11.07.2018 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 12.07.2018
Updated: 12.07.2018

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true words..

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आचार्यश्री विद्यासागर जी महामुनिराज का छतरपुर से विहार

आज ही प्रवेश और आज ही गुरुदेव ने छतरपुर से विहार किया ऐसी संभावना जताई जा रही थी कि 1-2 दिन का सानिध्य छतरपुर को मिलेगा पर गुरुजी ने डेरा पहाड़ जी अतिशय क्षेत्र के दर्शन कर 3:45 बजे खजुराहो की ओर विहार कर दिया

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UPDATE —Acharya Shri ka Pravesh aaj Chattarpur me hua..

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*आत्मानुशासन*

हे भव्य जीव! जो शिकार आदि व्यसन प्रत्यक्ष में ही दुख के स्थानभूत हैं, जिनमें पापी जीव ही प्रवृत्त होते हैं, तथा जो परभव में दुखदायक होने से अतिशय भयानक हैं, वे भी यदि संकल्प मात्र से तेरे सुख के लिए हो सकते हैं तो फिर विवेकी जन इंद्रियसुख को न छोड़कर जिस धर्मयुक्त आचरण को करते हैं तथा जो दोनों ही लोकों में कल्याणकारक है उस धर्ममय आचरण में तू उक्त संकल्प को क्यों नहीं करता है? अर्थात् उसमें ही तुझे सुख की कल्पना करना चाहिए । उदाहरण के रूप में एक ही समय में जहां किसी एक के घर पर इष्ट संबंधी का मरण होता है, वहीं दूसरे के घर पर पुत्रविवाह आदि का उत्सव भी संपन्न होता है । अब जिसके यहां इष्ट वियोग हुआ है वह उस एक ही मुहूर्त को अनिष्ट कहकर रुदन करता है और दूसरा उसे ही शुभ घड़ी मानकर अतिशय आनंद का अनुभव करता है । इससे निश्चित प्रतीत होता है कि जिस प्रकार वह घड़ी (मुहूर्त) वास्तव में इष्ट और अनिष्ट नहीं हैं, उसी प्रकार कोई भी बाह्य पदार्थ स्वरूप से इष्ट और अनिष्ट नहीं हो सकता है । उन्हें केवल कल्पना से ही प्राणी इष्ट व अनिष्ट समझने लगते हैं ।।२८।।

*जैनम् जयतु शासनम्, वन्दे विद्यासागरम्*

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जैसे को तैसा - एक मजेदार कहानी.. Tit for tat - an interesting story

एक बड़ा अभिमानी आदमी था। वह एक जगह पंगत में गया। भोजन में पापड़ परोसने का नम्बर आया। पापड परोसते परोसते, जब उसकी थाली में पापड परोसने का नम्बर आया, तब तक सिर्फ एक टूटा हुआ पापड बचा, तो परोसने वाले ने वही परोस दिया। अगला व्यक्ति पापड़ परोसकर चला गया, परन्तु इस आदमी ने इसे अपना अपमान मान लिया।उसने मन ही मन सोचा:” हूँह! मुझे टूटा हुआ पापड़ परोसा और सबको साबुत। क्या समझता है मेरे को? मैं इस अपमान का बदला लेकर रहूँगा!” यह सोच कर वह वहाँ से चला गया। अब दिमाग लगाया कि कैसे इससे बदला लिया जाए।

बदला लेने की मंशा से एक दिन उसने अपने घर में भोज का प्रबंध किया । तीस हजार रुपया कर्ज लेकर! क़र्ज़ लिया, भोज दिया, भोज में सबको बुलाया। गाँव भर के लोग आए जब पापड़ परोसने की बारी आई तो खुद अपने हाथ से पापड़ परोसने लगा। पापड़ परोसते परोसते जब उस आदमी का नम्बर आया, तो उसको तोड़कर पापड़ दे दिया। सामने वाला सहज भाव से पापड़ खाने लगा! इस व्यक्ति ने जब देखा की इसने कोई प्रतिक्रिया ही नहीं की, तो कुछ क्षण रुककर कहा- “बस आज हिसाब चुकता हो गया। तुमने मुझे टूटा पापड़ देकर मेरा अपमान किया था आज मैंने तुम्हें टूटा पापड़ देकर अपने अपमान का बदला ले लिया।”

उस दूसरे व्यक्ति ने अपना सिर पकड़ लिया और बोला- “भइया! मुझे तो पता ही नहीं कि मैंने तुम्हें कब टूटा पापड़ दिया! लेकिन मेरे टूटे पापड़ से तुम्हारा अपमान हुआ यह मुझसे कह देते, तो मैं उसी दिन तुमसे क्षमा मांग लेता! इतनी सारी मशक्कत करने की क्या जरूरत थी?” ऐसी ही परिणति है मनुष्य की! अपने आपको ऐसी परिणतियों से बचाने की कोशिश कीजिए।

अपमान किसी का कीजिए मत, अपने आपको कभी अपमानित मत होने दीजिए। कोई अपमान करे तो सहन करो और कदाचित उचित सम्मान न मिले तो भी इसे अपमान मत मानो क्योंकि यह प्रवृत्ति सिवाय अशांति के और कुछ भी नहीं देने वाली।

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