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विलक्षण जैन-मुनि विद्यासागरजी #डॉ_वेदप्रताप_वैदिक
दिगंबर जैन मुनि श्री विद्यासागरजी महाराज का 51 वां दीक्षा-समारोह सारे देश में मनाया जा रहा है। किसी व्यक्ति का जैन-मुनि बनना अपने आप में अत्यंत कठिन तपस्या है और दिगंबर मुनि बनना उससे भी कठिन है। इतना ही नहीं, विद्यासागरजी-जैसा मुनि बनना तो अत्यंत दुर्लभ है। जैन-मुनियों से बचपन से ही मेरा संपर्क रहा है। आचार्य तुलसी महाप्रज्ञजी, महाश्रमणजी, विद्यानंदजी, आचार्य जयंतसेन सूरीश्वरजी आदि से विचार-विमर्श और सतसंग के मुझे कई अवसर मिले हैं लेकिन मेरी ऐसी धारणा है कि मुनि विद्यासागरजी मुझे सबसे अलग और दुर्लभ लगे। विद्यासागरजी मुझसे मिलना चाहते हैं, यह बात मुझे मेरे कई प्रतिष्ठित जैन-मित्रों ने कई शहरों से फोन पर कही। मुझे आश्चर्य हुआ। फिर कुछ मित्रों ने इंदौर और नागपुर से फोन किया कि वे पिछले तीन दिन से अपने उपदेशों में रोज आपका जिक्र कर रहे हैं। आपकी 50 साल पुरानी किताब ‘अंग्रेजी हटाओः क्यों और कैसे?’ के तर्कों का समर्थन कर रहे हैं। मैंने मालूम किया तो पता चला कि वे कोरे साधु नहीं हैं। महापंडित हैं। कई भाषाओं के जानकार हैं। स्वयं कन्नड़भाषी हैं। अनेक ग्रंथों के रचनाकार हैं। कवि हैं, विद्वान हैं, लेखक हैं। पांच साल पहले नागपुर के पास रामटेक में वे विहार कर रहे थे। मैं नागपुर पहुंचा। पहले सरसंघचालक मोहन भागवतजी के साथ मध्य-रात्रि तक भोजन और संवाद चला। फिर सुबह-सुबह विद्यासागरजी से भेंट हुई। 15 मिनिट की भेंट लगभग 2 घंटे चली। उन्होंने अपनी चर्या स्थगित कर दी। परिचय का यह शुभारंभ घनिष्टता में बदल गया। उन्होंने मेरी जन्म-तिथि पूछी और कहा कि आप मुझसे दो साल बड़े हैं। बड़े भाई हैं। यह रिश्ता अमर हो गया। फिर कई बार भेंट हुई और हमारे बीच सतत संवाद कायम है। उन्होंने मेरी दो पुस्तकों- ‘अंग्रेजी हटाओ’ और ‘मेरे सपनों का हिंदी विश्वविद्यालय’ की एक-एक लाख प्रतियां छपवा दीं। इस समय देश में भारतीय भाषाओं का सबसे बड़ा पक्षधर कोई संत है तो वे विद्यासागरजीी ही हैं। उनका त्याग, उनकी तपस्या, उनकी विद्वता, उनकी सहृदयता, उनकी उदारता- सब कुछ अत्यंत अनुकरणीय है। वे सच्चे धर्मध्वजी हैं। वे करोड़ों लोगों को सदेह मोक्ष का मार्ग दिखा रहे हैं। वे सभी संप्रदायों के लोगों के लिए पूज्य हैं। वे स्वस्थ रहें और शतायु हों, इसी शुभकामना के साथ मैं उन्हें विनयपूर्वक प्रणाम करता हूं।
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Breaking News.. आचार्य श्री अपने 38 शिष्यों सहित करेंगे #चातुर्मास खजूराहों में!!! 🙂🙏 चातुर्मास की कलश स्थापना 29 जुलाई रविवार को दोपहर 1:30 बजे से होगी!
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exclusive pic from Girnar.. Mahamastak Abhishek.. of Neminath Swami 🙂🙏
आज भगवान नेमीनाथ जी का मोक्ष कल्यानक हैं.. भगवान ने गिरनार पर्वत की पाँचवी टोंक से तप करके मोक्ष प्राप्त किया.. 5th टोंक पर छोटी सी 2000 वर्ष से भी प्राचीन प्रतिमा भगवान नेमीनाथ जी की हैं तथा चरण भी हैं.. हालाँकि प्राचीन चरण के ऊपर नवीन चरण बना दिए गए हैं.. ओर प्रतिमा पर रंग लगाकर घिसदिया गया ताकि वीतराग मुद्रा ना दिखे.. दत्त नाम के भगवान नेमीनाथ जी के गणधर थे वो भगवान के साथ बहुत समय तक गिरनार पर रहे..
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काठमांडु, नेपाल जैन मंदिर जी 🙂🙏
आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की स्वर्ण संयम महोत्सव के मंगल उपलक्ष्य में महाआरती का आयोजन काठमांडु जैन मन्दिर जी मे भी रख्खा गया था । श्री दिगम्बर जैन मंदिर जी के अध्यक्ष श्री पंकज कुमार जैन,वरिष्ठ श्रावक श्री नंदकिशोर जी जैन व समाज के समस्त श्रावक परिवार व बच्चों के साथ सम्मिलित हो कर सभी लोगो ने इसमे ज्यादा से ज्यादा पुण्यार्जन किया ।।।
श्री 1008 आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद, नेपाल इकाई, भगवान महावीर जैन निकेतन, कमल पोखरी चौक, काठमांडु, नेपाल
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भगवान नेमीनाथ जी आज के दिन गिरनार से मोक्ष गए थे.. नेमीनाथ भगवान का दूसरा नाम क्या हैं?
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बोले राजुल ये भव् वन है सपना, जिसमे कोई नहीं है अपना!
निज से निज को भजो, राज माया तजो, मोक्ष पधारे... तेरे चरणों में हम जाए गिरनार वाले! 🙏 आज भगवान नेमिनाथ जी ने गिरनार जी से मोक्ष प्राप्त किया था 🙂
कर्मो की धुल अपनी आत्मा पर से उड़ाने वाले, सम्यत्व का शंख फुकने वाले, धर्म की धूरा भगवान् नेमिनाथ के चरणों में त्रिवर नमोस्तु! उस पवित्र गिरनार भूमि को त्रिकाल वंदन और आलोक -पंचम टोंक की रज रज को प्रणाम और वंदन! मन में लागी लगन, आया तेरी शरण नेमी प्यारे... मेटो मेटो जी संकट हमारे! गिरनार जी पहाड़ पर पहले टोंक में विराजित तीनो लोक और तीनो काल को जानने वाले जगत पूज्य भगवान् नेमिनाथ! आज नेमिनाथ भगवान् सहित गिरनार की ध्यान करे बहुत ऊर्जा मिलेगी आपको और गिरनार संरक्षण की भावना करे!
*Article drafting & photograph taken by Nipun Jain
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*आज तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान् का मोक्ष कल्याणक है! बोलिए, नेमिनाथ भगवान् की जय!
महाभारत काल 3137 ई.पू. के लगभग नमि के बाद 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ का उल्लेख हिंदू और जैन पुराणों में स्पष्ट रूप से मिलता है। शौरपुरी (मथुरा) के यादववंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय के पुत्र थे नेमिनाथ। अंधकवृष्णी के सबसे छोटे पुत्र वासुदेव से उत्पन्न हुए श्रीकृष्ण। इस प्रकार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण दोनों चचेरे भाई थे। आपकी माता का नाम शिवा था।
नेमिनाथ का विवाह गिरिनगर (जूनागढ़) के राजा उग्रसेन की पुत्री राजुलमती से तय हुआ। जब नेमिनाथजी बरात लेकर पहुँचे तो उन्होंने वहाँ उन पशुओं को बँधे देखा जो बरातियों के भोजन के लिए मारे जाने वाले थे। तब उनका हृदय करुणा से व्याकुल हो उठा। मनुष्य की इस हिंसामय प्रवृत्ति से उनके मन में विरक्ति और वैराग्य हो उठा। तक्षण वे विवाह का विचार छोड़कर गिरनार पर्वत पर तपस्या के लिए चले गए।
गिरनारी नेमी वंदन से कर्मो के बंधन खुल जाते,
सन्मति समता सुख अनचाहे, भक्ति से सब जन ही पाते!
कठिन तप के बाद वहाँ उन्होंने कैवल्य ज्ञान प्राप्त कर श्रमण परम्परा को पुष्ठ किया। अहिंसा को धार्मिक वृत्ति का मूल माना और उसे सैद्धांतिक रूप दिया। इति। नमो अरिहंताणं।
जय जय जय हो....धर्मं की धुरा यानी नेमी ऐसे नेमीनाथ सदा ही हमरे ह्रदय में वास करे...
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