

*जैन तेरापंथ कार्ड* के लिए Logon करें
www.terapanthnetwork.com पर...

Terapanth Network Mobile App डाउनलोड करें
https://goo.gl/pjkkac

प्रस्तुति: 🔅 *तेरापंथ नेटवर्क* 🔅
संप्रसारक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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Update

Video

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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 13 सिंतबर 2018

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Video

13 September 2018

❄⛲❄⛲❄⛲❄⛲❄

👉 *परम पूज्य आचार्य प्रवर* के
प्रतिदिन के *मुख्य प्रवचन* को
देखने- सुनने के ‌लिए
नीचे दिए गए लिंक पर
क्लिक करें....⏬

https://youtu.be/xbGUOzK51cY

📍
: दिनांक:
*13 सितंबर 2018*

: प्रस्तुति:
❄ *अमृतवाणी* ❄

: संप्रसारक:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 423* 📝

*महामनीषी आचार्य मलयगिरि*

*साहित्य*

गतांक से आगे...

*पिण्ड निर्युक्ति वृत्ति* इसकी रचना आचार्य भद्रबाहु कृत पिण्डनिर्युक्ति के आधार पर है। दशवैकालिक सूत्रान्तर्गत पंचम अध्ययन की निर्युक्ति का नाम पिण्डनिर्यूक्ति है।

*आवश्यक वृत्ति* यह टीका आवश्यकनिर्युक्ति पर रची गई है। टीका का उद्देश्य बताते हुए टीकाकार कहते हैं कि इस सूत्र पर कई रचनाएं हैं। मंदबुद्धि पाठकों के लिए उन्हें समझना दुरूह होता है, अतः उनके लिए इस विवरण में अपने प्रतिपाद्य का समर्थन करने के लिए टीकाकार ने भाष्य गाथाओं का उपयोग किया है। इसमें सप्रसंग कथानक है। यह टीका वर्तमान में अपूर्ण रूप में उपलब्ध है। इसका ग्रंथमान 18000 श्लोक परिमाण है। टीका में प्रयुक्त कथानक प्राकृत में है।

*वृहत्कल्पीठीका वृत्ति* इस वृत्ति की रचना निर्युक्ति और भाष्य गाथाओं पर हुई है। निर्युक्ति गाथाएं भद्रबाहु की और भाष्य गाथाएं संघदासगणी की हैं। इस वृत्ति में प्राकृत कथानकों का उपयोग है। मलयगिरि इस टीका के 4600 श्लोक ही रच पाए थे। अवशेष भाग को क्षेमकीर्ति ने पूरा किया। मलयगिरि ने चूर्णिकार को अंधकार में दीपक की तरह प्रकाशक माना है। मंदबुद्धि पाठकों के लिए इस टीका की रचना की गई है।

*मलयगिरि शब्दानुशासन* यह 3000 पद्य परिमाण है। कुमारपाल के शासनकाल में इस ग्रंथ की रचना हुई। आचार्य हेमचंद्र के सिद्धहेमशब्दानुशासन के साथ इसके सूत्रों की समानता है। पंचसंग्रह वृत्ति, कर्म प्रकृति वृत्ति, धर्मसंग्रहणी वृत्ति, सप्ततिका वृत्ति, वृहद्संग्रहिणी वृत्ति, वृहद्क्षेत्रसमास वृत्ति जैसे ग्रंथ सैद्धांतिक चर्चाओं से परिपूर्ण हैं। आगम टिकाओं की भांति आचार्य मलयगिरि की ये कृतियां भी प्रौढ़ रचनाएं हैं।

जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ओघनिर्युक्ति, विशेषावश्यक, तत्त्वार्थाधिगम, धर्मसारप्रकरण, देवेंद्र नरकेंद्र प्रकरण इन ग्रंथों पर भी मलयगिरि की टीकाओं के संकेत उनके ग्रंथों से प्राप्त हैं। देशीनाममाला का संकेत जीवाभिगम सूत्र में है। पर वर्तमान में यह उपलब्ध नहीं है।

मलयगिरि की टीकाएं प्रसाद और माधुर्य गुण से संपन्न हैं और सामग्री बहुल हैं। ये प्रयोगों की नवीनता से पाठकों को तुष्टि प्रदान करने वाली हैं। टीका साहित्य में मलयगिरि का अनुपम अवदान है। जैन मनीषी टीकाकारों में पच्चीस टीकाओं की रचना करने वाले और अपना अधिकांश समय टीका साहित्य की रचना में ही समर्पित कर देने वाले आचार्य मलयगिरि इतिहास के पृष्ठों पर अकेले हैं। आगमों पर उपलब्ध टीकाएं बहुमुखी सामग्री से संपन्न है।

आचार्य मलयगिरि टीकाकार जैनाचार्यों में अग्रणी हैं। उनकी टीकाओं का टीका साहित्य में आदरास्पद स्थान है। क्षेमकीर्ति ने मलयगिरि के शब्दों को चंदन के समान ताप हर माना है। वे कहते हैं

*आगमदुर्गमपदस्रंशयादितापो विलीयते विदुषाम्।*
*यद्वचनचन्दनरसेः मलयगिरिः से जयति यथार्थः।।*
*(कल्पभाष्य टीका ग्रंथ)*

*समय-संकेत*

टीकाकार मलयगिरि आचार्य हेमचंद्र के समकालीन थे। आचार्य हेमचंद्र का स्वर्गवास 84 वर्ष की उम्र में वीर निर्वाण 1699 (विक्रम संवत् 1229) में हुआ था। इस आधार पर टीकाकार मलयगिरि का समय भी वीर निर्वाण 17वीं-18वीं (विक्रम की 12वीं-13वीं) शताब्दी सिद्ध होता है।

*समाधि-सदन आचार्य शुभचन्द्र के प्रेरणादायी प्रभावक चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 77* 📜

*हीरालालजी आंचलिया*

*विपन्न व सम्पन्न*

गंगाशहर निवासी हीरालालजी आंचलिया का जन्म संवत् 1907 में हुआ। उनके पिता धनसुखदासजी मुर्शिदाबाद जिले के जियागंज (पश्चिम बंगाल) में बिदासर के हठीसिंह सूरजमल बैंगानी नामक फर्म में मुनीम थे। उन्होंने अपने दोनों पुत्रों हीरालालजी और हंसराजजी को भी वहीं पर कार्य दिलवा दिया। हीरालालजी रोकड़ का काम देखा करते थे। कालांतर में उस फर्म के मालिकों ने कलकत्ते में अफीम का सट्टा प्रारंभ कर दिया, अतः उनकी सारी संपत्ति उसी में स्वाहा हो गई। फर्म फेल हो गई। मालिकों के साथ-साथ नौकरों पर भी विपत्ति टूट पड़ी। उनकी आजीविका का वह साधन समाप्त हो गया।

हीरालालजी ने तब भीनासर के बांठिया परिवार की साझेदारी में सिलहट (असम) में नया कार्य प्रारंभ किया। वह अच्छी तरह से चल नहीं पाया, अतः उसे शीघ्र ही बंद कर देना पड़ा। उसके पश्चात् संवत् 1946 में उन्होंने सैंथिया (पश्चिम बंगाल) में गल्ले की दुकान कर ली। पूर्ण परिश्रम और लगन के साथ वे अपना कार्य करते थे, फिर भी लगभग 10 वर्षों तक कोई विशेष आर्थिक लाभ नहीं उठा पाए। संवत् 1956 में उनकी आर्थिक स्थिति में नया मोड़ आया। उस वर्ष तथा उसके बाद के वर्षों में उन्हें अच्छा आर्थिक लाभ प्राप्त हुआ। वे मध्यम वर्ग से उठकर शीघ्र ही धनिक वर्ग में गिने जाने लगे। विपन्नता से संपन्नता में आने पर भी वे सदा नम्र और मिलनसार ही बने रहे। अवलिप्तता व अव्यावहारिकता उन्हें कभी छू नहीं पाई।

*मंदिर और सम्यक्त्व*

धन के साथ-साथ उनका सामाजिक सम्मान भी बढ़ा सैंथिया के जैन परिवारों में वे एक प्रमुख व्यक्ति गिने जाने लगे। हर सामाजिक कार्य में वे अपना श्रम और अर्थ दोनों ही लगाया करते थे। उन्होंने तपस्वी मुनि गुलहजारी के पास तत्त्वज्ञान तथा सम्यक्त्व प्राप्त की थी। तेरापंथ में उनकी आस्था बड़ी सुदृढ़ थी। वह युग यद्यपि धार्मिक कट्टरता का था। फिर भी वे उदार विचारों के व्यक्ति थे, अतः कट्टर होते हुए भी इतर संप्रदायों के प्रति आदर का व्यवहार रखते थे। यही कारण था कि जब सैंथिया में जैन मंदिर निर्माण समिति का गठन किया गया तब उसके पांच व्यक्तियों में एक हीरालालजी भी चुने गए। उस मंदिर निर्माण में न केवल उन्होंने अपना श्रम ही लगाया किंतु काफी सारा रुपया भी लगाया।

उक्त मंदिर में वे बहुधा आया-जाया करते थे। जब कोई उन पर यह व्यंग कसता कि तुम तेरापंथी होकर भी मंदिर में जाते हो, अतः तुम्हारी सम्यक्त्व पक्की नहीं है। तब वे बराबर का उत्तर देते हुए प्रायः कहा करते कि मैंने तपस्वी मुनि गुलहजारी के पास से सम्यक्त्व ग्रहण की है। वे जितने पक्के हैं उतनी ही मेरी सम्यक्त्व भी पक्की है। किसी के यहां जाने-आने मात्र से उसमें कोई अंतर आने वाला नहीं है।

*गंगाशहर के श्रावक हीरालालजी आंचलिया की धार्मिक निष्ठा और स्पष्टवादिता* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi

🌈 *अनुप्रेक्षा और लेश्याध्यान, कायोत्सर्ग,*
*श्वास-प्रेक्षा से धरा पर उतर आए स्वर्ग।* 🌼

⛩ *चेन्नई (माधावरम), महाश्रमण समवसरण में..*
*गुरुवरो धम्म-देसणं!*
👉 *पर्युषण पर्व का सातवां दिन "ध्यान दिवस"*

👉 *पूज्य गुरुदेव ने करवाया ध्यान का प्रयोग..*

👉 *आज के "मुख्य प्रवचन" कार्यक्रम के कुछ विशेष दृश्य..*

दिनांक: 13/09/2018

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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल, माधावरम,
चेन्नई.......


परम पूज्य आचार्य प्रवर
के प्रातःकालीन भ्रमण
के मनमोहक दृश्य....

📮
दिनांक:
13 सितंबर 2018

🎯
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:

*अपने प्रभु का साक्षात्: वीडियो श्रंखला १*

👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*

*- Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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