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जैनशासन रत्न बाबूलालजी पूनमचंदजी (के. पी. संघवी) का निधन
JAIN STAR News Network | June 6,2018
मुंबई। पावापुरी तीर्थधाम जिनालय का निर्माण कराने वाले तथा के.पी. संघवी चेरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक बाबूलालजी पूनमचंदजी (के. पी. संघवी) का बुधवार 6 जून को मुंबई में दुःखद निधन हो गया। वे अपने पीछे भरापूरा परिवार छोड़ गए हैं। उनके निधन पर जैन समाज में शोक की लहार व्याप्त है। उनका अंतिम संस्कार बाणगंगा श्मशान भूमि, मुंबई में पूरे रीति-रिवाज के साथ किया गया, जिसमें जैन समाज की हजारों हस्तियों ने शामिल हो उन्हें भावुक अंतिम विदाई दी। विदित हो कि मालेगांव का मूल निवासी व सिरोही में शिक्षा ग्रहण करने वाला के.पी. संघवी परिवार पिछले 30-35 वर्षों से हीरे के व्यवसाय से जुड़ा हुआ है। इसके बावजूद इस परिवार ने अपनी जन्मभूमि से लगाव बनाए रखा है, तथा वह अपनी जन्मभूमि जिला सिरोही व प्रदेश राजस्थान को एक आदर्श गाँव-जिला-राज्य बनाने में पूरी रुचि रखता है। माउंट आबू की पहाड़ियों के नीचे चंद्रावती नगरी में स्थित 7वीं शताब्दी के विख्यात जैन मंदिर 'मीरपुर' के निकट आबुगौड पट्टी स्थित पावापुरी तीर्थ क्षेत्र में नूतन व विशाल मंदिर का निर्माण मालगाँव के दानवीर परिवार संघवी पूनमचंद धनाजी बाफना परिवार के ट्रस्ट के.पी. संघवी चेरीटेबल ट्रस्ट द्वारा करवाया गया है। सिरोही जिला मुख्यालय से 22 कि॰मी॰ दूर सिरोही-मंडार-डीसा राजमार्ग पर यह मंदिर बना है। ट्रस्ट ने यहाँ 1 किलोमीटर क्षेत्र में 500 बीघा भूमि खरीदकर पहले भव्य गौशाला का निर्माण करवाया जिसमें अभी लगभग 3 हजार पशुओं का लालन-पालन आधुनिकतम तरीके से किया जा रहा है। जीवदया प्रेमी संघवी परिवार देश में किसी भी क्षेत्र में खुलने वाली गौशाला को अपने ट्रस्ट की ओर से 5 लाख रुपए प्रारंभिक सहायता के रूप में देता है। इस गौशाला का नियमित संचालन हो तथा अधिकाधिक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार जीवदया प्रेमी बनें, इस हेतु संघवी परिवार ने इस क्षेत्र में पावापुरी धाम बनाने की योजना बनाई तथा यहाँ पर मूलनायक के रूप में श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान का ऐतिहासिक व कलायुक्त भव्य मंदिर बनाने का निर्णय किया। जब भी देश में प्राकृतिक आपदाएँ आईं तो के.पी. संघवी चेरीटेबल ट्रस्ट ने आगे आकर सहायता का कार्य बड़े स्तर पर किया है। बतादें कि पावापुरी तीर्थधाम में मंदिर, उपासरा, भोजनशाला, धर्मशाला, बगीचे व तालाब बने हुए हैं। पांजरापोल में पशुओं के रहने के लिए प्रथम चरण में 42 शेड बनाए गए ताकि पशुओं को अलग-अलग रहने की सुविधा दी जा सके। बीमार पशुओं व बछड़ों के लिए भी अलग से शेड बने हैं। पशुओं के लिए डॉक्टर, कम्पाउंडर व सहायकों की स्थायी व्यवस्था है।
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