15.06.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 15.06.2018
Updated: 18.06.2018

Update

Source: © Facebook

👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 15 जून 2018

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Update

👉 पुणे - दीक्षार्थी मंगल भावना समारोह
👉 गोरेगांव, मुम्बई - विश्व पर्यावरण दिवस का आयोजन
👉 साकरी - साध्वी श्री निर्वाणश्री के सान्निध्य में पत्रकार परिषद का आयोजन
👉 पल्लावरम: चेन्नई - भारतीय संस्कृति संस्कार संर्वधन सेमीनार का आयोजन
👉 गांधीनगर (बेंगलुरु): अभातेममं द्वारा संगठन यात्रा

*प्रस्तुति: 🌻 संघ संवाद*🌻

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👉 *इंदौर - आचार्य महाश्रमण कन्या सुरक्षा सर्कल का उद्घाटन*
🌀 कन्या सुरक्षा कन्या विकास कार्यशाला का आयोजन
🌀 *अभातेमम अध्यक्ष कच्छारा व पदाधिकारियों की गरिमामय उपस्थिति*

दिनांक 13-06-2018

प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 *अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के तत्वावधान में*
💥 *इंदौर - मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ स्तरीय आँचलिक कन्या कार्यशाला*

💥 *समापन सत्र विषय - पहचान का विश्वास कामयाबी का प्रयास*

दिनांक - 13-06-2018

प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 352* 📝

*अनेकान्त विवेचक आचार्य अभयदेव*

आचार्य कालक की भांति कई आचार्य अभयदेव नाम से प्रसिद्ध हैं। प्रस्तुत अभयदेवसूरि नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि और मलधारी अभयदेवसूरि से भिन्न हैं। इनकी प्रसिद्ध कृति वादमहार्णव टीका है।

दिगंबर परंपरा में अकलङ्कदेव, विद्यानंद और प्रभाचंद्र का जो स्थान है वही श्वेतांबर परंपरा में हरिभद्र, मल्लवादी और अभयदेवसूरि का है। छहों विद्वान् दार्शनिक क्षेत्र के जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं।

*गुरु-परंपरा*

अभयदेव राजगच्छ के आचार्य थे। इनकी गुरु-परंपरा में आचार्य नन्नसूरि, आचार्य अजितसूरि, यशोदेवसूरि, सहदेवसूरि और प्रद्युम्नसूरि हुए। प्रद्युम्नसूरि के शिष्य आचार्य अभयदेवसूरि थे। आचार्य प्रद्युम्न 'चंद्रगच्छ' के थे।

*जीवन-वृत्त*

अभयदेव राजकुमार थे। प्रद्युम्नसूरि के पास उन्होंने मुनि दीक्षा ग्रहण की। प्रद्युम्नसूरि शास्त्रार्थ निपुण आचार्य थे। वे जैन दर्शन के साथ वैदिक दर्शन के भी निष्णात विद्वान् थे। उन्हें अनेक विषयों का सम्यक् ज्ञान था। सपादलक्ष (ग्वालियर) एवं त्रिभुवनगिरि के राजाओं को बोध देकर उन्हें जैन बनाया। वैदिक दर्शन का विद्वान् राजा अल्ल उनका भक्त था। अभयदेवसूरि ने प्रद्युम्नसूरि से विविध विषयों का अध्ययन किया। जैन शासन के प्रभावक आचार्य बने और राजर्षि नाम से उनकी प्रसिद्धि हुई।

आचार्य अभयदेव वास्तव में अभय थे। उनकी वादकुशल प्रतिभा के सामने प्रतिद्वंद्वी का टिकना कठिन था।

न्याय क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त होने के कारण एवं वाद कुशलता के कारण उन्हें 'न्यायवनसिंह' और 'तर्कपंचानन' की उपाधियां प्राप्त थीं।

धारा नरेश मुंज के उद्बोधक धनेश्वरसूरि अभयदेवसूरि के शिष्य थे। मुंज अपने समय के प्रभावक नरेश थे। उनके कारण चंद्रगच्छ राजगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मुंज के समकालीन अन्य राजा भी धनेश्वरसूरि को बहुमान देते थे। धनेश्वरसूरि ने अपने अठारह शिष्यों को आचार्य पद पर नियुक्त किया और उनसे अष्टापदगच्छ, चैत्रवालगच्छ, धर्मघोषगच्छ आदि कई गच्छों एवं शाखाओं का उद्भव हुआ। धनेश्वरसूरि के बहुमुखी विकास में अभयदेवसूरि का विशेष योगदान था।

*अनेकान्त विवेचक आचार्य अभयदेव द्वारा रचित साहित्य* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 6* 📜

*बहादुरमलजी भण्डारी*

*नरेश, युवराज और भण्डारीजी*

महाराज कुमार जसवंतसिंहजी युवावस्था के प्रारंभिक दौर में कुछ भटक गए। 'नन्हीं जान' नामक एक मुस्लिम महिला से उनका संबंध हो गया। नरेश को पता लगा तो वे बहुत क्रुद्ध हुए। उपालंभ देते समय रोष के आवेश में उन्होंने कह दिया कि वे किले से निकल जाएं। महाराज कुमार तत्काल अपनी प्रेमिका 'नन्हीं जान' के वहां चले गए। दूसरे दिन प्रातः भंडारीजी मुजरा करने गए तो उन्होंने नरेश को उदास देखा। कारण पूछने पर पहले तो उन्होंने बात को टाल दिया, परंतु दुबारा आग्रह करने पर सारी स्थिति बतला दी। भंडारीजी ने कहा— "महाराज कुमार का इस प्रकार भटक जाना और फिर उसी के घर जाकर रहना– ये दोनों ही कार्य राजघराने की निंदा के कारण बन सकते हैं, अतः यह प्रवाद फैले उससे पूर्व ही उसका उपचार कर लेना उपयुक्त रहेगा। आप आज्ञा दे तो मैं महाराज-कुमार से मिलूं और उन्हें समझा कर आपके चरणों में लाऊं। आप भी अब उन्हें झिड़कने के बजाय वात्सल्यपूर्ण व्यवहार से पुनः जमा लें। तभी यह समस्या हल हो सकेगी।" नरेश ने उनके चिंतन को उचित माना।

भंडारीजी उसी समय 'नन्हीं जान' के निवास स्थान पर पहुंचकर महाराज कुमार से मिले। उन्होंने उपालंभ के स्वर में उनसे कहा— "आप हमारे भावी नरेश हैं। राज्य आपसे बहुत-बहुत आशाएं रखता है। परंतु इस प्रकार रूठकर यहां बैठने से तो न स्वयं आपका कोई हित सधेगा और न राज्य का। क्या आपने कभी सोचा है कि जब यह बात बाहर फैलेगी तब आपकी, नरेश की तथा अपने राज्य की प्रतिष्ठा को कितना धक्का लगेगा? आपको अपने कदम पर पुनः चिंतन करना चाहिए और हम सब की चिंता को दूर करना चाहिए।"

महाराज कुमार ने अपने मन का दुःख व्यक्त करते हुए कहा— "पिताजी ने जब मुझे निकल जाने का ही आदेश दे दिया तब मैं क्या कर सकता था? यहां इस प्रकार आ बैठने का मेरा कभी कोई विचार नहीं था, परंतु अब तो लगता है, यही मेरी नियति है।"

भंडारी जी ने उन्हें समझाते हुए कहा— "आवेश में कहे गए नरेश के शब्दों को आप इतना गंभीर न लें। वे नरेश होने के साथ-साथ आपके पिता भी हैं। आप रूठकर यहां आ गए, इससे उनके मन को बड़ी ठेस लगी है। वे अत्यंत उदास हैं। आप वहां पधारें और महाराज की उदासी को प्रसन्नता में बदलें। आप महाराज के चरणो में उपस्थित होंगे तो उन्हें वात्सल्य की मूर्ति ही पाएंगे। यह मैं आपको सुनिर्णीत विश्वास दिला सकता हूं।"

भंडारीजी के परामर्श से महाराज कुमार आश्वस्त होकर उनके साथ ही नरेश के चरणों में उपस्थित हो गए। उन्होंने चरण पकड़ कर क्षमा मांगी, तब नरेश ने भी उन्हें वात्सल्य दिया और यथास्थान स्वीकार कर लिया। इस प्रकार भंडारीजी के चातुर्यपूर्ण प्रयास ने पिता-पुत्र में पड़ी दुराव की खाई को सहज ही पाठ दिया। महाराज तख्तसिंहजी तो भंडारीजी के प्रति सदैव दयालु थे, परंतु महाराज कुमार के मन में शिकार के लिए जाते समय 'सांड' नहीं देने से जो मनोमालिन्य हो गया था, वह इस घटना के पश्चात् धुल गया। नरेश के समान ही महाराज कुमार भी उनको अपने तथा राजघराने के परम हितैषी मानने लगे।

*बहादुरमलजी भण्डारी को एक बार नरेश का कोप-भाजन भी होना पड़ा... ऐसा किन परिस्थितियों में हुआ...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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*चेन्नै चातुर्मास*
*आवास हेतु अग्रिम बुकिंग*
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आगामी माह से प्रारम्भ हो रहे पूज्यप्रवर के चातुर्मास्य हेतु चेन्नै में आवास की निम्न बुकिंग प्रारम्भ की जा रही है:-

2BHK - 4 महीने और 2 महीने के लिए
1BK - 4 महीने और 2 महीने के लिए
1 रूम - 1 महीने के लिए

सम्पर्क सूत्र
*विभागाध्यक्ष श्री पुखराज बडोला*
9444076737 / 9940335644

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प्रवास स्थल से एक कि.मी. की दूरी पर स्थित *होटल* के कमरों की बुकिंग भी प्रारम्भ की जा रही है। जिन महानुभावों को होटल के कमरे चंद दिवस के लिए बुक करने हों, वे अतिशीघ्र संपर्क करें।

सम्पर्क सूत्र
*संयोजक श्री विनोद डागा*
9840092910 / 9043582206
www.chennaichaturmas2018.com
सम्प्रसारक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

chennaichaturmas2018.com
Acharya Shri Mahashraman is the Eleventh Acharya of the Terapanth Dharma Sangha. His external and internal personality overflows with dignity and attraction.If one were to describe him physically, you would see a man of medium height, fair with a broad forehead, an angular sharp nose and compassiona...

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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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