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#निंदा से घबराकर अपने #लक्ष्य को ना छोड़े.
क्योंकि
लक्ष्य मिलते ही #निंदा
करने वालों की #राय बदल जाती है।।
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गर्मी है और प्रत्येक वर्ष गर्मी में हजारों पक्षी (पंछी) जल उपलब्ध नहीं होने के कारण अपने प्राध त्याग देते हैं।
छत,बालकनी,चारदिवारी पर एक पानी का बरतन जरुर रखें जहां पर पक्षी (पंछी) आकर अपनी प्यास को शांत कर सके।बेजुबान पक्षी को राहत प्रदान करेगें।
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योग में #जैन_गुरुओं का योगदान
#InternationalDayofYoga2018 अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस - 2018 पर धर्म-योग का ऐतिहासिक आयोजन अहिंसा स्थल, मैहरोली, नई दिल्ली में 21 जून 18 को 6:30
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देवलोक गमन हुआ।
संथारा साधक निर्भीक फक्कड संत पूज्य श्री ज्ञान मुनि जी महाराज का अभी अभी राजधानी दिल्ली शास्त्रीे पार्क में देवलोक गमन हो गया है।
अंतिम शोभायात्रा कल (17:6:2018) दोपहर 2:00 बजे शास्त्री पार्क से आरंभ होगी और निगम बोध घाट जाएगी ।आप से निवेदन है कि अधिक से अधिक संख्या में सम्मिलित होकर महान साधक को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करें।
हार्दिक नमनांजली भावांजलि
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चैविहार संथारे का 12वाँ दिन🙏🏻🙏🏻
दिल्ली में प्रवासरत अपने जीवन की महाप्रयाण यात्रा को पूरी करने हेतु संथारा ग्रहण करने वाले ज्ञान महोदधि पूज्य गुरुदेव श्री ज्ञान मुनि जी महाराज का आज 16 जून 2018, दिन शनिवार को चैविहार संथारे का 12वाँ दिन है
आज भी महाराज श्री पूरी चेतना में हैं और दर्शनार्थियों को हाथ उठाकर आशीर्वाद दे रहे हैं।
भगवान महावीर की परम्परा के इस अतुलनीय महासाधक का दृढ़संकल्प अनुमोदनीय है।
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सुई की नोंक से ताड़पत्र पर तमिल में लिखा गया धर्मशास्त्र करीब 600 साल पुराना है।
जैन दर्शन पर आधारित पांडुलिपि श्रीसूत्र 475 साल पुरानी है। यह अब तक कहीं भी नहीं छपी है।
#कानपुर के बुजुर्ग ने घर में संजोईं सैकड़ों वर्ष पुरानी पांडुलिपियां
जिस दौर में दुनिया बिना कागज के ऑफिस और डिजिटाइजेशन की ओर जा रही है, उस दौर में कोई व्यक्ति सैकड़ों साल पुराने कागजों को संभालकर रखे, तो हैरान होना लाजिमी है। कानपुर के बुजुर्ग अशोक कुमार जैन ने अलग-अलग भाषाओं और विषयों की ऐसी ही पांडुलिपियां अपने पास सहेज रखी है।
पुष्करवानी ग्रूप ने बताया कि 84 साल के अशोक कुमार जैन के पूर्वज संभल में रहते थे। 1844-45 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अशोक के पुरखों को धर्मांतरण के लिए मजबूर किया। उन्होंने अपना धर्म नहीं छोड़ा, तो परिवार के कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। परिवार में बची एक महिला अपने दो नाबालिग लड़कों प्यारेलाल और कन्हैयालाल को लेकर 1862 में कानपुर आ गईं। अशोक के पिता पदमराज जैन जब 1932-33 में दोबारा संभल गए, तो वहां खंडहर हो चुकी हवेली से बोरों में भरे हुए कागज मिले। बाकी सामानों के साथ इन्हें कानपुर भेजा गया।
700 वर्ष पुरानी पांडुलिपि मौजूद
गंदगी से भरे इन कागजों को पढ़ने, समझने और साफ करने में 12 साल लग गए। इस पूरी कवायद से यह पता चला कि अलग-अलग विषयों की ये बेहद दुर्लभ पांडुलिपियां हैं। इसके बाद इन्हें संभाल कर रखा गया। बुजुर्ग जैन के चैत्यालय (घर में बना जैन मंदिर) में इन पांडुलिपियों को बेहद करीने से रखा गया है। ताड़पत्र पर लिखी पांडुलिपि करीब 700 साल पुरानी है।
जैन दर्शन पर आधारित पांडुलिपि श्रीसूत्र 475 साल पुरानी है। यह अब तक कहीं भी नहीं छपी है। सुई की नोंक से ताड़पत्र पर तमिल में लिखा गया धर्मशास्त्र करीब 600 साल पुराना है। कन्नड़ में लिखी बोधकथाएं भी हैरान कर देती हैं।
इसके अलावा कानपुर के ही एक परिवार की हाथ से लिखवाई गई 300 साल पुरानी गीता को आधुनिक तकनीक की मदद से संरक्षित किया गया है। इनके खजाने में सनातन धर्मशास्त्र, जैन शास्त्र, ज्योतिष और आयुर्वेद से संबंधित पांडुलिपियां मौजूद हैं।
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