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जब fortuner मे घुमने वाला पहुँचा खजुराहो ओर देख दिगम्बर संत को.. हो गया दीवाना.. 😊🙏
वो जाति से जैन नही था किंतु अपने पुण्य के प्रभाव से बहुत पैसे वाला था सो हमेशा बातानुकूलित कमरा या कार में ही बैठा रहता था भगवान के प्रति उसकी आस्था मात्र दीवारों पर लगे चित्र को प्रणाम करने तक थी एक दिन अपनी नयी फार्च्यूनर में बैठ कर खजुराहो घूमने के मकसद से पहुचा, अभी गाड़ी क्षेत्र पर पहुची ही थी कि उसे आहार क्रिया के लिये जाते संतो का दर्शन हो गया चिलचिलाती धूप में कुछ दूर चलना ही मुश्किल था वही मुनिराज अपने पूरे शरीर पर धूप की चादर यू ओढ़े हुए थे जैसे कोई नरम वस्त्र हो गर्म सड़क पर वे ऐसे चले जा रहे थे जैसे उन्हें गर्मी का अहसास भी ना हो रहा हो जबकि साथ चलने वाले श्रावक उछल उछल कर मुह से उई उई की आवाज निकालते हुए चल रहे थे*
_कुछ देर तक तो वह इस दृश्य को देखता रहा वही गाड़ी किनारे खड़ी करवाकर खड़ा रहा फिर अचानक उसे ना जाने क्या सूझा उसने पास की ही एक दुकान से झटपट एक छाता खरीदा और अपने जूते चप्पल गाड़ी में ही छोड़ कर सड़क के किनारे खड़ा हो गया और इंतजार करने लगा कि मुनिराज आहार के बाद लौट कर मन्दिर जी जाएंगे_
*फिर उसने एक नही दो नही बल्कि सात सात मुनिराजों को क्रमशः फेरे लगाते हुए उनके ऊपर छाता लगा कर मन्दिर जी तक छोड़ा इस दौरान वह बिलकुल नंगे पैर था पर मजाल थी कि उसके पैरों में कोई लड़खड़ाहट आई हो या उसने पैरों को उचकाया हो जब उसे इस बात की तसल्ली हो गयी कि अब सभी मुनिराज मन्दिर जी मे पहुच गए है तो उसने अपनी गाड़ी में जाकर अपने जूते पहिनने को पैर डाला तो देखा कि उसमें बहुत बड़े बड़े फफोले हो गए है किंतु वह फफोले उसे आज दर्द नही बल्कि सुकून दे रहे थे उसने आज जिस सुख को पाया था वह ऐसे सुख को अपनी जिंदगी में कभी बातानुकूलित कमरे या कार में बैठ कर नही पा पाया था*
_वह आज बहुत खुश था और इसी खुशी के अवसर को यादगार बनाने के लिये उसने कुछ देर वही बैठ कर आचार्य भगवंत के दोपहर में होने वाले प्रवचनों को सुना और एक शिष्य की भांति उनके कहे शब्दो की विशालता का मनन करते हुए उन्हें आचरण रूप स्वीकार करते हुए प्रतिदिन दिन भर में आठ घंटे तक बातानुकूलित कमरे का त्याग कर दिया_
*ऐसे एक नही हजारो उदाहरण है जहां लोग एक झलक देखने के बाद या चलते चलते एक शब्द सुनने के बाद अपने आचरण में परिवर्तन करते हुए अपने जीवन को सम्यक दिशा में मोड़ लेते है क्योंकि दिगम्बर संत की साधना किसी भी नास्तिक को आस्तिक बना सकती है*
_धन्य है आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज जो खजुराहो में विराजे है तो वहां पहुचने वाले कितने ही भव्य जीव अपनी आत्मा का उद्धार मात्र उनके दर्शन और श्रवण से कर रहे है ऐसे गुरु सदा जयवंत हो_
*श्रीश ललितपुर*
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आत्मीय स्वजन,
परम पूज्य आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज के *दीक्षा दिवस* के अवसर पर, पूज्य १०५ श्री अनंतमति माताजी के सानिध्य में, *आप और हम* सभी लोग मिलकर, रविवार *19 August और 20 August* को *कुंडलपुर क्षेत्र* (दमोह, मध्यप्रदेश) पर पूजन, विधान, वंदना के साथ, महाराज जी के संस्मरण आपस में साझा करेंगे।
मुनिश्री के दीक्षा दिवस पर, *मैत्री समूह* एवं *तीर्थक्षेत्र कमिटी कुंडलपुर* (दमोह) आप सभी को आमंत्रित करती है 🙏🏻
मैत्री समूह एवं तीर्थक्षेत्र कमिटी कुंडलपुर
+91 94254 24984
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आचार्य विद्यासागरजी महाराज ने कहा व्रत के पालन में यदि कोई गडबड न हो तो आत्मा और मन पर एक ऐसी गहरी छाप पडती है कि खुद का तो निस्तार होता ही है, अन्य भी जो इस व्रत तथा व्रती के संपर्क में आते हैं, वे प्रभावित हुए बिना रह नहीं सकते.
अपने प्रवचन के दौरान आचार्यश्री ने एक प्रसंग सुनाया. उन्होंने बताया कि एक भिक्षुक झोली लेकर रोटी मांगने पहुंचा. घर में से बेहद रूखा जवाब मिलने पर वह आगे बढ. गया. एक थानेदार को उस पर तरस आ गया. उसने नौकर को रोटी लेकर भिक्षुक के पास भेजा. भिक्षुक ने नौकर से कहा कि वह रिश्वत की रोटी नहीं खाता. नौकर ने घर लौटकर थानेदार को यह बात बताई. भिक्षुक की इस बात का थानेदार के मन पर अत्यंत गहरा असर हुआ. उसने सदा-सदा के लिए रिश्वत लेनी छोड. दी.
महाराजश्री के अनुसार जो गलत तरीके से रुपए कमाते हैं, वे दान देने में अधिक उदारता दिखाते हैं. वे सोचते हैं कि इसी तरह थोड. धर्म मकट्ठा कर लिया जाए. लेकिन, धर्म ऐसे नहीं मिलता. धर्म तो अपने श्रम से निर्दोष रोटी कमाकर दान देने में ही है!!
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गोमटेश्वर भगवान बाहुबली 2018 महामस्तक अभिषेक की Last Date?
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आज मुनिश्री प्रणम्यसागर महाराज ने कहा कि पौराणिक पुस्तकों में सज्जन के साथ दुर्जनो का भी स्मरण किया गया है ।
ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे मन में कहीं कोई खलनायक की भूमिका को लेकर जगह बनी रहती है ।सज्जन तो गुणग्राही होते हैं ।वे दुर्जनो में भी कोई गुण ढूंढ लेते हैं ।अपने दोषदर्शन में उनकी भूमिका स्वीकार कर लेते है ।मुनिश्री ने कहा कि परन्तु हमें इस छिद्राभिलाषा से बचना चाहिए क्योंकि यही आदत परिवार और समाज में वैमनस्य का कारण बन सकती है ।हमें अपने परिजनों पुरजनो में शंका नहीं रखनी चाहिए और उनकी गल्तियो को नजरअंदाज करने की
उदारता होनी चाहिये ।छिद्राभिलाषा हर हाल में त्याज्य है क्योंकि यह हमारे और हमारे परिवेश के लिए घातक है ।मुनिश्री ने कहा कि हम विवेकशील प्राणी है ।हमें अपने परिजनों को लेकर गंभीर रहना चाहिए और छिद्राभिलाषा से बचना चाहिए ।मुनिश्री ने रोजमर्रा के जीवन से अनेक उदाहरण देते हुए कहा कि इससे सुधार की बजाय बिगाड़ की अधिक संभावना है इसलिएयह आदत जल्दीसे जल्दी छूटनी चाहिए ।छिद्राभिलाषा और रोकटोक वैरवह्नि को बढ़ाने काम करती है ।मुनिश्री ने अपने उद्बोधन के समापन पर श्रोताओं के मनन लिए अधोसंरचना भी कही:
मैं हूँ वो नहीं जो तुम्हें दिख रहा हूँ ।मैं हूँ जो नजर से परे ही रहा हूँ ।न जाने यहाँ कहाँ आ गया हूँ ।मैं चेतन हूँ तन में समाया गया हूँ।जो छूटा था मुझसे वो मेरा ही क्या था ।मैं बन्धन से मुक्ति को अब पा रहा हूँ ।
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