20.06.2018 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 20.06.2018
Updated: 21.06.2018

Update

आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की दीक्षा जयंती स्वर्ण महोत्सव पर 30 जून को 65 फीट ऊंची कीर्ति स्तंभ का अनावरण किया जाएग| सुधा सागर महाराज 30 जून को करेंगे लोकार्पण.

जयकारा गुरुदेव का जय जय गुरुदेव🙏

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बाँसवाडा जिले के नरवाली गाँव (तहसील घटोल, राज.) में माही नदी से लगभग 3-4वी सदी की भगवान बाहुबली जी की प्राचीन खड्गासन प्रतिमा प्राप्त होने से जैन समाज में हर्ष.... विश्व जैन संगठन

जय गोम्मटेश जय बाहुबली....धन्य हो राजस्थान दो दिन में दो प्राचीन प्रतिमायें प्राप्त

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आज पपोरा जी में आचार्य श्री के दर्शनार्थ पधारें धर्म प्रचारक संत संतोष दास सतुआ बाबा..

एक बार आचार्यश्रीजी के पास राष्ट्र विषयक चर्चा चल रही थी। किसी प्रसंग पर आचार्यश्रीजी ने कहा- ‘सोने की चिड़िया.....' नामक पुस्तक को पढ़ लेना चाहिए। गुरु मुख से पुस्तक का अधूरा नाम सुनकर, सामने से किसी ने उसे पूरा करते हुए कहा- ‘आचार्यश्रीजी! और लुटेरे अंग्रेज।' उन्हें लगा कि शायद गुरुजी के लिए पूरा नाम विस्मृत हो गया होगा। चर्चा चलती रही। दूसरी बार भी। यही हुआ, गुरुदेव ने अधूरा नाम लिया और सामने वाले ने विनम्र भाव से उसे पूरा करते हुए कहा- ‘आचार्यश्रीजी!... और लुटेरे अंग्रेज।' सामान्य से चर्चा आगे भी चलती रही। पर जब चर्चा के दौरान पुनः तीसरी बार गुरुजी द्वारा उस पुस्तक नाम उसी रूप में, उतना ही लिया गया और ज्यों ही सामने से उसे पूरा करने की कोशिश हुई, तब आचार्यश्रीजी ने समझाने के स्वर में बहुत ही आत्मीय भाव से कहा-'अरे! जब ‘सोने की चिड़िया' कहने से काम चल रहा है। फिर आगे के अपशब्दों का उच्चारण क्यों करना? लिखे हुए अपशब्दों का उच्चारण जिनकी जिह्वा नहीं करती, उनके द्वारा स्वयं से अपशब्दों का निःसृत होना असंभव ही है। अपनी प्रशंसा और दूसरों की निन्दा करने वाली अतिमानिनी भाषा से दूर रहकर ' भाषा समिति' का पालन करने वाले आचार्य भगवन् आचरण के आदर्श हैं।

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भोजपुर में प्रातः धवला जी की 16वीं पुस्तक की वाचना चल रही थी। उस समय सूर्य की किरण आचार्य श्री जी के ऊपर पड़ रही थी। समीप में बैठे हुए महाराज जी ने कहा - एक सूर्य दूसरे सूर्य का दर्शन कर रहा है। उनके बदन को स्पर्श कर रहा* *है। आचार्य महाराज ने अपनी प्रशंसा पर ध्यान न देते हुए बल्कि अपनी लघुता दर्शाते हुए कहा - देखो यह सूर्य ऐसा लग रहा है मानो सामने वाली पहाड़ी के पीछे ही हो, इतने पास लग रहा है* *जबकि पृथ्वी से कितनी दूरी है। इससे ज्ञात होता है कि "हमारा ज्ञान कितना नगण्य है, यह परोक्ष ज्ञान है।” अपना ज्ञान केवल ज्ञान के सामने ना के बराबर है। हमें इस ज्ञान पर कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए। यह सब सुनकर मुझे लगा धन्य है गुरु की निरभिमानता अपने* *आपको कितना लघु समझते हैं। यह उनकी महानता धन्य है। धन्य है ऐसे गुरु जो नाम और मान से कोसों दूर रहते हैं।

जो प्राप्त ज्ञान से मोह का हनन करता है वही मुमुक्षु माना जाता है। ज्ञान शिक्षण या पुरूषार्थ से प्राप्त नहीं होता, बल्कि श्रद्धा और समर्पण से प्राप्त होता है।

रजत जैन भिलाई

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